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ओडिशा और बंगाल का विभाजन चाहता है झामुमो! स्वायत्तशासी परिषद के लिए जल्द शुरू होगा आंदोलन - MOVEMENT FOR AUTONOMOUS COUNCIL

झामुमो ओडिशा और पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों को जोड़कर स्वायत्तशासी परिषद के आंदोलन शुरू करने की तैयारी में है.

MOVEMENT FOR AUTONOMOUS COUNCIL
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 13 hours ago

रांची: झारखंड मुक्ति मोर्चा पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ जिलों को जोड़कर स्वायत्तशासी परिषद की मांग कर रहा है. झामुमो जल्द ही इसके लिए आंदोलन शुरु करने की तैयारी में है.

झामुमो पश्चिम बंगाल के 04 और ओडिशा के 03 आदिवासी बहुल जिलों को भी मिलाकर एक स्वायत्तशासी परिषद बनाने के लिए संघर्ष और आंदोलन शुरू करने के मूड में है. इसके लिए पार्टी ने खाका तैयार कर लिया है. पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों की अलग पहचान और आदिवासी अस्मिता के नाम पर यह आंदोलन झारखंड मुक्ति मोर्चा शुरू करेगा. इसकी पूरी रणनीति और प्रस्ताव को आने वाले दिनों में पार्टी के महाधिवेशन में पारित कराने की भी योजना है.

झामुमो और बीजेपी नेताओं का बयान (ईटीवी भारत)

प. बंगाल और ओडिशा के इन जिलों की अलग पहचान चाहता है झामुमो

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव और सोरेन परिवार के बेहद करीबी नेताओं में से एक सुप्रियो भट्टाचार्या ने कहा कि अभी भी पड़ोसी राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों में जनजातीय समुदाय की स्थिति नहीं सुधरी है. वह शोषण और अत्याचार झेल रहे हैं. ऐसे में उनकी अस्मिता और पहचान की लड़ाई झामुमो पहले भी लड़ता रहा है और अब 'ऑटोनॉमस कॉउंसिल' बनाने के लिए संघर्ष तेज करेगा.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव ने कहा कि पश्चिम बंगाल के झारग्राम, पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया ये चार आदिवासी बहुल जिलों को मिलाकर एक स्वायत्तशासी परिषद बनाने की मांग को झारखंड मुक्ति मोर्चा एक आंदोलन के रूप में शुरू करने जा रहा है. इसी तरह ओडिशा के तीन जिले क्योंझर, म्यूरभंज और सुंदरगढ़ इन तीन जिलों को मिलाकर एक स्वायत्तशासी परिषद बनाने के लिए संघर्ष शुरू करेगा.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव का कहना है कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के इन सात जिलों में रहने वाले आदिवासियों की रहन-सहन, बात व्यवहार और संस्कृति झारखंड के आदिवासियों की तरह ही है. उन इलाकों के जनजातीय समुदाय आज भी शोषण और जुर्म के शिकार होते रहते हैं. उनके हितों और अधिकार की रक्षा के लिए अलग स्वायत्तशासी परिषद बहुत जरूरी है.

MOVEMENT FOR AUTONOMOUS COUNCIL
स्वायत्तशासी परिषद की मुख्य बातें (ईटीवी भारत)

क्या होता है स्वायत्त जिला परिषद

भारत के आदिवासी क्षेत्रों में प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए स्थापित वैधानिक निकाय है. ये भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आती है. इसके जरिए आदिवासी समुदाय के लोग खुद के शासन का लाभ उठा सकते हैं औऱ अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण कर सकते हैं. इन परिषदों के पास कुछ मामलों में विधायी, न्यायिक और कार्यकारी शक्तियां भी होती हैं.

MOVEMENT FOR AUTONOMOUS COUNCIL
क्या होता है स्वायत्तशासी परिषद (ईटीवी भारत)


मार्च-अप्रैल में आंदोलन का प्रस्ताव होगा पारित

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य और केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि हमारे नेता शिबू सोरेन का सपना एक बृहत झारखंड का था. वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में झारखंड राज्य तो मिल गया, लेकिन हमारे सपने अधूरे रह गए. अभी भी हमारी लड़ाई जारी है. झारखंड से सटे पश्चिम बंगाल के आदिवासी बहुल जिलों और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों को अलग स्वायत्तशासी परिषद की जरूरत है, ताकि वहां रहने वाले जनजातीय समूह के लोगों का जीवन स्तर में सुधार हो. उनके लिए अलग से योजनाएं बने और वह विकास की राह में सरकार की प्राथमिकता सूची में हों.

