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Happy Friendship Day 2024 बस्तर गोंचा पर्व है दोस्ती की अनोखी परम्परा, जानिए क्यों खास है 600 साल पुरानी ये रीत - Bastar Goncha festival

छत्तीसगढ़ न सिर्फ अपनी कला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यह अनोखी परंपराओं के लिए भी जाना जाता है. आपको जानकर हैरत होगी कि बस्तर के प्रसिद्ध गोंचा पर्व में दोस्ती के लिए अनोखी परम्परा सालों से निभाई जा रही है. यहां दो दोस्त या फिर दो अलग-अलग समाज के लोग एक रस्म अदा करने के बाद पक्के मित्र बन जाते हैं.

BASTAR GONCHA FESTIVAL
बस्तर गोंचा पर्व दोस्ती की अनोखी परम्परा (ETV Bharat)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Jul 15, 2024, 8:38 PM IST

Updated : Aug 3, 2024, 1:39 PM IST

बस्तर गोंचा पर्व और दोस्ती की परंपरा (ETV Bharat)

बस्तर:आज के दौर में लोग दोस्ती करने के लिए फेसबुक, इंस्टाग्राम, मैसेंजर जैसे सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं. सोशल मीडिया पर लोगों को फ्रैंड रिक्वेस्ट भेज कर दोस्ती करते हैं. दोस्ती करने के लिए सोशल मीडिया में यह शुरूआत भले ही कुछ समय से शुरू हुई हो, लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में इसका चलन 615 सालों से चला आ रहा है.

आइए आज हम आपको बस्तर से जुड़ी एक अनोखी परंपरा के बारे में बताने जा रहे है, जो सालों से चलती आ रही है.

बस्तर गोंचा पर्व दोस्ती की अनोखी परम्परा: दरअसल, छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग खूबसूरत वादियों, जलप्रपात, दिचलस्प गुफाओं, नैसर्गिक सुंदरताओं के लिए जाना जाता है. इसके अलावा 75 दिनों तक चलने वाला विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा भी मनाया जाता है, जिसमें कई अनोखी परम्परा निभाई जाती है. बस्तर में दूसरा सबसे अधिक दिनों तक चलने वाला पर्व गोंचा है. इस पर्व में भी कई अनोखी रस्में निभाई जाती है. बस्तर के गोंचा पर्व में दोस्ती या मीत बनाने की भी परंपरा है. मीत बनाने से पहले रिक्वेस्ट या आमंत्रण भेजा जाता है. इसके लिए भगवान को साक्षी मानकर दो लोगों में गजा मूंग, धान की बाली, चंपा फूल, भोजली और कमल के फूल आदान-प्रदान होता है. इसके बाद उनकी दोस्ती पक्की हो जाती है. बस्तर में दोस्ती निभाने की यह अनूठी रस्म है. यह पंरपरा गोंचा पर्व के दौरान निभाई जाती है. यहां के लोगों का मानना है कि इस रस्म के बाद लोगों की दोस्ती पक्की हो जाती है.

गजामूंग बांधने की है परम्परा: इस बारे में बस्तर के गोंचा महापर्व समिति के अध्यक्ष विवेक पांडे ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा, "सतयुग, द्वापरयुग सहित सभी युगों में मित्रता का अलग महत्व रहा है, जिसे देखते हुए कलयुग में भी गोंचा महापर्व के दौरान गजा मूंग बांधने की प्रथा है. गजामूंग भगवान का मुख्य भोग होता है. गजा मूंग एक अंकुरित मूंग होता है. 2 दोस्त अपनी दोस्ती को पक्की करने के लिए गजा मूंग देकर मित्रता बांधते हैं. हर साल सैकड़ों की तादाद में लोग गजामूंग देकर मित्रता बांधते हैं. बस्तर में मीत बंधने की परंपरा 615 सालों से चली आ रही है. भगवान जगन्नाथ को साक्षी मानते हुए कई लोग मीत बंधते है. मीत बंधने के लिए गजा मूंग, धान की बाली, भोजली, चंपा फूल, मोंगरा फूल, गंगाजल, तुलसी के पत्ते जैसे चीजों का आदान प्रदान किया जाता है. इसके बाद यह दोस्ती पारिवारिक संबध में बदल जाती है. दोनों परिवार एक दूसरे की हर खुशी और गम के मौके में शामिल होते है."

तेज गति से आधुनिकता की ओर बढ़ते बस्तर के आदिम जनजातियों के बीच आज भी हजारों साल पुरानी परंपरा जारी है. बस्तर के आदिवासी अपनी अनूठी परम्पराओं के साथ मितान बनने की पंरपरा से जुड़े हुए हैं. इस परम्परा के अनुसार दो मित्र या युवक-युवती, दो परिवारों या दो गांव एक दूसरे के साथ मित्रता के संबध बनाने के लिए एक दूसरे को तुलसी के पत्ते, धान की बाली, जौ के दाने, बस्तर में पाये जाने वाले बालीफूल को भेंट कर मित्रता की कसम खाते हैं. युवक युवतियों के बीच बालीफूल देकर मित्रता बांधने की प्रथा है. ऐसी मान्यता है कि बदना बदने वाले परिवारों के संबध हमेशा के लिए मजबूत हो जाते है. इसी पंरपरा के तहत आदिम जनजातियां अपने ईष्ट देवी-देवताओं को भी बाली देकर मन्नत मांगते है. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धा अनुसार पूजा-अर्चना करते हैं. -हेमंत कश्यप, वरिष्ठ पत्रकार

फिर दोस्ती हो जाती है पक्की: इस अनोखी पर्व के बारे में वरिष्ठ पत्रकार अविनाश प्रसाद का कहना है, "मित्रता की परिभाषा आपसी प्रेम, विश्वास और समर्पण है. बस्तर में व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले और एक गांव से दूसरे गांव की मित्रता होती है. यदि बस्तर के लिए किसी से मीत बांध लेते हैं तो उनके बीच सभी प्रकार की शक, शंका सभी खत्म हो जाती है." इस अनोखी परम्परा का निभाते हुए मित्र बने गनपत भारद्वाज और खेमेश्वर सेठिया ने बताया कि उन्होंने इस पर्व के बारे में सुना था. ऐसे गोंचा पर्व में भगवान के सामने मित्रता बांधने से वो मित्रता गहरी और मजबूत होती है, इसीलिए वे बाहुडा गोंचा के दिन सिरहसार मंदिर में पहुंचे. पूजा पाठ के बाद उन्होंने मित्रता बांधा है. वे काफी खुश हैं.

बता दें कि बस्तर का गोंचा पर्व आदिवासी बाहुल्य बस्तर की आदिम जनजातियां हजारो सालों से मनाते आ रही है. इस परम्परा के जरिए लोग शुरू से ही एक दूसरे से जुड़े रहते हैं. बस्तर महज अपनी खूबसूरती के लिए ही नहीं बल्कि अनोखी परम्पराओं और रीति-रिवाजों के लिए भी प्रसिद्ध है.

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Last Updated : Aug 3, 2024, 1:39 PM IST

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