देहरादून:भांग के पौधे को मारिजुआना या फिर कैनबिस के नाम से जाना जाता है. इसका एक सबसे बुरा पहलू यह है कि यह नशे के लिए बदनाम है, लेकिन भांग के कई औषधीय गुण हैं. कैंसर, एचआईवी सहित कई ऐसी बीमारियों के इलाज में यह लाभदायक होती है. भांग से मिलने वाले कंपोनेंट मरीज के इलाज के लिए मेडिकल क्षेत्र में सदियों से इस्तेमाल किए जा रहे हैं. भांग का उपयोग हिमालय से निकलकर यूरोप और अमेरिका के साथ-साथ दुनिया के अन्य हिस्सों में पहुंचा और हेंप फाइबर, प्लांट प्रोटीन के अलावा मेडिकल कैनबिस के रूप में इसका इस्तेमाल तकरीबन 40 देशों में शुरू हुआ.
बदनाम नहीं वरदान है हिमालय की भांग (video-ETV Bharat) हिमालय का नेटिव पौधा भांग:सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के निदेशक निपेंद्र चौहान ने बताया कि भांग जिसे व्यावसायिक रूप में इंडस्ट्रियल हेंप कहा जाता है. वह विशेष तौर से हिमालय का नेटिव पौधा है और उच्च हिमालय क्षेत्र के साथ-साथ शिवालिक हिमालय में भी सदियों से यानी हजारों सालों से यहां के मूल निवासी भांग का रेशा बनाने और इसके बीज का खाद्य सामग्री में इस्तेमाल करते आए हैं. उन्होंने कहा कि हिमालय के मूल निवासियों ने नशे वाली भांग और व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली भांग में भी पारंपरिक तौर पर अंतर ढूंढा है.
गुणकारी भांग का स्याह अतीत:साल 1910 में ब्रिटिश सरकार ने भांग की खेती को प्रतिबंधित कर दिया, लेकिन उसके बावजूद भी उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में इसके घरेलू इस्तमाल के लिए अनुमति दे दी गई. जिससे इसका इस्तेमाल रेशा (फाइबर) बनाने और दाने की खाद्य सामग्री (चटनी) में किया गया. इन इस्तेमाल में नशा दूर-दूर तक नहीं था, क्यूकि पहाड़ों के लोग इसके दुष्परिणाम से वाकिफ थे. साल 1985 में जब भांग का गैरकानूनी इस्तेमाल दुनिया में बहुत ज्यादा बढ़ने लगा, तो यूनाइटेड नेशन (UN) में एक रेजुलेशन पास किया और हेंप प्रोडक्शन को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया. पहली दफा उत्तराखंड के पहाड़ों में भी इसके इस्तेमाल पर कानूनी कार्रवाई होने लगी.
उत्तराखंड में हेंप उत्पादन, बदनाम नहीं वरदान:उत्तराखंड में भांग के इंडस्ट्रियल और फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री में इस्तेमाल को देखते हुए तमाम इंडस्ट्रियल लोगों को उत्तराखंड में इसकी अपार संभावनाएं नजर आई और लगातार सरकार को प्रदेश में हेंप पॉलिसी को लेकर दबाव बनाया गया कि इंडस्ट्रियल हेंप की मार्केट में बहुत डिमांड है. इसके बाद भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए उत्तराखंड सरकार 2016 में पहली बार प्रदेश में इंडस्ट्रियल हेल्प की खेती के लिए पॉलिसी लेकर आई.
विशेषज्ञ बोले भांग की खेती के लिए नहीं मेंटेनेंस की जरूरत:विशेषज्ञ और सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के निदेशक निपेंद्र चौहान ने बताया कि उत्तराखंड का मौसम हेंप उत्पादन के लिए इतना मुफीद है कि यहां बिना उगाई ही उन्नत किस्म की हेंप बिना प्रयास के पाई जाती है. हेंप उत्पादन उत्तराखंड की कृषि समस्याओं के सामने भी एक बड़ा विकल्प के रूप में नजर आता है, क्योंकि इसके उत्पादन में अन्य फसलों की तरह ना तो भारी मेंटेनेंस की जरूरत है और ना ही जंगली जानवर से नुकसान का डर है. उन्होंने कहा कि अगर गहन शोध और व्यवस्थित तौर तरीके के साथ उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों में इसकी खेती की जाए तो यह उत्तराखंड के लिए वरदान साबित हो सकता है.
