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भगवान श्रीराम के सूर्य तिलक पर उत्तराखंड के इस संस्थान का रहा बड़ा योगदान, सालों की मेहनत लाई रंग - Shri Ram Surya Tilak

Shri Ram Surya Tilak अयोध्या राम मंदिर में भगवान श्रीराम का आज सूर्य ने तिलक किया. रामनवमी पर सूर्य तिलक का दृश्य देश-दुनिया के रामभक्तों ने भी देखा. इस तकनीक पर उत्तराखंड के एक संस्थान की भी महत्वपूर्ण भूमिका है. जिसके लिए रुड़की आईआईटी के वैज्ञानिकों की भी मदद ली गई.

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Apr 17, 2024, 7:23 PM IST

देहरादून (उत्तराखंड): रामनवमी के पावन मौके पर अयोध्या राम मंदिर में सूर्य की किरणों ने भगवान श्रीराम का तिलक किया. लगभग 4 मिनट तक के इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए अयोध्या में हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी रही. देश और दुनियाभर के रामभक्तों ने भी इस ऐतिहासिक पल को मीडिया और सोशल मीडिया के जरिए देखा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी असम जाते समय हेलीकॉप्टर से मोबाइल पर इस अद्भुत दृश्य के दर्शन किए.

श्रीराम सूर्य तिलक को लेकर सालों की मेहनत:अयोध्या में राम मंदिर को पारंपरिक नागर शैली में बनाया गया है. 2.7 एकड़ में बने मंदिर की लंबाई 380 फीट और ऊंचाई 161 फीट है. मंदिर का प्रवेश द्वार 'सिंह द्वार' है. खास बात है कि राम मंदिर के निर्माण में रुड़की स्थित सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) संस्थान का भी बहुत बड़ा योगदान है. इतना ही नहीं, जिस तकनीक के माध्यम से सूर्य ने भगवान राम का तिलक किया है, उस तकनीक को ईजाद करने और पूरा करने में भी सीबीआरआई की सालों की मेहनत है.

सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट का अहम योगदान:दरअसल, इस तकनीक के पीछे वैज्ञानिकों ने ना तो कोई बैटरी और ना ही किसी तरह की लाइट या लेजर का प्रयोग किया है. सूर्य के तिलक करने को लेकर वैज्ञानिकों ने एक अलग तरह का मैकेनिज्म तैयार किया है. इस पूरे मैकेनिज्म को तैयार करने में रुड़की स्थित सीबीआरआई के वैज्ञानिक और बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स संस्थान ने भी मदद की है. इस संस्थान ने एक खास तरह का लेंस तैयार किया है और इसके साथ ही ब्रांच ट्यूब का भी निर्माण करके मंदिर के ऊंचे भाग में लगाया गया है.

रामनवमी के दिन दिखा भव्य नजारा:केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों की मानें तो इस निर्माण के लिए एक खास तरह का गियर बॉक्स तैयार किया गया था, जो एक लेंस की मदद से भगवान के माथे पर सूर्य की किरण को भेजेगा. लेकिन यहां यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि इसमें हमने चंद्र कैलेंडर से निर्धारित होने वाले समय का भी ध्यान रखा है. खास बात यह है कि हर साल रामनवमी के दिन ही ऐसा नजारा भक्तों को देखने के लिए मिलेगा.

वैज्ञानिकों ने निभाई अहम भूमिका:बता दें कि रुड़की स्थित सीबीआरआई के वैज्ञानिकों ने अयोध्या में बने राम मंदिर में बड़ी भूमिका निभाई है. संस्थान के निदेशक के नेतृत्व में लगभग 2 साल के अथक प्रयास के बाद मंदिर के डिजाइन को तैयार किया गया. मंदिर निर्माण में लोहा और अन्य धातु का प्रयोग नहीं किया गया है. पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए अनोखे स्ट्रक्चर का प्रयोग किया गया है. इसके साथ ही मंदिर की नींव में सेंसर लगाए गए हैं.

रुड़की आईआईटी के वैज्ञानिकों की भी मदद ली गई:इस पूरे अभियान में रुड़की आईआईटी के वैज्ञानिकों की भी मदद ली गई है. पूरे मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि भूकंप का भी इस पर कोई असर नहीं होगा. पूरे मंदिर में 352 खंभे और 44 द्वार हैं, जिसका काम काफी हद तक पूरा हो गया है. मंदिर तक पहुंचने के लिए 33 सीढ़ी बनाई गई है.

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