कुरुक्षेत्र: चैत्र नवरात्रि 2024 को लेकर देश भर में माता के मंदिरों में श्रद्धालु भारी संख्या में पूजा-अर्चना के लिए पहुंच रहे हैं. नवरात्रि में श्रद्धालु मां दुर्गा से आशीर्वाद और सुख समृद्धि के लिए उनकी पूजा अर्चना करते हैं. कई लोग नवरात्रि में व्रत भी रखते हैं. वैसे तो माता रानी के प्रत्येक मंदिर के बड़े श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना की जाती है, लेकिन शक्तिपीठ का इन सभी मंदिरों में सबसे ज्यादा महत्व बताया गया है. मां दुर्गा के लिए 52 शक्ति पीठ पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इन्हीं शक्तिपीठ में से एक कुरुक्षेत्र में स्थित है, जिसे श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है.
चैत्र नवरात्रि 2024 को लेकर श्रद्धालुओं में उत्साह: नवरात्रि में और अन्य दिनों में भी यहां पर माता रानी के भक्तों की भारी भीड़ लगती है जो माता रानी के दर्शन करते हैं और सुख समृद्धि की कामना करते हैं, नवरात्रि के दिनों में माता रानी के दर्शन करने से और भी ज्यादा फल की प्राप्ति होती है. आज हम बात कर रहे हैं, कुरुक्षेत्र में स्थित श्रीदेवी कूप मां भद्रकाली मंदिर के बारे में. यहां देश-विदेश से माता के भक्त माता रानी के दर्शन करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि जो भी माता का भक्त यहां पर आकर सच्चे मन से मन्नत मांगता है, माता रानी उसकी सभी मांग पूरी करती है. मन्नत पूरी होने के बाद माता रानी को यहां पर घोड़े चढ़ने का विधि विधान है. आइए जानते हैं इस मंदिर का क्या इतिहास है और इस मंदिर से जुड़े पौराणिक मान्यता क्या है.
हरियाणा का एकमात्र शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप मां भद्रकाली मंदिर: पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि माता देवी सती के पिता दक्षेस्वर के द्वारा एक यज्ञ किया गया था, उस यज्ञ में माता सती के पिता ने सभी देवी देवताओं को आमंत्रित किया था लेकिन माता सती के पति और महादेव भोलेनाथ को इसमें आमंत्रित नहीं किया गया. माता सती अपने घर पहुंचीं और उन्होंने देखा कि यज्ञ में सभी आमंत्रित हैं, लेकिन उनके पति महादेव यहां आमंत्रित नहीं किए गए हैं. ऐसे में उन्होंने इस बात में अपने पति महादेव का अपमान समझा और माता सती ने उस यज्ञ कुंड में ही प्राण त्याग दिए थे. भगवान भोलेनाथ को जैसे ही इस बात की जानकारी मिली तो वह वहां पर पहुंचे और उन्होंने माता सती के मृत शरीर को लेकर क्रोध में आकर ब्रह्मांड के चक्कर लगाने शुरू कर दिए, जिससे पूरे ब्रह्मांड में उथल-पुथल मच गई. जब भगवान भोलेनाथ का गुस्सा शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के 52 भाग कर दिए और माता सती के शरीर के 52 भाग जहां भी जाकर गिरे उसे शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है.
कुरुक्षेत्र में गिरा था माता सती के दाएं पैर का टखना:जैसे ही भगवान विष्णु ने माता सती के शरीर के सुदर्शन चक्र से 52 भाग किए थे, उनके दाएं पैर का टखना कुरुक्षेत्र में आगे गिरा था. इसके बाद यहां पर शक्तिपीठ स्थापित हो गया, जो श्री देवी कूप मां भद्रकाली मंदिर के नाम से जाना जाता है. 52 शक्तिपीठ सभी माता सती के अलग-अलग नाम से जाने जाते हैं और प्रसिद्ध है. कुरुक्षेत्र का मां भद्रकाली शक्तिपीठ मंदिर महादेवी काली को समर्पित है. शक्तिपीठ मंदिर के अंदर मां काली की एक मूर्ति स्थापित है. वहीं, मंदिर के प्रवेश द्वार के अंदर जाते ही सामने एक बहुत कमल का फूल है. उस कमल के फूल पर मां सती के दाएं पैर का टखना स्थापित किया गया है. यह सफेद रंग के संगमरमर के पत्थर से बनाया गया है.
महाभारत काल से मन्नत पूरी होने पर घोड़े चढ़ाने की है प्रथा:मंदिर के पीठाधीश पंडित रामपाल शर्मा ने बताया "इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से पहले का है. मां भद्रकाली मंदिर से महाभारत काल से जुड़े कहानी किस्से भी है. जब कुरुक्षेत्र की भूमि पर महाभारत का युद्ध हुआ था, उस समय भगवान श्री कृष्ण के कहने पर भगवान श्री कृष्ण के साथ पांडव माता रानी से इस युद्ध में विजय होने के लिए यहां पर मन्नत मांगने के लिए आए थे और जैसे ही उन्होंने महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की उसके बाद उन्होंने यहां पर घोड़े का दान किया था. मान्यता है कि तब से ही एक प्रथा चली आ रही है कि जो भी माता रानी का भक्ति यहां पर मन्नत मांगने के लिए आता है और जब उसकी मन्नत पूरी होती है तो वह माता रानी को प्रसन्न करने के लिए यहां पर मिट्टी, पत्थर, सोना, चांदी कई प्रकार की धातुओं के घोड़े चढ़ाता है."