हैदराबाद : भारत के सबसे जीवंत त्योहारों में से एक होली 24-25 मार्च को है. मूल रूप से रंगों का त्योहार होली पूरे भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न तरीकों के लिए भी जाना जाता है. आइए भारत में होली समारोह के कई पहलुओं और क्षेत्रीय विशिष्टताओं पर एक नजर डालें.
उत्तर प्रदेश
1). लट्ठमार होली -यह मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में मनाई जाती है. यहां की होली भारत में सबसे दिलचस्प होली समारोहों में से एक है, खासकर मथुरा, वृंदावन और बरसाना में. यहां की लट्ठमार होली थोड़ी अलग किस्म की होती हैं. लट्ठमार होली नाम का मतलब है 'लाठी बजाकर होली मनाना'. नंदगांव और बरसाना में इसका खास अंदाज देखने को मिलता है.
पूरे उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर मनाई जाने वाली लट्ठमार होली की उत्पत्ति हिंदू पौराणिक कथाओं में हुई है. लट्ठमार होली राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंगों से जुड़ा है. भगवान कृष्ण राधा और उनकी सहेलियों के साथ होली खेलने के लिए बरसाना जाते थे, श्रीकृष्ण को रंग लगाना और गोपियों को चिढ़ाना बहुत पसंद था. गोपियां कृष्ण और उनके गिरोह को मारने के लिए बांस की लठे उठाती थीं. तभी से ये परंपरा चली आ रही है.
बरसाना के ग्वाल बाल होली खेलने नंदगांव जाते हैं, इस दौरान इन ग्वालों को होरियारे और ग्वालिनों को हुरियारीन के नाम से सम्बोधित किया जाता है.
2). फूलों की होली -फूलों की होली फाल्गुन माह की एकादशी पर मनाई जाती है. इस दौरान बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन में ताजे फूलों की पंखुड़ियों के साथ कृष्ण भक्तों की ओर से बड़े उत्साह के साथ होली खेली जाती है. फूलों की होली के दौरान फूलों और खुशबू से भरे माहौल का नजारा बहुत ही मनमोहक होता है.
3). काशी में चिता भस्म की होली -काशी में भस्म की होली खेली जाती है. भक्तजन भोले बाबा के साथ भस्म की होली खेलते हैं. इसे मसान होली, भस्म होली और भभूत होली भी कहा जाता है. शमशान घाट पर आयोजित भस्म से होली खेलने की परंपरा वाराणसी में सदियों से मनाई जाती रही है जो दूसरे शहरों और देशों के लिए अद्भुत और चकित करने वाला दृश्य होता है.
महाराष्ट्र -पश्चिमी भारत, विशेषकर महाराष्ट्र में, होली को बोलचाल की भाषा में रंग पंचमी या शिमगा के नाम से जाना जाता है. उत्सवों में होलिका दहन शामिल हैं, एक आम परंपरा जिसमें वास्तविक उत्सव से पहले रात को लकड़ी की चिता जलाना शामिल है. अगली सुबह, जो रंग पंचमी का दिन है, लोग गीले और सूखे रंगों और पानी से होली मनाते हैं. यहां उत्सव एक सप्ताह तक चल सकता है.
राजस्थान -
राजस्थान के उदयपुर की में स्थानीय लोग होलिका दहन की पारंपरिक प्रथा का पालन करते हैं, हालांकि थोड़ा अलग तरीके से. यहां उत्सव वास्तव में भव्य माना जाता है और उदयपुर के शाही मेवाड़ परिवार द्वारा आयोजित किया जाता है. उत्सव के हिस्से के रूप में एक फैंसी जुलूस होता है और इसमें कई सजाए गए घोड़े और शाही बैंड शामिल होते हैं. बाद में पारंपरिक आग जलाई जाती है और होलिका के पुतले में आग लगा दी जाती है.
1). धुलंडी - होली के पर्व को राजस्थान के शेखावाटी, मारवाड़ और ढूंढाड़ में धुलंडी के रूप में मनाया जाता है. इसे होलिका दहन के दूसरे दिन मनाया जाता है. रंग और उल्लास के त्योहार के रूप में, होली या धुलंडी लोगों के बीच एक बहुत जरूरी उत्साह लेकर आती है, जो हर उम्र के लोग बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं.
2). डोलची होली - बीकानेर में डोलची होली की प्रथा करीब 300 साल पुरानी है. इस दौरान गली मोहल्ले की टोली के रूप में पुरुष डोलची रूपी पात्र में पानी और रंग भरकर दूसरे मोहल्ले या गली के लोगों पर फेंकते हैं. किसी दौर में डोलची ऊंट की खाल से तैयार होती थी. मान्यता है कि दो समुदाय के पुरुषों में मनमुटाव के बाद एक दूसरे पर पानी फेंकने से यह शुरू हुआ और होली पर बीकानेर के प्रमुख आयोजन के रूप में डोलची होली देश-विदेश में विख्यात है.
3).बृज की होली- राजस्थान का भरतपुर संभाग का ज्यादातर हिस्सा बृज भूमि के रूप में जाना जाता है. होली पर इस क्षेत्र में मथुरा वृंदावन से जुड़ी परंपराएं निर्वाहन की जाती है. खासतौर पर 18वीं शताब्दी में राजा सूरजमल की ओर से शुरू की गई बृज होली की मान्यता आज भी यहां के लोगों में है. इस मौके पर स्थानीय लोग भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं. पुरुष और महिलाएं कृष्ण और गोपियों का रूप धरकर रंगों के त्यौहार को मानते हैं. कामां और डीग में खासतौर पर विशेष आयोजन होते हैं.
