गया:रक्त की कमी वाले मरीजों के लिए रक्त किसी मशीन में बनाया नहीं जा सकता बल्कि सेवा भाव से दान किया जाता है, जिले में ऐसे कुछ युवा और संस्था हैं जो रक्तदान के लिए कार्य करती है. रक्त की कमी से जूझ रहे मरीजों के लिए वह देवता बनकर सामने आते हैं. इनके प्रयासों से हजारों लोगों की जान बच चुकी है. ऐसे ही एक रक्तवीर और अंगदान करने वाले नीरज कुमार हैं.
ब्लड डोनर ऑफ बिहार नीरज कुमार: जिले के सगाही खाप गांव के रहने वाले नीरज कुमार ने 32 वर्ष की उम्र में 52 बार रक्तदान कर चुके हैं और 53 वीं बार रक्तदान करने के लिए तैयार हैं. इन्होंने 24 साल की आयु में अंगदान करने का संकल्प पत्र भरा था. नीरज के समाजी कार्यों के लिए देश के कई बड़े पुरस्कार मिल चुके हैं. 2017 में तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों अवॉर्ड मिला था.
रक्तदान के पीछे की कहानी:नीरज कुमार ने पहली बार रक्तदान एक बड़ी घटना के बाद किया था. उन्होंने बताया कि उनकी बड़ी बहन की मौत समय पर खून नही मिलने के कारण हो गई थी. नीरज पर इस दुखद घटना का प्रभाव पड़ा और तभी से नीरज ने बहन की मौत के कारण को अपनी जिंदगी का बड़ा मकसद बना लिया. पहली बार उस वक्त रक्तदान किया था, जब वह दसवीं के छात्र थे.
"2012 से लगातार हर तीन महीने पर रक्तदान करते हैं. रक्तदान करने का पूरा नेटवर्क बन चुका है. संस्था के साथ मिलकर सरकारी अस्पतालों के लिए रक्तदान कैंप का आयोजन करते हैं. एक हजार से अधिक लोगों का मेरे पास डेटा है जो कभी भी किसी समय जरूरत पड़ने पर कैंप लगाकर रक्तदान कर सकते हैं. इसमें हर तरह के ब्लड ग्रुप के लोग हैं."-नीरज कुमार, रक्तदान करने वाले युवक
24 की उम्र में अंगदान: नीरज जिले के एक ऐसे युवा हैं जो अपने शरीर को दान कर चुके हैं. 24 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंगदान किया था. नीरज ने कहा कि वह ' जीतेजी रक्तदान, मरने के बाद अंगदान' के स्लोगन के साथ सेवा कर रहे हैं. 2016 में उन्होंने निस्वार्थ भाव से ' द दीची देहदान समिति पटना' को संकल्प पत्र दिया था.
शुरू में परिवार का नहीं मिला सपोर्ट : बेटे के अंगदान का फैसला घर के सदस्यों के साथ मां को भी पसंद नहीं था. घर के परिवार के किसी सदस्य की सहमति के बिना अंगदान नहीं किया जा सकता. ऐसे में नीरज की जिद और अटल फैसले को देख मां उनके समर्थन को मजबूर हो गईं.
बेटे के लिए मां ने भी किया अंगदान:मां मालती देवी ने ना सिर्फ नीरज के संकल्प पत्र पर सहमति दी बल्कि उन्होंने खुद भी अंगदान करने का फैसला कर लिया. मां मालती देवी ने भी द दीची देहदान समिति पटना को संकल्प पत्र दिया है कि वह भी मृत्यु के बाद अपने अंग को दान करेंगी.