रायपुर :छत्तीसगढ़ के स्टील उद्योग ने बिजली के बढ़े हुए दामों को लेकर अपने उद्योग बंद कर दिए हैं.सोमवार रात से ही प्रदेश के 200 मिनी स्टील प्लांट बंद हैं.व्यापारियों की माने तो स्टील उद्योग के बंद होने से लोहे के दामों में उछाल आया है. एक दिन में ही लोहे के दामों में 1000 प्रति टन की वृद्धि दर्ज की गई है.
समाधान नहीं होने तक जारी रहेगा विरोध :टीएमटी बार और स्टील रॉड सहित कच्चे माल का उत्पादन करने वाले मिनी स्टील प्लांट बंद होने से दो लाख से अधिक श्रमिकों और उनके परिवारों पर असर पड़ने की आशंका है. प्लांट बंद होने से निर्माण सामग्री की कीमतों पर भी इसका असर पड़ेगा. छत्तीसगढ़ मिनी स्टील प्लांट एसोसिएशन के महासचिव मनीष धुप्पड़ ने कहा कि जब तक राज्य सरकार इस मुद्दे का समाधान नहीं करती, तब तक विरोध जारी रहेगा.
सीएम विष्णुदेव साय को लिखा पत्र :स्टील प्लांट एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री विष्णु देव साय को पत्र लिखा है और टैरिफ बढ़ोतरी से राहत के लिए उनके कैबिनेट सहयोगियों और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों से भी मुलाकात की है. धुप्पड़ के मुताबिक एसोसिएशन ने विरोध प्रदर्शन करने का इरादा नहीं किया था, लेकिन बढ़ोतरी ने छोटे पैमाने के स्टील प्लांटों को चलाना असंभव बना दिया. जिससे मालिकों को परिचालन रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा. अगर कोई समाधान नहीं निकला तो ये इकाईयां वित्तीय घाटे के कारण अगले कुछ महीनों में स्थायी रूप से बंद हो जाएंगी.
''छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत नियामक आयोग (सीएसईआरसी) ने पिछले महीने 1 जून से सभी श्रेणियों के उपभोक्ताओं के लिए टैरिफ में औसतन 8.35 प्रतिशत की बढ़ोतरी की घोषणा की थी. 6.10 रुपये प्रति यूनिट के बजाय स्टील प्लांटों को 7.60 रुपये प्रति यूनिट का भुगतान करना होगा. 2003 से 2018 के बीच टैरिफ लगभग 4.50 रुपये प्रति यूनिट था, जिससे अन्य राज्यों के उद्योगपतियों को आकर्षित करने में मदद मिली. लेकिन 2018 से बिजली की दरें लगातार बढ़ रही हैं, जिससे मिनी स्टील प्लांटों के लिए जीवित रहना मुश्किल हो गया है.'' मनीष धुप्पड़,महासचिव,स्टील प्लांट एसोसिएशन
स्टील प्लांट पर कितना पड़ेगा बोझ :मनीष धुप्पड़ के मुताबिक टैरिफ के अलावा 8 प्रतिशत बिजली शुल्क, करीब 10 से 15 प्रतिशत एफपीपीएएस (ईंधन और बिजली खरीद समायोजन अधिभार) और 0.10 पैसे का उपकर भी बिल में जुड़ता है.मिनी स्टील प्लांट (फर्नेस) उद्योग प्रति टन करीब 1300 यूनिट बिजली की खपत करता है, जिसकी लागत करीब 8,000 रुपये प्रति टन है. लेकिन बढ़ोतरी के बाद बिजली की लागत करीब 10000 रुपए प्रति टन हो गई है. धुप्पड़ ने यह भी दावा किया कि पड़ोसी राज्यों में बिजली की दरें कम हैं.