4). कपड़ा फाड़ होली - पुष्कर में कपड़ा फाड़ होली मनाई जाती है. वराह घाट पर होने वाले आयोजन के साक्षी बनने के लिए बड़ी संख्या में देसी विदेशी सैलानी यहां पहुंचते हैं.
6). वागड़ की पत्थर मार होली - वागड़ और सरहदी जिलों में पत्थरमार होली का त्यौहार उत्सव के साथ मनाया जाता है. इस मौके पर बांसवाड़ा और डूंगरपुर क्षेत्र में आदिवासी बाहुल्य लोग ढोल और चंग की आवाज पर पत्थर बरसते हुए होली खेलते हैं. वागड़वासियों पर होली का खुमार एक महीने तक रहता है. होली के तहत जिले के कोकापुर गांव में लोग होलिका के दहकते अंगारों पर नंगे पांव चलने की परंपरा निभाते हैं. मान्यता है कि अंगारों पर चलने से घर में विपदा नहीं आती है.
छत्तीसगढ़ -
छत्तीसगढ़ में होली को होरी के नाम से जाना जाता है और इस पर्व पर लोकगीतों की अद्भुत परंपरा है. ऋतुराज बसंत के आते ही छत्तीसगढ़ के गली गली में नगाडे की थाप के साथ राधा कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुह से बरबस फूटने लगते हैं. बसंत पंचमी को गांव के बईगा (गांव का मांत्रिक जो देवी मंदिर में पूजा करता है) द्वारा होलवार (वह स्थान होली जहां जलती है) में कुकरी (मुर्गी) के अंडे को पूज कर कुंआरी बबूल (बबूल का नया छोटा पेड़) की लकड़ी में झंडा बांधकर गडाने से शुरू फाग गीत प्रथम पूज्य गणेश के आह्वान से साथ प्रारंभ होता है. किसानों के घरों में नियमित रूप से हर दिन पकवान बनने की परंपरा शुरू हो जाती है, जिसे तेलई चढना कहते हैं.
छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के अमरपुर गांव में पंचांग के अनुसार होली से पांच दिन पहले होली मनाने की परंपरा है. सालों से इस गांव के लोग इसी तरह होली का त्योहार मनाते आए हैं. धमतरी के सेमरा गांव में होली के 7 दिनों पहले लोग होली खेलते हैं. यहां के लोग सालों से अनहोनी के डर से हर त्यौहार को सात दिन पहले ही मना लेते हैं.
हिमाचल प्रदेश -
कुल्लू के बैरागी समुदाय के लोग बसंत पंचमी से ही होली मनाना शुरू करते हैं. उत्सव करीब 40 दिन तक चलता है. और जब पूरा देश होली मनाता है उससे एक दिन पहले यहां होली मनाई जाती है.
देशभर में जहां होलिका दहन के बाद रंग खेलने की परंपरा है. लेकिन बैरागी समुदाय के लोग रंग खेलने के बाद होलिका दहन करते हैं. इस समुदाय में अपने से बड़े और बुजुर्गों के चेहरे पर नहीं बल्कि उनके पैरों में गुलाल लगाते हैं और बदले में बुजुर्ग आशीर्वाद के रूप में छोटों के सिर पर गुलाल फेंकते हैं.
बैरागी समुदाय के श्याम सुंदर महंत और विनोद महंत बताते हैं कि उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के अवध, मथुरा और वृंदावन से कुल्लू आए थे. होली के दौरान यहां ब्रज और अवधी में गीत गए जाते हैं. बसंत ऋतु के आने के साथ ही भगवान रघुनाथ पर गुलाल फेंका जाता है, इसके बाद रंगों का ये त्योहार होलिका दहन तक चलता है. फिर पूरे साल इन गीतों को नहीं गाया जाता.
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के सुजानपुर में होली मेला काफी प्रसिद्ध है. यहां पर हमीरपुर में तीन दिन तक सुजानपुर होली महोत्सव चलता है. हमीरपुर में सुजानपुर में होली मेला काफी मशहूर है. इसका इतिहास तीन सौ साल पुराना है.
बिहार -
यहां होली को स्थानीय बोली भोजपुरी में फगुवा के नाम से जाना जाता है. कई अन्य भारतीय राज्यों की तरह, होलिका दहन यहां भी उत्सव का एक अभिन्न अंग है. होलिका दहन का उत्सव भी अन्य राज्यों की तरह ही है. अगले दिन, पूरे दिन गीले और सूखे रंगों और पारंपरिक संगीत और लोक गीतों के साथ होली मनाई जाती है.
यहां पर मिथिला, भोजपुर एवं मगध प्रदेश में होली मनाने के अलग-अलग अंदाज हैं. आसपास के घरों से लकड़ी, गोबर से बने उपले के साथ चना की बाली इकट्ठा कर युवा होलिका जलाने की व्यवस्था करते हैं. इसमें पुरुषों के साथ महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं. गांव के बड़े बुजुर्ग एक जगह एकत्र होकर फगुआ गाते हैं.
दूसरे दिन मिट्टी और रंग खेलने के बाद नये कपड़े पहनकर बुजुर्गों के पैर पर गुलाल रखकर उनसे आशीष प्राप्त कर अलग-अलग पकवान का आनंद लेते हैं. पटना में कुर्ता-फाड़ होली तो मगध क्षेत्र में बुढ़वा मंगल होली, वहीं समस्तीपुर में छाता पटोरी होली मनाने का प्रचलन है.