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यहां बड़ों के चेहरे नहीं बल्कि पैरों पर लगाया जाता है होली का रंग, दशकों से बैरागी समुदाय निभा रहा परंपरा - Kullu Special Holi

Holi 2024, Kullu Special Holi: इस बार देशभर में 25 मार्च को होली मनाई जाएगी, लेकिन क्या आपको हिमाचल के कुल्लू के स्पेशल होली के बारे में पता है?. यहां 40 दिनों तक होली मनाई जाती है. हैरानी हुई ना तो आइए विस्तार से जानते हैं... पढ़ें पूरी खबर...

Kullu Special Holi
Kullu Special Holi

By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Mar 21, 2024, 7:12 PM IST

बैरागी समुदाय के लोग ब्रज की बोली में गीत गाते हुए.

कुल्लू:हिमाचल प्रदेश का कुल्लू जिला जहां अपनी देव संस्कृति के लिए देश दुनिया में प्रसिद्ध है. वहीं, यहां पर दशहरा और होली का त्योहार भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. दोनों ही त्योहारों की यह खास बात है कि यहां पर दशहरा उत्सव बाकी जगह पर खत्म होने के बाद मनाया जाता है. वहीं, होली का उत्सव एक दिन पहले ही समाप्त किया जाता है. ऐसे में इन दिनों कुल्लू में होली के गीतों की धूम मची हुई है और वृंदावन, अयोध्या, ब्रज की तर्ज पर यहां बसंत पंचमी के साथ ही होली का आगाज भी हो गया है. जिला कुल्लू के मुख्यालय ढालपुर में बसंत पंचमी के त्योहार के साथ यहां पर गुलाल उड़ाना शुरू हो गया है. ऐसे में 40 दिनों के बाद यहां पर होली का उत्सव समाप्त होता है. देशभर में होली जहां 25 मार्च को मनाई जाएगी. वहीं, यहां पर 23 को छोटी और 24 को बड़ी होली धूमधाम के साथ बनाई जाएगी.

इन दिनों कुल्लू में होली के गीतों की धूम मची हुई है.

ब्रज की बोली में गाए जाते हैं गीत

40 दिनों तक आयोजित होने वाले होली के कार्यक्रम में बैरागी समुदाय अपनी अहम भूमिका निभाता है और बैरागी समुदाय के लोगों के द्वारा भगवान रघुनाथ के मंदिर में जाकर ब्रज की बोली में गीत गाए जाते हैं. कहा जाता है कि जब 16वीं सदी में भगवान रघुनाथ अयोध्या से कुल्लू आए तो उस दौरान यह बैरागी समुदाय के लोग भी अयोध्या से आकर कुल्लू बस गए.

बसंत पंचमी के त्योहार के साथ यहां पर गुलाल उड़ाना शुरू हो गया है.

अयोध्या से आया था बैरागी समुदाय

इसके अलावा एक बार कुल्लू के राजा ने भी अपनी मदद के लिए अयोध्या से बैरागी समुदाय को यहां पर बुलाया था. उसके बाद से लेकर यहां पर बैरागी समुदाय के लोग रह रहे हैं और जो भगवान राम व कृष्ण से जुड़ी परंपरा वृंदावन, ब्रज और अयोध्या में निभाई जाती है. उसका भी लगातार पालन कर रहे हैं. कुल्लू में बैरागी समुदाय के लोग आज भी एक अनोखी होली परंपरा को संजोए हुए हैं.

40 दिनों के बाद यहां पर होली का उत्सव समाप्त होता है.

बैरागी समुदाय के लोग बड़ों से चरणों में फेंकते हैं गुलाल

इस समुदाय के लोग अपने से बड़ों के मुंह और सिर में गुलाल नहीं लगाते. बल्कि वे रिश्तों की मर्यादाओं का सम्मान करते हुए बड़ों के चरणों में गुलाल फेंकते हैं और उनकी उम्र से बडे़ लोग छोटे व्यक्ति के सिर पर गुलाल फेंक कर आशीर्वाद प्रदान करते हैं, जबकि हम उम्र के लोग एक दूसरे के मुंह पर गुलाल लगाते हैं और इस उत्सव को मनाते हैं. ऐसे में बैरागी समुदाय के लोगों द्वारा मनाई जाने वाली यह होली रिश्तों की अहमियत से काफी मायने रखती है. जानकारों के मुताबिक जब बसंत पंचमी के अवसर पर भगवान रघुनाथ की रथ यात्रा रघुनाथपुर से निकलती है तो वहां से हनुमान का वेश धारण किए हुए बैरागी समुदाय का व्यक्ति लोगों पर गुलाल डालना शुरू कर देता है. इसके बाद पैदल यात्रा रथ मैदान पहुंचती है. जहां पर रथ में विराज कर भगवान रघुनाथ अपने अस्थायी शिविर पहुंचते हैं. इस रथ को रस्सियों से खींचकर अस्थायी शिविर तक लाया जाता है. इस दौरान जिस पर यह गुलाल गिरता है, वह शुभ माना जाता है. इसके बाद भगवान रघुनाथ की पूजा अर्चना और भरत मिलाप होने के बाद भगवान रघुनाथ से लोग आशीर्वाद प्राप्त करते हैं और शाम को रघुनाथ जी वापस रघुनाथपुर चले जाते हैं.

