बिहार

bihar

ETV Bharat / bharat

सरकार बदलने के बाद 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के पक्ष में JDU, बिहार के कई दलों को ऐतराज, देखें रिपोर्ट

One Nation One Election: बिहार में वन नेशन वन इलेक्शन पर विवाद गहरा गया है, क्योंकि सरकार बदलने के बाद जदयू ने पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन पत्र सौंप दिया है. बिहार के कई दलों में इससे नाराजगी है. विपक्षी का मानना है कि जदयू ने अपना हथियार डाल दिया है. पढ़ें पूरी खबर.

वन नेशन वन इलेक्शन पर नेताओं की राय
वन नेशन वन इलेक्शन पर नेताओं की राय

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Feb 19, 2024, 8:18 PM IST

वन नेशन वन इलेक्शन पर नेताओं की राय

पटनाःदेश में एक बार फिर एक राष्ट्र एक चुनाव कराए जाने की प्रक्रिया तेज है. यानि लोकसभा और विधानसभा चुनाव दोनों साथ साथ करने की कवायत हो रही है. हालांकि जिस रफ्तार से समिति इसपर काम कर रही है. उसी रफ्तार से इसका विरोध भी किया जा रहा है. सत्ता पक्ष के नेता इसे अच्छा बता रहे हैं तो विपक्षी नेता इसे अधिनायकवादी बता रहे हैं. दूसरी ओर विशेषज्ञों का मानना है कि इसपर अभी और विमर्श करने की जरूरत है.

जदयू ने सौंपा समथर्न पत्रः बिहार में एनडीए की सरकार बनने के बाद जदयू भी एक राष्ट्र एक चुनाव का समथर्न कर रही है. सरकार की ओर से ललन सिंह और संजय झा ने समिति के प्रमुख पूर्व राष्ट्रपति को समर्थन पत्र भी सौंपा है. जदयू की पहल के बाद बिहार में वन नेशन वन इलेक्शन पर विवाद शुरू हो गया है. क्षेत्रीय दलों को चिंता सता रही है कि उनके अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.

'देश हित में होगा यह निर्णय': जनता दल यूनाइटेड ने एक कदम आगे बढ़कर वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत की है. पार्टी की ओर से जो ज्ञापन सौंपा गया है, उसमें कहा गया है कि विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ होने चाहिए. हालांकि स्थानीय निकाय चुनाव अलग होने की बात कही है. विधायी चुनाव के साथ स्थानीय निकाय के चुनाव नहीं होने चाहिए. जदयू नेता जमा खान ने इसे देश हित में बताया है.

"हमारे नेता नीतीश कुमार ने वन नेशन वन इलेक्शन के पक्ष में बात की है. यह देश हित में है. हमलोग पूरे तौर पर वन नेशन वन इलेक्शन के समर्थन में खड़े हैं."-जमा खान, जदयू नेता

ईटीवी भारत GFX

राजनीतिक दलों में मतभेद: वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर बिहार के राजनीतिक दलों के बीच बहस शुरू हो गई है. मतभेद भी उभर कर सामने आने लगे हैं. राष्ट्रीय जनता दल ने खुले तौर पर वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध किया है. राजद का मानना है कि यह संभव नहीं है. राजद ने कहा कि अगर ऐसा है तो पूरे देश की सरकार को भंग कर दिया जाए. इस दौरान जदयू पर भी कई आरोप लगाए. कहा कि जदयू ने अपना हथियार डाल दिया है.

"वन नेशन वन इलेक्शन संभव नहीं है. अगर ऐसा है तो पूरे देश की सरकार को भंग कर दिया जाए और चुनाव कराया जाए. जदयू ने भाजपा के सामने हथियार डाल दी है. इस वजह से उन्होंने प्रस्ताव के पक्ष में आवाज बुलंद किए हैं."-रामानुज प्रसाद, राजद विधायक

कांग्रेस को इसपर आपत्तिः राजद के साथ साथ कांग्रेस भी इसका विरोध कर रही है. हालांकि समिति में तीन नेताओं में कांग्रेस के वरीष्ठ नेता अधीर रंजन चौधरी भी शामिल हैं. इसके बावजूद कांग्रेस इसके विरोध में अपनी आवाज बुलंद कर रही है. कांग्रेस नेता शकील अहमद ने कहा कि यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है.

