बेंगलुरु:कर्नाटक हाई कोर्ट ने सितंबर 2023 में जारी एक सरकारी आदेश की वैधता पर सवाल उठाते हुए मैरिज सर्टिफिकेट जारी करने के वक्फ बोर्ड के अधिकार को सस्पेंड कर दिया. यह निलंबन वक्फ अधिनियम 1995 के तहत वक्फ बोर्ड की शक्तियों के दायरे पर बहस के बीच हुआ है.
अदालत ने यह अंतरिम आदेश 'द हेल्पिंग सिटिजन' NGO के संस्थापक ए आलम पाशा द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के बाद दिया. पाशा ने तर्क दिया कि मुस्लिम जोड़ों के लिए विवाह प्रमाण पत्र जारी करने में वक्फ बोर्ड की कार्रवाई उसके कानूनी अधिकार क्षेत्र से परे है.
याचिका में विशेष रूप से 30 सितंबर 2023 के एक सरकारी आदेश को चुनौती दी गई है, जिसने जिला वक्फ बोर्डों को मुस्लिम विवाह के लिए मैरिज सार्टिफिकेट जारी करने के लिए अधिकृत किया था. पाशा ने तर्क दिया कि वक्फ अधिनियम 1995, जो वक्फ बोर्ड के लिए वैधानिक ढांचे को रेखांकित करता है, बोर्ड को ऐसे कार्य करने का अधिकार नहीं देता है.
सरकारी आदेश को रद्द करने की अपील
उन्होंने दावा किया कि यह कदम 'अल्ट्रा वायर्स' (कानूनी अधिकार से परे) था और अदालत से सरकारी आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया. इस दौरान उन्होंने वक्फ बोर्ड की कानूनी जिम्मेदारियों पर भी स्पष्टता मांगी. उन्होंने जोर देकर कहा कि इसकी प्राथमिक भूमिका वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन करना है, न कि विवाहों को प्रमाणित करना.
हाई कोर्ट की टिप्पणियां
हाई कोर्ट की खंडपीठ ने सरकार के आदेश में संभावित ओवररीच को नोट किया और वक्फ बोर्ड को विवाह प्रमाणन शक्तियां सौंपने के कानूनी आधार पर सवाल उठाया. कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को याचिका पर जवाब देने का निर्देश दिया. साथ ही इस संबंध में वक्फ बोर्ड के अधिकार को अगले नोटिस तक निलंबित कर दिया.