लोकप्रियता के शिखर पर हमारी पार्टी और नेता- मनोज पांडेय

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल में हमारा मजबूत जनाधार रहा है. ओडिशा में कभी हमारे 06-07 विधायक और सांसद भी हुआ करते थे. पश्चिम बंगाल के विधानसभा में भी हमारी उपस्थिति पूर्व में रही है. झारखंड विधानसभा चुनाव- 2024 में भाजपा को परास्त करने के बाद हमारी लोकप्रियता भी शिखर पर है. हमारे नेता की राष्ट्रीय छवि है और देश भर के जनजातीय समुदाय की उम्मीदें हमारे नेता से है.


पहले अपनी ममता दीदी से तो बात कर लें हेमंत सोरेन- भाजपा

झारखंड की सीमा से सटे पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों को अलग स्वायत्तशासी परिषद बनाने के लिए संघर्ष शुरू करने की झामुमो की योजना पर झारखंड भाजपा ने तंज कसा है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि इनको पहले ममता दीदी और ओडिशा की सरकार से बात कर अपनी मांग रखनी चाहिए. अलग पहचान के लिए स्वायत्तशासी परिषद की मांग उठाकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल के जनजातीय समुदाय को बरगलाना नहीं चाहिए.
प्रदीप सिन्हा ने कहा कि झामुमो और उसके गठबंधन की विधानसभा चुनाव में जीत झारखंड के लोगों की सेवा करने के लिए हुई है न कि पड़ोसी राज्यों में स्वायत्तशासी परिषद बनवाने के लिए. अगर वास्तव में झामुमो और उसके नेता जनजातीय समुदाय के हितैषी हैं तो उन्हें कोरी बयानबाजी और चुनावी लाभ लेने के लिए दवाब बनाने की राजनीति से बाज आना चाहिए.

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झामुमो पश्चिम बंगाल के 04 और ओडिशा के 03 आदिवासी बहुल जिलों को भी मिलाकर एक स्वायत्तशासी परिषद बनाने के लिए संघर्ष और आंदोलन शुरू करने के मूड में है. इसके लिए पार्टी ने खाका तैयार कर लिया है. पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों की अलग पहचान और आदिवासी अस्मिता के नाम पर यह आंदोलन झारखंड मुक्ति मोर्चा शुरू करेगा. इसकी पूरी रणनीति और प्रस्ताव को आने वाले दिनों में पार्टी के महाधिवेशन में पारित कराने की भी योजना है.

झामुमो और बीजेपी नेताओं का बयान (ईटीवी भारत)

प. बंगाल और ओडिशा के इन जिलों की अलग पहचान चाहता है झामुमो

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव और सोरेन परिवार के बेहद करीबी नेताओं में से एक सुप्रियो भट्टाचार्या ने कहा कि अभी भी पड़ोसी राज्यों के आदिवासी बहुल जिलों में जनजातीय समुदाय की स्थिति नहीं सुधरी है. वह शोषण और अत्याचार झेल रहे हैं. ऐसे में उनकी अस्मिता और पहचान की लड़ाई झामुमो पहले भी लड़ता रहा है और अब 'ऑटोनॉमस कॉउंसिल' बनाने के लिए संघर्ष तेज करेगा.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव ने कहा कि पश्चिम बंगाल के झारग्राम, पश्चिमी मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया ये चार आदिवासी बहुल जिलों को मिलाकर एक स्वायत्तशासी परिषद बनाने की मांग को झारखंड मुक्ति मोर्चा एक आंदोलन के रूप में शुरू करने जा रहा है. इसी तरह ओडिशा के तीन जिले क्योंझर, म्यूरभंज और सुंदरगढ़ इन तीन जिलों को मिलाकर एक स्वायत्तशासी परिषद बनाने के लिए संघर्ष शुरू करेगा.

