नई दिल्ली: राजधानी के उत्तर-पूर्वी जिले में चार साल पहले 22 फरवरी को ऐसा दंगा हुआ, जिसके घाव आज भी लोगों के जहन में हैं. इसे दिल्ली दंगे के नाम से जाना गया, जिसमें 53 लोगों की मौत होने के साथ, 500 के अधिक लोग घायल हो गए थे. उन दिनों को याद कर पीड़ित परिवारों के जख्म फिर हरे हो जाते हैं और वो ऐसे भावुक हो जाते हैं, जैसे ये घटना कल ही की हो.
ऐसे शुरू हुआ था दंगा:इस बारे में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नजदीक मोटरसाइकिल गैराज चलाने वाले अलीम ने बताया कि, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे महिलाएं धरना दे रही थीं, जिससे रोड जाम हो गई थी. इस धरने को देखते हुए चांदबाग की पुलिया पर भी धरना शुरू हो गया, जिसके बाद वजीराबाद रोड भी जाम की चपेट में आ गया. जब जाम खुलवाने के लिए पुलिसबल मौके पर पहुंचा, तो वहां मौजूद लोगों ने उनपर पथराव कर दिया, जिससे दंगा भड़क उठा. उन्होंने बताया कि, इस दौरान भीड़ ने कई पुलिसकर्मियों को पीटा था. इसके बाद जैसे-तैसे ये लोग जान बचाकर भागे, लेकिन दंगा बढ़ता ही गया. देखते ही देखते यह दंगा ब्रजपुरी की पुलिया, शिव विहार, कर्दमपुरी, कबीरनगर, बाबरपुर, मुस्तफाबाद, गोकलपुरी सहित अन्य इलाकों में भी फैल गया.
बेटे की हुई मौत: 24 फरवरी को मुस्तफाबाद के बाबूनगर निवासी हरी सिंह सोलंकी के 26 वर्षीय बेटे राहुल सोलंकी की गोली लगने से मौत हो गई थी. बेटे को खोने का दर्द आज भी उनके सीने में है. इस घटना के बाद वो इतना टूट गए कि उन्होंने कॉलोनी में अपना मकान ही बेच दिया और दूसरी जगह शिफ्ट हो गए. उन्होंने बताया कि, मेरा बेटा दूध लेने गया था, तभी गली के कोने पर दंगाइयों ने उसे गोली मार दी. अपनी आंखों के सामने हुए दंगे के खौफनाक मंजर को मेरी आंखें कभी नहीं भूल सकती. एक महीने बाद मेरी बेटी की शादी होने वाली थी, लेकिन पलभर में सबकुछ बिखर गया.