नागरिकता संशोधन अधिनियम, 'वोटों का धुर्वीकरण vs बीजेपी ने जो कहा वो किया'
नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की अधिसूचना पर भाजपा नेताओं ने देश की सुरक्षा को अभूतपूर्व फैसला बताते हुए स्वागत किया है, जबकि विपक्षी पार्टियां जिनके वोट बैंक पर ये कानून असर डाल सकता है, वो इसे मानने से ही इंकार कर रही हैं. चाहे कांग्रेस हो या टीएमसी या फिर सपा के नेता, सभी (सीएए) कानून का विरोध करने की बात कह रहे हैं. मगर लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इसकी घोषणा ने क्या बीजेपी का एजेंडा सेट कर दिया है. आइए जानते है ईटीवी भारत की वरिष्ठ संवाददाता अनामिका रत्ना की इस रिपोर्ट में...
नई दिल्ली: CAA की घोषणा होते ही राजनीतिक पार्टियों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है. टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने तो सीधे-सीधे कह दिया कि 'हम सीएए को न तो स्वीकार करते हैं और न करेंगे. आपने वोट दिया, आपके पास संपत्ति है, साइकिल है, जमीन है, आधार कार्ड है, लेकिन ये सोचा कि फॉर्म भरते ही आप विदेशी हो जायेंगे. बीजेपी 2 सीटें जीतने के लिए आप लोगों के साथ धोखा कर रही है. यह नियम भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को नुकसान पहुंचा रहा है.'
उन्होंने कहा कि 'असम में 13 लाख हिन्दुओं के नाम हटा दिए. जिन्हें अभी अप्लाई करने को कह रहे हैं. वो अप्लाई करते ही गैरकानूनी घुसपैठिया साबित हो जायेंगे.' ममता बनर्जी के इस बड़े बयान ने कहीं ना कहीं भाजपा के लिए ध्रुवीकरण का एजेंडा साफ कर दिया है. कुछ पार्टियां इसके खुलकर विरोध में सामने आ चुकी हैं, तो कुछ ऐसी विपक्षी पार्टी जिन्हें अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों के ही वोट लेने हैं, वो खतरे का संकेत भापते हुए असमंजस में हैं.
वे इसका न खुलकर विरोध कर पा रहीं और ना ही समर्थन. कहीं न कहीं बीजेपी के इस एजेंडे ने उन्हें पशोपेश में डाल दिया है. हालांकि सरकार का कहना है कि इस कानून में ऐसा कुछ नहीं जिससे किसी की नागरिकता जाएगी. वास्तविकता में CAA वो कानून है जिसके जरिए पड़ोसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों (हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई) को नागरिकता दी जाएगी.
साल 2019 में संसद में पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी. हालांकि, देश में तब इसके खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन भी हुए थे, मगर ठीक चुनाव से पहले इसे नोटिफाई किया जाना, कहीं न कहीं वोटों के ध्रुवीकरण को जरूर बल दे रहा है. मगर सवाल यहां ये भी उठता है कि क्या अंदरखाने बीजेपी 370 और एनडीए 400 के आंकड़े को लेकर सशंकित है.
आखिर वोटों के ध्रुवीकरण की क्यों जरूरत पड़ रही है? क्या पीएम की लोकप्रियता, एनडीए की उपलब्धियां, राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के मुद्दे 400 आंकड़े को पूरा करने के लिए कम पड़ रहे थे. इस सवाल पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह का कहना है कि ये मुद्दा कहीं से भी ध्रुवीकरण को बल देता ही नहीं है. ये तो वो मुद्दा है जो बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में शामिल किया था.
उन्होंने कहा कि 'इसलिए अब हम कह सकते हैं कि जो कहा वो किया. पार्टी ने अपने सारे मुद्दे और वायदे पूरे किए. उन्होंने कहा कि CAA के खिलाफ विपक्ष भ्रम फैला रही कि इसमें अल्पसंख्यकों की नागरिकता जाएगी. मगर ये नागरिकता लेने वाला नहीं बल्कि नागरिकता देने वाला कानून है. इससे जो भी व्यक्ति प्रताड़ित होकर भारत आए थे, उन्हें नागरिकता दी जायेगी, क्योंकि उनके वर्षों से हालात बहुत खराब रहे हैं.'
सिंह ने आगे कहा कि 'बीजेपी ये सब वोटों के ध्रुवीकरण के लिए नहीं कर रही, बल्कि जो कहा वो किया अपने वायदों को पूरा करने के लिए कर रही है.' बहरहाल इसके पीछे मुद्दा चाहे जो भी हो इतना तो कहा जा सकता है कि चाहे वो राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो या CAA का मुद्दा, 2024 के लक्ष्य वोटों के ध्रुवीकरण पर ही आकर टिक रहे हैं.