रांचीः तारीख थी 28 मार्च 1995. स्थान - लौहनगरी की जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट. मतपेटियों में बंद 47 उम्मीदवारों के भाग्य का पिटारा खुल चुका था. उन 47 लोगों में टाटा स्टील के रोलिंग मिल का एक मजदूर भी था. जेपी आंदोलन की आग में तपकर भाजपा की टिकट पर राजनीति के मैदान में उतरे उस नौजवान के सामने कई दिग्गज खड़े थे. मतों की गिनती हो चुकी थी. अब विजयी प्रत्याशी के नाम की घोषणा होनी थी. घोषणा हुई भाजपा प्रत्याशी रघुवर दास 1,101 मतों के अंतर से विजयी घोषित किए जाते हैं.
इस 1,101 अंक के साथ रघुवर दास की पहली राजनीतिक जीत हुई. फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. मंत्री, उपमुख्यमंत्री से मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. झारखंड में लगातार पांच साल तक सीएम बने रहने का रिकॉर्ड रघुवर दास के ही नाम है. उनको यह नंबर ऐसा भाया कि इसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बना लिया. रघुवर दास ने अब तक जो भी गाड़ियां लीं, उनका नंबर 1,101 ही रखा.
वैसे भी सनातन संस्कृति में अंक ज्योतिष के लिहाज से 1,101 अंक को शुभ माना जाता है. बेटी की शादी से लेकर हर शुभ कार्य में आशीर्वाद और दक्षीणा के तौर पर इसी अंक में राशि भेंट की जाती है. गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन के लिए भी ज्यादा पैसे चुकाकर लोग इस नंबर को लेते हैं. इस अंक के साथ रघुवर दास ने जीत की जो बुनियाद रखी वह 2019 के चुनाव तक जारी रही. बेशक, रघुवर दास 2019 का चुनाव हार गये.
कुछ पल के लिए अलग-थलग भी दिखे. लेकिन जल्द ही पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाकर मेनस्ट्रीम में ला दिया. इसी बीच बाबूलाल मरांडी की भाजपा में एंट्री हो गयी. आलाकमान को प्रदेश नेताओं के बीच बैलेंस बनाना जरुरी हो गया. लिहाजा, रघुवर दास के लिए ओडिशा के राजभवन का दरवाजा खुल गया. आज रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल हैं. रघुवर दास झारखंड के ऐसे पहले नेता हैं जो किसी राज्य के राज्यपाल बने हैं.
1995 के चुनाव में रघुवर दास को 26,880 वोट मिले थे जो 2000 के चुनाव में बढ़कर 70,358 हो गए. इस बार कांग्रेस के के. पी. सिंह की 47,963 वोट से हार हुई. साल 2005 के चुनाव में रघुवर दास ने कांग्रेस के रामाश्रय प्रसाद को 18,398 वोट से हराया. 2009 के चुनाव में जेवीएम के अभय सिंह सामने थे. इनको भी रघुवर दास ने 22,963 वोट के अंतर से चित कर दिया. साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस के आनंद बिहारी दूबे जोर आजमाने उतरे थे लेकिन इन्हें तो रघुवर दास ने 70,157 वोट के भारी अंतर से शिकस्त दे दी. 2014 के चुनाव के बाद रघुवर दास के भाग्य का ऐसा उदय हुआ कि उनके आगे दूसरे सभी नेताओं की चमक फीकी पड़ गयी. रघुवर दास राज्य के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बन गए. आज भी इस बात की चर्चा होती है कि अगर 2014 का खरसांवा चुनाव अर्जुन मुंडा जीत गये होते तो रघुवर दास का मुख्यमंत्री बनना आसान नहीं होता.