40 दिनों तक आयोजित होने वाले होली के कार्यक्रम में बैरागी समुदाय अपनी अहम भूमिका निभाता है.

इस परंपरा को 1653 से निभाया जा रहा है

कुल्लू में रह रहे बैरागी समुदाय के लोग श्याम सुंदर महंत, अश्वनी महंत, विनोद महंत का कहना है कि उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन, अवध से यहां आए हैं और यहां पर होली पर अधिकतर गीत अवधी बोली में ही गए जाते हैं. इसके अलावा नगर के ठावा मंदिर में भी होली गायन किया जाता है और 1653 से लगातार इस परंपरा को निभाया जा रहा है. उनका कहना है कि बसंत ऋतु आने की खुशी में भगवान रघुनाथ पर गुलाल फेंका जाता है और उसके बाद होली के गीत गाए जाते हैं. ऐसे में कुल्लू में भी होली के गीत होलिका दहन तक गाए जाएंगे और उसके बाद पूरा साल इन गीतों को नहीं गाया जाता है. इसके अलावा इन गीतों को रंगत देने के लिए बैरागी समुदाय के लोग डफली और झांज आदि पारंपरिक साज का प्रयोग करते हैं और उत्तर प्रदेश के ब्रज में भी होली गीतों में सिर्फ इन सांजो का ही प्रयोग किया जाता है.

कहा जाता है कि जब 16वीं सदी में भगवान रघुनाथ अयोध्या से कुल्लू आए तो उस दौरान यह बैरागी समुदाय के लोग भी अयोध्या से आकर कुल्लू बस गए.

40 दिन पहले ही मनाना शुरू कर देते हैं होली का त्योहार

कुल्लू में रह रहे बैरागी समुदाय के लोग श्याम सुंदर महंत, अश्वनी महंत, विनोद महंत का कहना है कि कुल्लू में ही बैरागी समुदाय के द्वारा 40 दिन पहले होली का त्योहार मनाना शुरू किया जाता है. जबकि बाकी प्रदेश में कहीं पर भी ऐसी परंपरा नहीं है. कुल्लू में बैरागी समुदाय का संबंध भगवान श्रीराम से है और अयोध्या के त्रेता नाथ मंदिर में भी इसी तरह से इस परंपरा का निर्वाह किया जाता है. जो आज कुल्लू में बैरागी समुदाय के द्वारा संजोए रखा गया है. यहां पर रोजाना शाम के समय सभी मंदिर में भगवान श्रीराम के समक्ष ब्रज, अवध की भाषा में होली के गीत गाते हैं और होलिका दहन के अगले दिन भगवान श्री राम को झूला भी झुलाया जाएगा. उसके बाद अगले साल ही इस परंपरा का निर्वाह किया जाएगा.

होलिका दहन के साथ संपन्न होगा त्योहार

कुल्लू के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सूरत ठाकुर का कहना है कि भारत में जब दशहरा खत्म होता है तो उसके बाद कुल्लू में दशहरा मनाया जाता है और यहां पर होलिका दहन से पहले ही दो दिनों तक होली का त्योहार भगवान रघुनाथ के सम्मान में मनाया जाता है. वहीं, होलिका दहन के साथ ही त्योहार संपन्न हो जाएगा. यहां पर पुरानी परंपराओं व मान्यताओं के चलते यह कार्यक्रम किया जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि भगवान रघुनाथ के त्रेता नाथ मंदिर में भी पहले इसी तरह की परंपरा का निर्वाह किया जाता था. ऐसे में आज भी अयोध्या की तर्ज पर भगवान रघुनाथ के सभी धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में किया जाता है.

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