नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने जलवायु परिवर्तन के कारण देश में 310 जिलों को जोखिम-संभावित श्रेणी में रखा है, जिनमें से 109 जिले 'बहुत उच्च' जोखिम के अंतर्गत हैं और 201 जिले 'उच्च' जोखिम के अंतर्गत हैं. जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) के अनुसार, इन चिन्हित जिलों का कृषि क्षेत्र गंभीर रूप से प्रभावित होगा. 47 जिलों के साथ उत्तर प्रदेश उन राज्यों की सूची में शीर्ष पर है, जहां जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र प्रभावित होने की संभावना है.
राजस्थान में 27 जिलों को अति उच्च और उच्च जोखिम श्रेणी में रखा गया है, इसके बाद बिहार में 21 जिलों को रखा गया है. उत्तर प्रदेश में बागपत, उन्नाव, कन्नौज, इटावा, औरैया, कानपुर (देहात), जालौन, झांसी, हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, फतेहपुर, कौशांबी, इलाहाबाद, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, गोंडा, बस्ती, जौनपुर, संत रविदास नगर को अति उच्च जोखिम श्रेणी में रखा गया है.
इसी तरह राजस्थान में गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, झुंझुनू, अलवर, करौली, दौसा, सीकर, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर, पाली, भीलवाड़ा, डूंगरपुर, बांसवाड़ा इस लिस्ट में शामिल हैं. वहीं बिहार के सीतामढी, मधुबनी, सुपौल, किशनगंज, कटिहार, सहरसा, दरभंगा, लखीसराय, शेखपुरा, नालंदा को अति उच्च जोखिम श्रेणी में रखा गया है.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के एक अधिकारी ने बुधवार को ईटीवी भारत को बताया कि जलवायु परिवर्तन के प्रति भारतीय कृषि में जोखिम और संवेदनशीलता का आकलन उभरते वैचारिक और विश्लेषणात्मक तरीकों के साथ-साथ प्रासंगिक जलवायु और गैर-जलवायु संबंधी जानकारी को ध्यान में रखकर किया जाता है. अधिकारी ने कहा कि 'चयनित संकेतकों को पूंजी बंदोबस्ती के विभिन्न रूपों में वर्गीकृत किया गया है, जो खतरों से निपटने के लिए सिस्टम की क्षमता निर्धारित करते हैं.'
अधिकारी ने कहा कि 'नतीजतन, पूंजी बंदोबस्ती के पांच अलग-अलग आयामों से जुड़े पंद्रह संकेतक - प्राकृतिक (जैसे वार्षिक वर्षा, निम्नीकृत और बंजर भूमि, मिट्टी की उपलब्ध जल धारण क्षमता, भूजल उपलब्धता और पशुधन घनत्व), मानव (साक्षरता), सामाजिक (लिंग अंतर और स्वयं सहायता समूह), भौतिक (शुद्ध सिंचित क्षेत्र, सड़क) कनेक्टिविटी, ग्रामीण विद्युतीकरण, बाज़ार पहुंच, उर्वरक उपयोग, और वित्तीय (आय और आय असमानता) - भेद्यता को पकड़ने के लिए चुना जाता है.
जोखिम का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुने गए पांच संकेतकों में शुद्ध बोया गया क्षेत्र, ग्रामीण जनसंख्या घनत्व, छोटे और सीमांत किसान, एससी-एसटी आबादी और क्रॉस-ब्रीड मवेशी शामिल हैं. अधिकारी ने कहा कि खतरों के लिए चुने गए तीन संकेतक सूखा-प्रवणता, बाढ़-प्रवणता और चक्रवात-प्रवणता हैं. जलवायु परिवर्तन के प्रति भारतीय कृषि की संवेदनशीलता को देखते हुए जलवायु अनुकूल खेती अनिवार्य है.