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ईडी को कुछ वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए, मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में कम दोषसिद्धि पर सुप्रीम कोर्ट का सुझाव - Supreme Court to ED

Do some scientific investigation Supreme Court to ED: सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के एक व्यवसायी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए ईडी को अभियोजन और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान देने को कहा. ईडी ने व्यवसायी को कोयला की ढुलाई पर अवैध वसूली से जुड़े धन शोधन मामले में गिरफ्तार किया है.

Do some scientific investigation Supreme Court to ED
सुप्रीम कोर्ट (IANS)

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Aug 7, 2024, 10:27 PM IST

नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कहा कि एजेंसी को मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में कम दोषसिद्धि दर (Conviction Rate) की पृष्ठभूमि में अभियोजन और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए.

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को लोकसभा को बताया कि ईडी ने 2014 से 2024 के बीच धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत कुल 5,297 मामले दर्ज किए, जबकि 40 मामलों में आरोपियों को दोषी ठहराया गया.

जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने संसद में केंद्र के बयान का हवाला देते हुए कहा कि ईडी को दोषसिद्धि दर बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए. पीठ ने छत्तीसगढ़ के एक व्यवसायी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसे कोयला की ढुलाई पर अवैध वसूली से जुड़े धन शोधन मामले में गिरफ्तार किया गया है. पीठ में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस उज्जल भुइयां भी शामिल हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की पैरवी कर रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता एसवी राजू से कहा कि केंद्रीय एजेंसी को अभियोजन और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है. पीठ ने कहा, "सभी मामले जहां आप संतुष्ट हैं कि प्रथम दृष्टया मामला बनता है, आपको उन मामलों को अदालत में साबित करने की आवश्यकता है."

ईडी के वकील ने तर्क दिया कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 161 के विपरीत, पीएमएलए की धारा 50 के तहत बयानों को सबूत माना जाता है.

इस पर पीठ ने वकील से कहा कि मौजूदा मामले में एजेंसी कुछ गवाहों के बयानों, हलफनामों पर जोर दे रही है, जबकि मौखिक साक्ष्य के प्रकार की ओर इशारा कर रही है. इस तरह के मौखिक साक्ष्य कल, भगवान जाने कि व्यक्ति इस पर कायम रहेगा या नहीं. आपको कुछ वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए.

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