कानपुर: जब कोई चित्रकार चित्र बनाता है, तो चित्र क्षण भर में बन जाता है. हालांकि जो सोचने की प्रक्रिया होती है, उसमें करीब दो माह का समय लगता है मगर जैसे ही चित्र बनता है तो उस समय हर चित्रकार को ईश्वर से अलौकिक शक्ति मिल जाती है जिससे वह चित्र बना लेता है. मुझे जब वह शक्ति मिली तो प्रभु श्रीराम का बाल स्वरुप का चित्र तैयार कर दिया जोकि बेहद चुनौतीपूर्ण काम था क्योंकि भगवान कृष्ण के तो कई बाल स्वरप वाले चित्र आसानी से मिल जाते हैं, मगर प्रभुश्रीराम का बाल स्वरुप वाला चित्र बहुत मुश्किल से मिल सका. शुक्रवार को यह जानकारी काशी विद्यापीठ के ललित कला संकाय के संकायाध्यक्ष डा.सुनील विश्वकर्मा ने दी. उन्होंने ही प्रभु श्रीराम का जो चित्र बनाया था, उसी चित्र के आधार पर रामलला मंदिर में मूर्ति बनाई गई.
कमेटी को मिले थे पूरे भारत से 82 चित्र:डॉ.सुनील विश्वकर्मा ने बताया कि मंदिर कमेटी को पूरे भारत से कुल 82 चित्र मिले थे लेकिन उनमें से कोई भी चित्र यूपी से नहीं था. ऐसे में वरिष्ठ पदाधिकारियों ने डा.सुनील को फोन किया और प्रभु श्रीराम का चित्र बनाने को कहा. अंतत: कमेटी ने जिन तीन चित्रों को फाइनल किया था उनमें डा.सुनील का भी चित्र था लेकिन, पहले जो चित्र बना था, उसमें डॉ.सुनील ने प्रभु श्रीराम के साथ तरकश और जनेऊं का भी चित्र बना दिया था फिर, कमेटी के पदाधिकारियों ने इस चित्र को बदलने के लिए कहा तब जाकर अंतिम रूप से जो चित्र बना, उसमें केवल प्रभु राम की ही तस्वीर दिख रही थी.