कोरापुट: ओडिशा के कोरापुट जिले में उत्पादित कॉफी को बेहतर बाजार मिलेगा. यह बात ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के जैव-विविधता विभाग के शोधकर्ताओं की एक टीम ने अपने शोध निष्कर्षों में कही है. इस टीम का नेतृत्व सहायक प्रोफेसर डॉ. देबब्रत पांडा कर रहे हैं और विभागाध्यक्ष प्रो. सरत कुमार पलिता उनका मार्गदर्शन कर रहे हैं.
डॉ. पांडा के अनुसार, शोध दल ने पूर्वी घाट में कोरापुट घाटी में उगाई जाने वाली कुछ पोषण-समृद्ध कॉफी किस्मों की पहचान की है. चंद्रगिरी और कैबेरी कॉफी की दो किस्में हैं, जिन्हें कोरापुट जिले में निजी कॉफी बागान मालिकों और आदिवासी कॉफी उत्पादकों द्वारा जिला प्रशासन के सहयोग और भारतीय कॉफी बोर्ड के तकनीकी मार्गदर्शन में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है.
डॉ. पांडा ने कहा कि हालांकि, इस क्षेत्र में जैविक और अर्ध-जैविक रूप से उगाए जाने के कारण ये किस्में पोषण की दृष्टि से समृद्ध पाई गईं, लेकिन वर्तमान अध्ययन से पता चला है कि इन किस्मों में देश और दुनिया के अन्य हिस्सों में उगाई जाने वाली अन्य किस्मों की तुलना में कैफीन की मात्रा कम है. पांडा के नेतृत्व में अनुसंधान दल ने कोरापुट के आदिवासियों द्वारा उगाई जाने वाली 13 स्थानीय कॉफी किस्मों की पोषण संबंधी और न्यूट्रास्युटिकल प्रोफाइलिंग का अध्ययन किया. इनमें से दो कॉफी किस्मों, चंद्रगिरी और कावेरी, ने बेहतर पोषण संरचना दिखाई.
यह अध्ययन एक अंतरराष्ट्रीय स्प्रिंगर नेचर जर्नल, "वेजिटोस" में प्रकाशित हुआ था। डॉ. पांडा के अनुसार इन दो किस्मों में प्रोटीन, फाइबर, खाद्य ऊर्जा, फ्लेवोनोइड्स, विटामिन सी और एंटीऑक्सिडेंट की मात्रा अधिक है और ये अन्य अरेबिका, रोबस्टा और लिबरिका किस्मों की तुलना में पोषण के मामले में बेहतर हैं। कोरापुट जिले के छोटागुड़ा में ब्राउन वैली कॉफी बागानों के उद्यमी सुजय प्रधान ने कहा कि अध्ययन के परिणामों ने जिले में कॉफी उत्पादकों को फिर से जीवंत कर दिया है क्योंकि इससे इसके पोषण मूल्य, सुगंध और अब इस टैग के साथ कि इसमें कैफीन की मात्रा कम है. इससे इसके दुनिया भर में बड़े बाजार में जाने की गुंजाइश बढ़ेगी.