"व्यावहारिक रूप से वन नेशन वन इलेक्शन संभव नहीं है. बिहार को ही देख लीजिए, कल हमारी सरकार थी. आज सरकार बदल गई. देश के अंदर राजनीतिक परिस्थितियों बहुत तेजी से बदलती है. एक साथ चुनाव होना संभव नहीं है."-डॉ शकील अहमद खान, कांग्रेस नेता

ईटीवी भारत GFX

माले और AIMIM का विरोधः माले विधायक अजीत कुशवाहा ने कहा है कि "वन नेशन वन इलेक्शन के जरिए भारतीय जनता पार्टी देश को अधिनायकवाद की ओर ले जाना चाहती है. देश में वन नेशन वन हेल्थ, वन नेशन वन एजुकेशन, वन नेशन वन एंप्लॉयमेंट की बात क्यों नहीं की जाती है. यह फेडरल स्ट्रक्चर में राज्यों को दिए गए अधिकार को छीनने का जरिया हो सकता है."AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने कहा है कि"वन नेशन वन इलेक्शन को हम एक सिरे से खारिज करते हैं. यह प्रजातांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है. व्यावहारिक रूप से संभव भी नहीं है.

2029 हो सकता है लागूः भाजपा का केंद्र में सरकार है, ऐसे में BJP की ओर से ही ऐसा प्रस्ताव लाया गया था. इसके बाद समिति बनाकर इसपर काम किया जा रहा है. इसका खाका भी तैयार कर लिया गया है. संभवाना है अगर इसे मान्यता मिल जाता है तो 2029 से इसे लागू किया जाएगा. क्योंकि 2026 तक कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है. हालांकि इसमें निकाय चुनाव भी शामिल है, लेकिन इसको लेकर जदयू ने कहा कि इसे अलग करना चाहिए.

"वन नेशन वन इलेक्शन देश के लिए जरूरत है. आम लोगों पर बोझ भी काम होगा. बार-बार चुनाव होने से संसाधन सरकार को संसाधन नहीं झोंकने पड़ेंगे. सभी दलों से विमर्श और आम सहमति के बाद इसे लागू किया जाना चाहिए."-नीतीश मिश्रा, भाजपा विधायक

क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ? इधर राजनीतिक विशेषज्ञ भी अपनी-अपनी राय दे रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि विपक्ष इससे डर रही है. पार्टी को डर है कि सरकार इसे नेशनल इंटरेस्ट के आधार पर लागू करेगा. इस कारण क्षेत्रिय दलों पर इसका बुरा असर पड़ेगा. क्योंकि विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग अलग मुद्दा बनाकर लड़ा जाता है. नेता अपने अपने क्षेत्र में काम के अनुरुप वोट मांगते हैं.

"देश के अंदर स्वतंत्रता के बाद चुनाव एक साथ हुआ करते थे, लेकिन बाद के दिनों में परिस्थितियां बदल गई. इसे नेशनल इंटरेस्ट में इसे लागू किया जाना चाहिए. वन नेशन वन इलेक्शन से क्षेत्रीय दलों को डर है कि इससे उनपर असर पड़ेगा."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विशेषज्ञ

'विमर्श की जरूरत': प्रोफेसर विद्यार्थी विकास का मानना है कि वन नेशन वन इलेक्शन से क्षेत्रीय मुद्दे गौण हो सकते हैं. राष्ट्रीय मुद्दों के सामने होने से लोग स्थानीय मुद्दों से भटक सकते हैं. लोकल लीडरशिप विकसित होने की संभावना कम हो जाएगी. विद्यार्थी विकास ने कहा कि "दोनों चुनाव साथ होने से राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव होंगे और राज्यों के मुद्दे पीछे पड़ जाएंगे. अगर इसे लागू किया जाना है तो देश के सभी दलों और मुख्यमंत्री से विमर्श के बाद लागू किया जाना चाहिए."

यह भी पढ़ें

वन नेशन वन इलेक्शन को जेडीयू का समर्थन, केंद्र गठित हाईलेवल कमेटी को JDU ने सौंपा मेमोरेंडम

Mangal Pandey : बार-बार चुनाव आचार संहिता विकास में बाधक, वन नेशन वन इलेक्शन देश के लिए जरूरी

'बिहार में होने वाले हैं चुनाव..जल्द बनेगी मोदी के नेतृत्व में सरकार'.. गृह मंत्री Amit Shah का दावा

ABOUT THE AUTHOR

...view details