रांची: झारखंड पर प्रकृति ने दिल खोलकर मेहरबानी लुटाई है. झील, पहाड़ और जंगल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं तो जमीन में दबे खनिज इसके आगे बढ़ने की संभावनाओं को पंख लगाने का काम करते हैं. लेकिन करीब एक दशक की राजनीतिक अस्थिरता ने इस राज्य के विकास को बुरी तरह प्रभावित किया. एक समय था जब झारखंड की पहचान भ्रष्टाचार और लूटखसोट बन गई थी. यह दौर 2 मार्च 2005 से 28 दिसंबर 2014 तक चला. इन नौ साल और नौ महीनों के बीच झारखंड ने सात मुख्यमंत्री और तीन बार राष्ट्रपति शासन देखा. सत्ता की लालच ऐसी कि एक निर्दलीय विधायक रहते मधु कोड़ा सीएम बन गये.
एक विवाद के अलावा 2005 तक ठीक-ठाक चला झारखंड
लंबे संघर्ष के बाद देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पहल पर 15 नवंबर 2000 को भारत के मानचित्र पर 28वें राज्य के रूप में झारखंड का उदय हुआ था. तब भाजपा ने बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में सरकार का गठन किया. हालांकि डोमिसाइल विवाद के कारण बाबूलाल मरांडी को हटना पड़ा. उनकी जगह युवा नेता के रूप में उभरे अर्जुन मुंडा को भाजपा ने मुख्यमंत्री की कमान सौंपी थी. अर्जुन मुंडा ने कार्यकाल को बखूबी पूरा भी किया लेकिन यहीं से झारखंड की राजनीतिक स्थिरता पर ग्रहण लग गया.
2005 के चुनाव परिणाम ने दिखाए राजनीतिक के नये-नये रंग
2005 के चुनावी नतीजों ने झारखंड की राजनीति को मकड़जाल में उलझा दिया. गठबंधन और जोड़तोड़ की राजनीति शुरू हुई. इस चुनाव में भाजपा 30 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी लेकिन बहुमत के लिए 11 विधायकों को जोड़ने में उसके पसीने छूट गए. इस चुनाव में भाजपा को 30, कांग्रेस को 09, एनसीपी को एक, जदयू को 06, झामुमो को 17, राजद को 07, ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक को 02, भाकपा माले को 01, यूजीडीपी को 02, आजसू को 02, जेकेपी को 01 और निर्दलीय के खाते में 03 सीटें गईं. लिहाजा, अजीबोगरीब समीकरण के कारण नेताओं की महत्वकांक्षा बढ़ने लगी.
इसका फायदा उठाया झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने. महज 17 विधायकों वाली पार्टी झामुमो के मुखिया शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई. लेकिन वह 2 मार्च से सिर्फ 12 मार्च तक यानी सिर्फ दस दिन तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सके. बदलते समीकरण के कारण फिर भाजपा के अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिल गई. लेकिन इस बार उनको 12 मार्च 2005 से 19 सितंबर 2006 यानी एक साल छह माह और सात दिन में ही मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसकी वजह बनी कांग्रेस. क्योंकि कांग्रेस ने भाजपा को हटाने के लिए निर्दलीय विधायक मधु कोड़ा को झामुमो के समर्थन से मुख्यमंत्री बना डाला.
मधु कोड़ा ने 19 सितंबर 2006 से 27 अगस्त 2008 के बीच सत्ता संभाली और इसी दौर में कई घोटाले हुए. फिर झामुमो की पहल पर मधु कोड़ा हट गये. शिबू सोरेन को 27 अगस्त को मुख्यमंत्री बना दिया गया. लेकिन नेताओं की महत्वकांक्षा के कारण शिबू सोरेन भी सिर्फ चार माह और 23 दिन तक ही सीएम की कुर्सी पर बैठ पाए. फिर क्या था राजनीतिक अस्थिरता के कारण झारखंड में पहली बार 19 जनवरी 2009 को राष्ट्रपति शाषण लगा. इस बीच कई बार सरकार बनाने की कोशिशें हुई, लेकिन समीकरण नहीं बैठने के कारण दूसरी विधानसभा के कार्यकाल पूरा होने से तीन माह पहले ही राष्ट्रपति शासन के दौरान ही तीसरी विधानसभा के लिए चुनाव कराने पड़े.
2009 के चुनाव में बैसाखी पर आ गई राजनीति
2009 के चुनाव के वक्त उठी बयार इशारा कर चुकी थी कि इस बार भी झारखंड की राजनीति बैसाखी पर ही खड़ी रहेगी और हुआ भी वैसा ही. 2009 में भी किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला. अलबत्ता 2005 के चुनाव में 30 सीटें जीतने वाली भाजपा 18 सीट पर सिमट गई और झामुमो ने पिछले चुनाव के मुकाबले एक सीट ज्यादा लाकर भाजपा की बराबरी कर ली. इस चुनाव में भाजपा से अलग होकर जेवीएम पार्टी बनाकर मैदान में उतरे बाबूलाल मरांडी 11 सीट लाकर कांग्रेस के बाद चौथी बड़ी पार्टी के मुखिया बन गए. इस हालत में सरकार बनाना किसी के बूते की बात नहीं थी. फिर भाजपा के समर्थन से शिबू सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी जो सिर्फ पांच माह ही चल सकी.