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव का कहना है कि पश्चिम बंगाल और ओडिशा के इन सात जिलों में रहने वाले आदिवासियों की रहन-सहन, बात व्यवहार और संस्कृति झारखंड के आदिवासियों की तरह ही है. उन इलाकों के जनजातीय समुदाय आज भी शोषण और जुर्म के शिकार होते रहते हैं. उनके हितों और अधिकार की रक्षा के लिए अलग स्वायत्तशासी परिषद बहुत जरूरी है.

MOVEMENT FOR AUTONOMOUS COUNCIL
स्वायत्तशासी परिषद की मुख्य बातें (ईटीवी भारत)

क्या होता है स्वायत्त जिला परिषद

भारत के आदिवासी क्षेत्रों में प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए स्थापित वैधानिक निकाय है. ये भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत आती है. इसके जरिए आदिवासी समुदाय के लोग खुद के शासन का लाभ उठा सकते हैं औऱ अपनी संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण कर सकते हैं. इन परिषदों के पास कुछ मामलों में विधायी, न्यायिक और कार्यकारी शक्तियां भी होती हैं.

MOVEMENT FOR AUTONOMOUS COUNCIL
क्या होता है स्वायत्तशासी परिषद (ईटीवी भारत)


मार्च-अप्रैल में आंदोलन का प्रस्ताव होगा पारित

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय समिति सदस्य और केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि हमारे नेता शिबू सोरेन का सपना एक बृहत झारखंड का था. वर्ष 2000 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में झारखंड राज्य तो मिल गया, लेकिन हमारे सपने अधूरे रह गए. अभी भी हमारी लड़ाई जारी है. झारखंड से सटे पश्चिम बंगाल के आदिवासी बहुल जिलों और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों को अलग स्वायत्तशासी परिषद की जरूरत है, ताकि वहां रहने वाले जनजातीय समूह के लोगों का जीवन स्तर में सुधार हो. उनके लिए अलग से योजनाएं बने और वह विकास की राह में सरकार की प्राथमिकता सूची में हों.

लोकप्रियता के शिखर पर हमारी पार्टी और नेता- मनोज पांडेय

झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय ने कहा कि ओडिशा और पश्चिम बंगाल में हमारा मजबूत जनाधार रहा है. ओडिशा में कभी हमारे 06-07 विधायक और सांसद भी हुआ करते थे. पश्चिम बंगाल के विधानसभा में भी हमारी उपस्थिति पूर्व में रही है. झारखंड विधानसभा चुनाव- 2024 में भाजपा को परास्त करने के बाद हमारी लोकप्रियता भी शिखर पर है. हमारे नेता की राष्ट्रीय छवि है और देश भर के जनजातीय समुदाय की उम्मीदें हमारे नेता से है.


पहले अपनी ममता दीदी से तो बात कर लें हेमंत सोरेन- भाजपा

झारखंड की सीमा से सटे पश्चिम बंगाल और ओडिशा के आदिवासी बहुल जिलों को अलग स्वायत्तशासी परिषद बनाने के लिए संघर्ष शुरू करने की झामुमो की योजना पर झारखंड भाजपा ने तंज कसा है. भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिन्हा ने कहा कि इनको पहले ममता दीदी और ओडिशा की सरकार से बात कर अपनी मांग रखनी चाहिए. अलग पहचान के लिए स्वायत्तशासी परिषद की मांग उठाकर ओडिशा और पश्चिम बंगाल के जनजातीय समुदाय को बरगलाना नहीं चाहिए.
प्रदीप सिन्हा ने कहा कि झामुमो और उसके गठबंधन की विधानसभा चुनाव में जीत झारखंड के लोगों की सेवा करने के लिए हुई है न कि पड़ोसी राज्यों में स्वायत्तशासी परिषद बनवाने के लिए. अगर वास्तव में झामुमो और उसके नेता जनजातीय समुदाय के हितैषी हैं तो उन्हें कोरी बयानबाजी और चुनावी लाभ लेने के लिए दवाब बनाने की राजनीति से बाज आना चाहिए.

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