लातेहार: झारखंड का लातेहार एक ऐसा जिला है जिसका बड़ा भूभाग जंगलों से आच्छादित है. इसी कारण यहां बड़े पैमाने पर वन उत्पादन का व्यापार होता है. जंगल में पाए जाने वाले तमाम प्रकार की मौसमी वन उत्पाद के साथ-साथ भारी मात्रा में जड़ी बूटियां भी ग्रामीणों के द्वारा इकट्ठा कर बेची जाती है. चाहे लह साल बीज (सखुआ) हों, या फिर महुआ, लाह हो या फिर डोरी. इसके अलावा मुंजनी, हरे, बहेरा, पियार दाना समेत अन्य वन उत्पादों से ग्रामीणों को हर वर्ष अच्छी आमदनी हो जाती है.
यहां एक बड़ी बात यह है कि जानकारी के अभाव में अधिकांश ग्रामीण वन उत्पाद को कच्चे माल के रूप में ही व्यापारियों को बेच देते हैं. कच्चे माल के रूप में वन उत्पाद को बेचने से ग्रामीणों को मामूली लाभ ही मिल पाता है. ग्रामीण यह सोचते हैं कि बिना पूंजी लगाए जो भी फायदा मिल जाए उतना ही काफी है. स्थानीय ग्रामीण रामदेव उरांव ने बताया कि जंगल का उत्पाद बेचने से गरीबों को जो भी फायदा मिलता है, उसी में संतोष कर लेते हैं.
लातेहार जिले के जंगली क्षेत्र में जितने बड़े पैमाने पर वन उत्पादों का उत्पादन होता है, उन उत्पादों का यदि सही तरीके से उपयोग हो तो यहां के ग्रामीण मालामाल हो जाएंगे. बताया जाता है कि अगर वन उत्पादों में वैल्यू एडिशन कर ग्रामीण उसकी बिक्री करेंगे तो ग्रामीणों को चार गुना से भी अधिक लाभ मिल पाएगा. उदाहरण के तौर पर लातेहार जिले में पाए जाने वाले सखुआ के बीज का उपयोग मुख्य रूप से खाद्य तेल या फिर दवा के तेल बनाने के रूप में किया जाता है. अगर सिर्फ सखुआ के बीज को यहां रिफाइंड करने की सुविधा उपलब्ध हो जाए तो उसकी कीमत 4 गुनी अधिक हो जाएगी.
इसी प्रकार पियार दाना को रिफाइंड कर किसान बाजार में बेचे तो उन्हें 4 से 5 गुना अधिक मुनाफा होगा. इस संबंध में लातेहार वन प्रमंडल पदाधिकारी रौशन कुमार ने बताया कि यदि स्थानीय ग्रामीण वन उत्पादों में वैल्यू एडिशन करने लगेंगे तो उनकी आमदनी अपेक्षाकृत काफी अधिक बढ़ जाएगी. उन्होंने बताया कि रॉ मटेरियल के रूप में वन उत्पाद को बेचने से किसानों को अपेक्षाकृत अधिक मुनाफा नहीं हो पता है. वन उत्पादों का वैल्यू एडिशन के लिए विभाग के द्वारा प्रयास भी किए जा रहे हैं.
लघु उद्योग के लिए विभाग देती है मदद