रांची: झारखंड में राज्यसभा की दो सीटों के लिए होने जा रहा चुनाव दिलचस्प हो सकता है. संभावना जताई जा रही है कि बिजनेसमैन हरिहर महापात्रा की इंट्री से राज्यसभा चुनाव में कहीं खेला ना हो जाए. सोमवार को इसका ट्रेलर सामने आ जाएगा, जब महापात्रा नामांकन दाखिल करेंगे. क्योंकि उसी वक्त स्पष्ट हो जाएगा कि उनके प्रस्तावक कौन-कौन बने हैं. दरअसल, नामांकन पत्र में प्रस्तावक के तौर पर कुल संख्या के 10 प्रतिशत या सदन के कम से कम 10 सदस्यों का समर्थन जरुरी होता है. जाहिर है कि उन्हें दस प्रस्तावकों की जरुरत होगी. यह आंकड़ा कांग्रेस के समर्थन के बगैर पूरा नहीं हो सकता.
क्या झारखंड में भी दिखेगा हिमाचल एपिसोड
कांग्रेस के पास कुल 17 विधायक हैं. लेकिन झारखंड से राज्यसभा तक पहुंचने के लिए विधायकों की पहली प्राथमिकता के 27 वोट की जरुरत होती है. जाहिर है कि अगर क्रॉस वोटिंग हुई तो खेल बिगड़ सकता है. इसका नमूना हिमाचल प्रदेश में दिख चुका है. 43 विधायकों वाली पार्टी होने के बावजूद 25 विधायकों के समर्थन के साथ चुनाव मैदान में उतरे भाजपा के हर्ष महाजन ने कांग्रेस के मनु सिंघवी को मात दे दी थी. हर्ष महाजन के पक्ष में कांग्रेस के छह और 3 निर्दलीय विधायकों ने वोटिंग कर दी थी. दोनों प्रत्याशियों को 34-34 वोट मिलने पर टाई हो गया और ड्रॉ निकालने पर भाजपा के हर्ष महाजन जीत गये. बिजनेसमैन हरिहर महापात्रा की इंट्री से इसलिए भी चर्चाओं का बाजार गर्म है क्योंकि 2016 में उनकी पत्नी प्रीति महापात्रा कांग्रेस नेता रहे कपिल सिब्बल के खिलाफ राज्यसभा चुनाव लड़ चुकी हैं.
क्रॉस वोटिंग बिगाड़ सकती है खेल
इन कयासों के बावजूद सारा समीकरण झामुमो के पूर्व विधायक और राज्यसभा प्रत्याशी सरफराज अहमद के पक्ष में दिख रहा है. उनके पास झामुमो के 29 विधायकों का समर्थन है. उनके लिए मुसीबत तभी खड़ी होगी जब झामुमो की ओर से क्रॉस वोटिंग होगी. क्योंकि अगर महापात्रा को कांग्रेस के 17 विधायकों, राजद का एक, भाकपा माले का एक, एनसीपी का एक और दो निर्दलीय (सरयू राय और अमित यादव) विधायकों का समर्थन मिल भी जाता है, तब भी कि वह ज्यादा से ज्यादा पहली प्राथमिकता के 22 वोट बटोर पाएंगे. इसमें अगर आजसू के एक वोट को भाजपा के लिए और दो वोट को महापात्रा के साथ जोड़ देते हैं तो उनके पास 24 वोट हो जाते हैं. फिर भी जीत के लिए पहली प्राथमिकता के 3 वोट की जरुरत होगी. ऐसा संभव नहीं दिखता. क्योंकि महापात्रा कांग्रेस के प्रत्याशी नहीं है. भाकपा माले भी अपने स्टैंड पर कायम रहती है. लिहाजा, सारा खेल झामुमो के क्रॉस वोटिंग पर ही निर्भर होगा.
लिहाजा, कयास के तौर पर ही सही लेकिन हिमाचल प्रदेश वाली तस्वीर बनने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. क्योंकि झारखंड में राज्यसभा चुनाव के दौरान क्रॉस वोटिंग कोई नई बात नहीं है. इस मामले में सोरेन परिवार की बहू सीता सोरेन कानूनी पेंच में फंसी हुई हैं. ऐसी सूरत बनने की वजह भी है. क्योंकि हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के बाद गठबंधन को जोड़े रखने वाला कोई नेता नजर नहीं आ रहा है. चंपई सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने और कांग्रेस के चार विधायकों को दोबारा मंत्री बनाए जाने के खिलाफ शेष कांग्रेस विधायकों ने जिस तरह से दिल्ली दौड़ लगाई, उससे साफ है कि आंतरिक गुटबाजी चरम पर है.
रही बात भाजपा कि तो पार्टी ने प्रदीप वर्मा को राज्यसभा का प्रत्याशी घोषित कर दिया है. वह प्रदेश महामंत्री भी हैं. उनका नाम जारी होने से पहले आशा लकड़ा और अरुण उरांव का नाम रेस में था. लेकिन सवाल है कि क्या अब नाम की घोषणा होने के बाद प्रदीप वर्मा 11 मार्च को नामांकन की प्रक्रिया पूरी सकते हैं. क्योंकि महाशिवरात्रि की वजह से 8 मार्च को विधानसभा में छुट्टी थी. 9 मार्च को शनिवार और 10 मार्च को रविवार होने की वजह से भी विधानसभा में छुट्टी है. क्या यह संभव है कि प्रदीप वर्मा सोमवार को पर्चा भी खरीद लें और चार घंटे के भीतर सारी प्रक्रिया पूरी कर नामांकन भी दाखिल कर दें. जबकि प्रत्याशी को 11 बजे से 3 बजे के बीच नामांकन करना है. इसके लिए लंबी प्रक्रिया पूरी करनी होती है.