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ज्ञानवापी की तरह होगा धार के भोजशाला का सर्वे, इंदौर हाई कोर्ट का बड़ा फैसला

Dhar Bhojshala ASI Survey: एमपी की आर्थिक राजधानी इंदौर हाई कोर्ट ने धार भोजशाला विवाद को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. इंदौर हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी की तरह धार के भोजशाला का एएसआई सर्वे कराने की इजाजत दे दी है.

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Mar 11, 2024, 4:24 PM IST

Updated : Mar 11, 2024, 9:21 PM IST

Dhar Bhojshala ASI Survey
ज्ञानवापी की तरह होगा धार के भोजशाला का सर्वे

ज्ञानवापी की तरह होगा धार के भोजशाला का सर्वे

इंदौर।मध्य प्रदेश के धार स्थित भोजशाल विवाद को लेकर हाईकोर्ट की इंदौर बैंच ने बड़ा फैसला सुनाया है. इंदौर हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी की तरह की धार की भोजशाला का भी एएसआई ( ASI-Archaeological Survey of India) सर्वे करने का आदेश दिया है. हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन की अपील को मानते हुए कोर्ट ने सर्वे की इजाजत दे दी है. बता दें इस मुद्दे को लेकर सामाजिक संगठन 'हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस ने याचिका दाखिल की थी.

हाई कोर्ट ने सर्वे के लिए कमेटी की गठित

इंदौर हाईकोर्ट में भोजशाला के सर्वे की मांग वाली याचिक पर बहस पहले ही हो चुकी थी. जहां कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. वहीं सोमवार को हुई सुनवाई में हाई कोर्ट ने सर्वे कराने की इजाजत दे दी है. हिंदू पक्ष ने पुरातत्व विभाग से सर्वे कराने की मांग की थी. बता दें कोर्ट में इस मामले में करीब सात याचिकाएं दाखिल की गई थी. इंदौर कोर्ट में जबलपुर हाई कोर्ट में चल रहे सभी केस कि लिखित और विस्तारपूर्वक जानकारी देने कहा था. कोर्ट ने सर्वे के आदेश के साथ ही 5 सदस्यीय कमेटी भी गठित कर दी है. कमेटी को 6 हफ्ते का समय दिया गया है.

क्या है भोजशाला विवाद की वजह

बता दें भोजशाला को सभी हिंदू संगठन राजा भोज कालीन इमारत मानते हुए इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं. हिंदूओं का कहना है कि राजवंश काल में यहां कुछ समय के लिए मुस्लिमों को नमाज पढ़ने की अनुमति दी गई थी. जबकि वहीं दूसरे पक्ष मुस्लिमों का कहना है कि वो सालों से यहां नमाज पढ़ रहे हैं. वे इसे भोजशाला कमान मौलाना मस्जिद मानते हैं. जबकि हिंदू इसे पूजा का स्थल या कहें सरस्वती मंदिर मानते हैं.

भोजशाला से जुड़ा इतिहास

वहीं इतिहासकारों के मुताबिक करीब 1 हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था. यहां सन 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने राज किया था. राजा भोज मां सरस्वती के भक्त थे, लिहाजा उन्होंने 1034 ईस्वी में यहां एक महाविद्यालय की स्थापना कराई और मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित की. जिसे बाद में 'भोजशाला' के नाम से जाना गया. कहा जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला को ध्वस्त कर दिया था. बाद में 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी थी.

कहा जाता है कि सन 1875 में यहां पर खुदाई हुई थी. तब यहां मां सरस्वती की एक प्रतिमा मिली थी. इस प्रतिमा को मेजर किनकेड नाम का अंग्रेज लंदन ले गया था. जो अभी लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है. हाई कोर्ट से इस प्रतिमा को वापस लाने की भी मांग की गई है.

यह हैं पक्षकार

हाई कोर्ट में दाखिल याचिका में यह लोग पक्षकार हैं, जिसमें हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस, आशीष गोयल, रंजना अग्निहोत्री, जितेंद्र बिसने, सुनील सास्वत, मोहित गर्ग और आशीष जनक हैं. इसमें केंद्र सरकार, आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, एमपी सरकार, आर्कियोलॉजिकल ऑफिसर, धार कलेक्टर, एसपी, मौलाना कमालूद्दीन, अब्दुल समद खान और महाराज भोज संस्थान समिति को पार्टी बनाया गया है.

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बसंत पंचमी पर रहती ही कड़ी सुरक्षा

गौरतलब है कि यहां हर साल बसंत पचंमी पर कड़ी सिक्योरिटी तैनात की जाती है. खासतौर पर जब बसंत पंचमी और शुक्रवार आग एक साथ हो तब तो शहर को अलर्ट पर रखा जाता है. साल 2003 में भोजशाला परिसर में सांप्रदायिक तनाव में हिंसा फैल गई थी. जिसके बाद से व्यवस्था में कुछ परिवर्तन किए गए. यह तय किया गया कि हर मंगलवार को बगैर फूल-माला के और बसंत पंचमी पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक हिंदुओं को पूजा की अनुमति दी गई. वहीं शुक्रवार को मुस्लिमों को नमाज की अनुमति दी गई. जबकि बाकि पांच दिन भोजशाला पर्यटकों के लिए खुली रहती है.

Last Updated : Mar 11, 2024, 9:21 PM IST

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