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हिमाचल का एक गांव जहां बेटी पैदा होने पर मनाया जाता है उत्सव, दशकों से चली आ रही अनोखी परंपरा

हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिल के प्यूकर गांव में दशकों से एक अनोखी परंपरा चल आ रही है. जो लोगों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है. इस गांव में सिर्फ बेटा ही नहीं बल्कि बेटियों के जन्म पर बड़े ही धूमधाम से जश्न मनाया जाता है. यहां बेटी के जन्म पर ग्रामीण देवता तंगजर की विशेष पूजा करते हैं. साथ ही गोची उत्सव मनाते हैं. पढ़िए पूरी खबर...

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : Feb 6, 2024, 8:18 PM IST

हिमाचल का एक गांव जहां बेटी पैदा होने पर मनाया जाता है उत्सव

कुल्लू:21वीं सदी में भी भारत के कई राज्यों में आज भी कन्या भ्रूण हत्या की खबर सामने आती रहती हैं. वहीं, बेटा पैदा होने पर जश्न मनाया जाता है. आज भी देश के कई हिस्सों में बेटा-बेटी के बीच भेदभाव के मामले देखने को मिलते हैं, लेकिन आपको ये जानकार हैरानी होगी कि हिमाचल प्रदेश का एक ऐसा गांव है, जहां बेटी के जन्म पर जश्न मनाया जाता है. जी हां, आपने सही सुना यह है हिमाचल का जनजातीय जिला लाहौल स्पीति, जहां गाहर घाटी के प्यूकर गांव में अनोखी परंपरा है. यहां बेटियों को अभिशाप नहीं, बल्कि भगवान का वरदान समझा जाता है.

बेटियों के पैदा होने पर मनाया जाता है जश्न: भारत के कई राज्यों में जहां घर में बेटा पैदा होने पर बड़े हर्षो उल्लास से जश्न मनाया जाता है. वहीं, बेटियों के पैदा होने पर उसे बोझ माना जाता है. शायद ये सुनकर आप भी चौंक जाएंगे की हिमाचल के प्यूकर गांव में ग्रामीण इस दकियानूसी कुरीति से दूर बेटी पैदा होने पर दिल खोलकर जश्न मनाते हैं. प्युकर गांव में ग्रामीण बेटों के साथ-साथ बेटियों के भी पैदा होने पर खुशियां मनाते हैं. गांव में बेटियों के पैदा होने पर विशेष आयोजन किया जाता है. इस जश्न में पूरे गांव वालों को आमंत्रित किया जाता है. इस आयोजन में पारंपरिक व्यंजनों के साथ स्थानीय लोग नाचते गाते हुए देवता तंगजर की आराधना करते हैं.

प्यूकर गांव में बेटी के जन्म पर गोची उत्सव मनाया जाता है.

दशकों से चली आ रही प्यूकर गांव में अनोखी परंपरा: जनजातीय जिला लाहौल स्पीति के गाहर घाटी का प्यूकर गांव अपनी अद्भुत परंपरा के लिए जाने जाते हैं. प्यूकर गांव में बेटा-बेटी को लेकर कोई भेदभाव नहीं है, बल्कि बेटी के जन्म पर परिवार के सभी लोग मिलकर गोची उत्सव का आयोजन करते हैं. ऐसे में पूरे देश में जहां कन्या भ्रूण हत्या से संबंधित कई मामले देखने को मिलते हैं. वहीं, जनजातीय जिला लाहौल स्पीति के छोटे से गांव प्युकर में सदियों से इस कुरीति के विपरीत एक अनोखी परंपरा का नजारा हर साल देखने को मिलता है.

इस साल दो बेटियों के जन्म पर मनाया गया उत्सव:प्यूकर गांव में इस साल भी गोची उत्सव मनाया गया. गांव में इस साल दो बेटियों का जन्म हुआ है. दोनों ही परिवारों के लोगों ने बड़ी उत्साह के लिए अपनी बेटी के खुशहाल जीवन के लिए अपने इष्ट देवता की पूजा अर्चना की गई. इस दौरान दोनों परिवारों द्वारा पूरे गांव, रिश्तेदारों को निमंत्रण भेजा गया और लाहौल घाटी के आराध्य देवता राजा घेपन के भाई तंगजर की भी पूजा की गई. गोची उत्सव के दौरान देवता तंगजर की पूजा अर्चना की जाती है और शाम के समय तीर कमान का खेल खेला जाता है. इस दौरान स्थानीय ग्रामीणों द्वारा लाहौल का पारंपरिक नृत्य कर जश्न मनाया जाता है. हालांकि, गाहर घाटी में बेटा पैदा होने की खुशी में ही गोची उत्सव का आयोजन किया जाता है, लेकिन प्यूकर गांव ही एक ऐसा गांव है जहां पर बेटी पैदा होने पर विशेष रूप से खुशियां मनाई जाती है.

बेटी के जश्न पर पारंपरिक व्यंजनों के साथ दावत

लड़की के जन्म पर मनाया गया गोची उत्सव: प्यूकर गांव के स्थानीय निवासी दोरजे, पल जोर ने बताया कि इस साल गांव में दो घरों में बेटियों का जन्म हुआ है. हिमांशी ठाकुर और इंदिरा देवी की पुत्री सोनम है. वहीं, पलजोर और मनीषा की बेटी इनाया बौद्ध है. ऐसे में इन दोनों परिवारों द्वारा अपने घर में गोची उत्सव का आयोजन किया गया और धूमधाम के साथ ग्रामीणों ने इस उत्सव में भाग लिया. वही गोची उत्सव का आयोजन करने वाले सोनम और पलजोर ने कहा कि वह बेटियों को भी समान रूप से मानते हैं. उन्होंने बताया कि स्थानीय देवी देवताओं का आशीर्वाद भी गोची उत्सव के दौरान लिया जाता है. ऐसे में लाहौल घाटी में बेटे के साथ-साथ बेटी को भी पूरा सम्मान दिया जाता है.

देवता तंगजर की होती है विशेष पूजा अर्चना: वहीं, इसके पीछे मान्यता है कि कहीं दशकों पहले प्यूकर गांव में दंपतियों को संतान पैदा नहीं हो रही थी. ऐसे में ग्रामीणों ने देवता तंगजर की विशेष पूजा अर्चना की. इस दौरान निर्णय लिया गया कि अगर गांव में बेटा या बेटी कोई भी पैदा होती है तो उसके सम्मान में विशेष रूप से उत्सव का आयोजन किया जाएगा. देवता तंगजर के आशीर्वाद से यहां पर निसंतान दंपतियों को संतान की प्राप्ति हुई. जिसके बाद से पिछले कई दशकों से इस परंपरा का निर्वहन आज भी किया जाता है. जिला परिषद सदस्य कुंगा बौद्ध, मोहनलाल, कुंदन शर्मा का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में प्युकर गांव में बेटी पैदा होने पर भी भव्य जश्न आयोजन किया जाता है. हालांकि इन दिनों बर्फबारी के चलते पूरी घाटी सफेद चादर से ढकी हुई है, लेकिन उसके बाद भी माइनस तापमान में बेटी पैदा होने का उत्सव धूमधाम के साथ गांव में मनाया गया.

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