2016 में आई हेंप पॉलिसी:2016 में उत्तराखंड सरकार द्वारा लाई गई इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी में यह स्पष्ट परिभाषित था कि 0.3% THC (tetrahydrocannabinol) से नीचे की ही हेंप खेती को उगाने की अनुमति दी गई है. THC (tetrahydrocannabinol) भांग में पाए जाने वाला एक ऐसा रसायन है जो कि नशा पैदा करता है. इंडस्ट्रियल हेंप के उत्पादन में इस नशे वाले रसायन युक्त पौधे को उगाने की अनुमति दी गई. इंडस्ट्रियल हेंप को उगाने के लिए आबकारी विभाग से लाइसेंस लेना होगा और आबकारी विभाग की देखरेख में ही औद्योगिक भांग की खेती की जाएगी.
आबकारी विभाग की देखरेख में होगी भांग की खेती:फसल में फूल आने पर पहले सैंपल आबकारी विभाग के माध्यम से सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स की लेबोरेटरी में परीक्षण के लिए भेजा जाएगा. इस तरह से सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स की लेबोरेटरी से टेस्ट के बाद फसल में THC 0.3% से नीचे होने पर ही उसे आगे का उत्पादन करने की अनुमति मिलेगी और अगर THC 0.3% से ऊपर होता है तो आबकारी विभाग द्वारा फसल को नष्ट कर दिया जाएगा. उत्तराखंड में अब तक 38 किसानों द्वारा इंडस्ट्रियल हेंप का लाइसेंस लिया जा चुका है.
इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी आने के बाद 44 लाइसेंस बने: उत्तराखंड में 2016 में इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी आने के बाद तकरीबन 44 लाइसेंस बनाए गए, जिनमें से पौड़ी जिले में सबसे ज्यादा 13 लाइसेंस बनाए गए, जबकि बागेश्वर जिले में 10 इंडस्ट्रियल हेंप उगाने के लिए लाइसेंस बनाए गए. नैनीताल में 4 लाइसेंस, हरिद्वार में 5 लाइसेंस, उधम सिंह नगर में तीन लाइसेंस, पिथौरागढ़ में 4 लाइसेंस, चंपावत और देहरादून में 2- 2 लाइसेंस बनाए गए, जबकि टिहरी और चमोली में एक-एक लाइसेंस किसानों द्वारा लिया गया.
लाइसेंस धारक बोले इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी से नहीं मिला आउटपुट:औद्योगिक हेंप उत्पादन के लाइसेंस धारक विवेक विक्रम ने बताया कि जब 2016 में उत्तराखंड सरकार ने इंडस्ट्रियल हेंप उत्पादन को लेकर बात की तो वह बेहद उत्साहित थे, लेकिन जिस तरह से सोचा गया था उसे तरह से आउटपुट नहीं मिला. सरकार की बेहद सख्त पॉलिसी और बीजों के उपलब्धता न होने की वजह से उनके द्वारा इस पर कुछ खास कार्य आगे नहीं किया गया और वह यहां से वापस लौट गए. इसी तरह से कुछ अन्य लाइसेंस धारकों का भी यही कहना था कि इंडस्ट्रियल हेंप के उत्पादन के लिए बीजों की उपलब्धता न होना एक सबसे बड़ी चुनौती है, जिसकी वजह से इसमें कुछ खास काम नहीं हो पाया है.
इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी में बदलाव करने जा रही सरकार:आबकारी आयुक्त हरिश्चंद्र सेमवाल ने बताया कि अब तक इंडस्ट्रियल हेंप से उतना ज्यादा अच्छा रिस्पांस नहीं मिल पाया है. एक लाइसेंस से 1000 प्रति हेक्टेयर प्रतिवर्ष सरकार को राजस्व राज्यों से मिलता है और अब तक यह राजस्व एक लाख भी नहीं पहुंचा है. उन्होंने बताया कि उत्तराखंड सरकार अपनी हेंप पॉलिसी में जरूरी बदलाव करने जा रही है और जल्द ही उत्तराखंड में नई हम पॉलिसी के बाद इंडस्ट्रियल हेंप उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा.
क्यूं परवान नहीं चढ़ी हेंप फार्मिंग:जानकारों के मुताबिक इसमें दो बड़ी चुनौतियां थी. पहली चुनौती थी इंडस्ट्रियल हेंप उगाने के लिए उस किस्म के बीज यानी 0.3% THC से नीचे के बीज की उपलब्धता न होना. कुछ किसानों द्वारा विदेशों से इंपोर्ट बीज पर प्रयोग किया गया, लेकिन रिजल्ट बेकार रहे.दूसरी चुनौती थी कि इंडस्ट्रियल हेंप से केवल रेशा और बीज निकलने की अनुमति थी और पत्ती-भूसे के प्रोसेस की अनुमति पॉलिसी में नहीं थी. दरअसल इंडस्ट्रियल हेंप के पत्ती और भूसे को प्रोसेस करके उसे CBD और टोटल एक्सट्रैक्ट प्राप्त किया जाता है. CBD (Cannabidiol) जो कि कैंसर के इलाज में एक महत्वपूर्ण कंपोनेंट होता है और वहीं इसके अलावा टोटल एक्सट्रैक्ट भी मेडिकल इंडस्ट्री में इस्तेमाल होने वाला महत्वपूर्ण कंपोनेंट है और इसकी डिमांड मेडिकल इंडस्ट्री में काफी ज्यादा है.
भांग की पत्तियों और भूसे से इकोनॉमी बढ़ेगी:सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स के निदेशक निपेंद्र चौहान ने बताया कि इंडस्ट्रियल हेंप के रेशे और बीज के इस्तेमाल के साथ-साथ अगर इसके पत्तियों और भूसे के इस्तेमाल के प्रोसेस की अनुमति मिल जाए तो इंडस्ट्रियल हेंप की इकोनॉमी सीधा दोगुना बढ़ जाएगी. इंडस्ट्री की डिमांड पर उत्तराखंड सरकार ने इस पर पहल की है और CAP (centre for aromatic plants) को नोडल बनाते हुए न्यू पॉलिसी पर काम करने के लिए निर्देश दिया है, जिस पर CAP द्वारा लगभग पूरा ड्राफ्ट तैयार कर लिया गया है. लोगों के सुझाव के लिए इसे पब्लिक भी किया गया है. सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही उत्तराखंड में न्यू हेंप पॉलिसी देखने को मिल सकती है.
उत्तराखंड की हेंप पॉलिसी से प्रभावित हिमाचल और अन्य राज्य:उत्तराखंड की 2016 में आई इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी से हिमाचल बेहद प्रभावित हुआ, क्योंकि हिमाचल भी एक पर्वतीय हिमालय राज्य है और हिमाचल में भी उत्तराखंड की तरह वातावरण है. उत्तराखंड में हेंप औद्योगिकरण जितना मुफीद है उतना ही हिमाचल में भी इसकी संभावनाएं हैं. इसी को देखते हुए हिमाचल का एक डिलिगेशन पिछले साल उत्तराखंड आया, जिसमें हिमाचल के एक कैबिनेट मंत्री के साथ 6 विधायक मौजूद थे और उन्होंने उत्तराखंड की इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी पर जानकारी ली. उत्तराखंड की इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी की तर्ज पर ही हिमाचल ने भी अपने विधानसभा में इंडस्ट्रियल हैंड पॉलिसी पर चर्चा की और उसे लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाए. इसके अलावा इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी का मध्य प्रदेश, सिक्किम नॉर्थ ईस्ट सहित कई राज्यों ने इंडस्ट्रियल हेंप पॉलिसी पर काम शुरू कर दिया है.
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