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फूल बताते हैं साल भर की किस्मत, दिवाली पर नहीं जलता दीप, फूलों से 15 दिन झकास उजाला

मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में आदिवासियों का खास तबका दीपक जलाकर दिवाली नहीं मनाते. यहां पर फूलों से उजाला किया जाता है. यह दिवाली टोटल 15 दिनों तक चलती हैं और लोग उत्सव मनाते हैं.

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Oct 29, 2024, 8:37 AM IST

Updated : Oct 29, 2024, 9:01 AM IST

छिंदवाड़ा: दिवाली मतलब उजाले, रोशनी और खुशियों का त्यौहार. अलग-अलग अंचल में दिवाली रोशनी के पर्व के तौर पर ही मनाई जाती है, लेकिन छिंदवाड़ा जिले में ग्रामीण आदिवासी दिवाली के दिन दिए की जगह ऐसे फूलों की पूजा करते हैं, जिसे उजियारी कहा जाता है. कई पुराने लोग तो आज भी दियों की जगह उजियारी के फूल से ही पूजा करते हैं और घरों को जगमगाते हैं.

दिया की जगह फूलों से होता है उजियारा

आधुनिकता और भागम भाग भरी जिंदगी ने सब कुछ सीमित कर दिया है. इनमें सनातन धर्म के कई पर्व और त्योहार भी शामिल हैं. सनातन धर्म का सबसे बड़ा त्योहार दीपावली माना जाता है, जिसकी धनतेरस से ही शुरुआत हो जाती है और भाईदूज तक यानि 5 दिन इसे मानने की परंपरा है, लेकिन अब यह धीरे-धीरे सीमित होता जा रहा है. आज भी ग्रामीण इलाकों में परंपराएं जीवित हैं. मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के ग्रामीण इलाकों में दिवाली का त्योहार 15 दिनों तक मनाया जाता है. इसकी शुरुआत धनतेरस के दिन से ही हो जाती है. तेल के दीपक जलाते-जलाते अब इलेक्ट्रॉनिक लड़ियों का जमाना आ गया है, लेकिन एक आदिवासी वर्ग ऐसा भी है, जो आज भी दियों की जगह उजियारी के पौधे की पूजा कर उसके फूलों से घरों को सजाते हैं.

अहीरी नाच का होता है आयोजन (ETV Bharat)

फूलों से तय होता है साल भर कैसी रहेगी किस्मत

बारिश के सीजन में तुलसी के पौधे की तरह दिखने वाला एक पौधा होता है, जिसे उजियारी कहा जाता है. दिवाली तक इसमें काफी मात्रा में फूल होते हैं.ग्रामीण अंजेलाल ऊइके ने बताया कि "उजियारी के पौधे में जितने ज्यादा फूल आते हैं, इसका मतलब है कि साल भर सुख-समृद्धि और खुशहाली रहेगी. जितने ज्यादा फूल उतनी ज्यादा खुशहाली रहती है. अगर उजियारी के पौधों में फूलों की कमी है तो वह साल किसानों के लिए परेशानी वाला होता है. इन्हीं उजियारी के फूलों से दिवाली में पूजा की जाती है. बताया जाता है कि कई साल पहले तो ना तो दीपक जलाए जाते थे और ना ही किसी तरह की इलेक्ट्रॉनिक लाइट लगाई जाती थी. उजियारी के फूल ही दिवाली में पूजा के साधन होते थे."

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15 दिनों तक चलता है दिवाली का उत्सव

ग्रामीण इलाकों में दिवाली का उत्सव 15 दिनों तक मनाया जाता है. धनतेरस से इसकी शुरुआत होती है. धनतेरस के दिन किसान और ग्रामीण सहित आदिवासी अपने खेतों में उपयोग होने वाले औजार और फसलों की पूजा करते हैं. इसके बाद रूप चतुर्दशी और फिर दिवाली में माता लक्ष्मी का पूजन कर दिवाली के दूसरे दिन गायों की पूजा की जाती है. इसके बाद भाई दूज के अलावा 15 दिनों तक अलग-अलग गांवों में मड़ई मेला का आयोजन किया जाता है, जिसमें अहीरी नाच सबसे खास होता है. इसमें अहीर पारंपरिक वेशभूषा पहनकर गांव के हर एक घर में जाकर डांस करते हैं. उसके बदले उनका सम्मान कर उपहार दिया जाता है.

Last Updated : Oct 29, 2024, 9:01 AM IST

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