रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 इसी वर्ष के नवंबर-दिसंबर महीने में होने की संभावना है. लिहाजा राज्य के सभी राजनीतिक दल अपनी चुनावी रणनीति को अंतिम रूप देने में जुटे हैं. इन सबके बीच एक बात जो बेहद खास और गौर करने लायक है वह है पलामू प्रमंडल में विधानसभा स्तर तक जाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की बढ़ती गतिविधियां.
हुसैनाबाद में झामुमो के महा मिलन समारोह के बाद राजद और कांग्रेस के कान खड़े
अभी हाल के दिनों में झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक और हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने पलामू के हुसैनाबाद में महामिलन समारोह का आयोजन कर बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को झामुमो में शामिल कराया. उसके बाद विरोधी तो विरोधी झामुमो के सहयोगी दल राजद और कांग्रेस के भी कान खड़े हो गए और इसके पीछे कारण भी है.
पलामू वर्षों तक राजद और कांग्रेस का गढ़ माना जाता था
राज्य बनने के बाद कई वर्षों तक पलामू क्षेत्र में जहां राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में पहचान रखती थी, अब वहां धीरे-धीरे झामुमो अपना ताकत बढ़ा रहा है. भाजपा को हर हाल में सत्ता में आने से रोकने की राजद-कांग्रेस की नीति को झामुमो नेतृत्व ने अपने लिए एक मौका माना और महागठबंधन में आहिस्ता-आहिस्ता सहयोगी दलों की सीट भी अपने कोटे में लेते गए. ताजा उदाहरण 2019 के विधानसभा चुनाव के समय गढ़वा में दिखा. जहां राजद एक मजबूत राजनीतिक ताकत हुआ करती थी, आज वहां झामुमो से मिथिलेश ठाकुर झामुमो विधायक हैं और चंपाई सरकार में मंत्री बने हुए हैं.
क्या कल्पना झारखंड की राजनीति को झामुमो की नजर से देख रही हैं!
ऐसे में सवाल यह है कि क्या 2014 के झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले झामुमो और खासकर सोरेन परिवार की बहू कल्पना सोरेन की पलामू में गतिविधियों इसलिए बढ़ी है क्योंकि झामुमो की नजर अपने सहयोगियों की अन्य दूसरी सीटों पर भी है? इस सवाल के जवाब में राज्य की राजनीति को बेहद करीब से देखने वाले वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि जब से कल्पना सोरेन राज्य की राजनीति में पूरी तरह सक्रिय हुई हैं, वह झारखंड की राजनीति को झामुमो की नजर से देख रही हैं, न कि महागठबंधन की नजर से.
हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर दावा ठोक सकता है झामुमो!
वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह कहते हैं कि पलामू दौरे पर जिस तरह कल्पना सोरेन राजद के गढ़ रहे हुसैनाबाद तक पहुंच गईं और वहां उन्हें देखने-सुनने के लिए उमड़ा जनसैलाब, मिलन समारोह में कई लोगों के झामुमो में शामिल होने के बाद तो अब इसकी भी संभवना बनती दिख रही है कि कहीं हुसैनाबाद विधानसभा सीट पर भी झामुमो अपनी दावेदारी न ठोक दे.
क्यों पिछड़ रहा राजद और झामुमो क्यों बढ़ रहा आगे
वरिष्ठ पत्रकार सतेंद्र सिंह के अनुसार पूरे पलामू में मजबूत जनाधार और मजबूत नेता के बावजूद राजद के प्रदेश नेतृत्व को पटना और लालू-तेजस्वी के फैसले पर निर्भर रहना पड़ता है. वहीं दूसरी ओर झामुमो और सोरेन परिवार को खुद के फैसले लेने की आजादी है. यही वजह है कि झामुमो एक-एक विधानसभा सीट पर पहले से मजबूत चेहरे को झामुमो में शामिल करा रहा है, ताकि जब सीट शेयरिंग के लिए सहयोगियों के साथ टेबल मीटिंग हो तो कुछ और सीट उनकी झोली से लेकर अपनी झोली में डाली जा सके.
झारखंड कांग्रेस की जमीनी ताकत कमजोर
वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि कांग्रेस की राजनीति रांची कार्यालय से पार्टी को मजबूत करने की रही है. लिहाजा उसका जमीनी ताकत कमजोर है. महागठबंधन की राजनीति का लाभ उसे मिलता है. जिसकी वजह से वह सम्मानजनक सीट पा जा रही है.ऐसे में झारखंड की राजनीति में महागठबंधन की राजनीति से अलग झामुमो अकेले राज्य की सबसे बड़ी पार्टी की पहचान बना लें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.
एक नजर झारखंड की उन सीटों पर जहां पहले राजद और कांग्रेस थी मजबूत, पर अब झामुमो का है जलवा
एकीकृत बिहार और झारखंड राज्य बनने के बाद की राजनीति में गांडेय, सिसई, गुमला, रांची, सिल्ली, चाईबासा, राजमहल, घाटशिला जैसे कई विधानसभा हैं जहां कांग्रेस की तूती बोलती थी. तब के बागुन सुमराई, प्रदीप बलमुचू, थॉमस हांसदा, गीताश्री उरांव उनसे पहले उनके पिता कार्तिक उरांव ने राज्य और देश की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी थी, लेकिन आज इन विधानसभा सीटों पर झामुमो एक मजबूत ताकत है.