पटना:बिहार में पिछले एक साल के अंदर करीब दो लाख लोगों को कुत्ते काट चुके हैं. यानी सूबे ने प्रतिदिन करीब 568 लोग डॉग बाइटका शिकार बन रहे हैं. हैरानी वाली बात यह है कि इस तरह की घटनाएं पिछले एक साल में 200 गुना बढ़ गई हैं. यह खुलासा राज्य के आर्थिक सर्वेक्षण की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों में हुआ है. इस वर्ष पटना में सबसे अधिक कुत्ता काटने की घटनाएं सामने आई है और इनकी संख्या 22599 है. इससे स्पष्ट है कि बिहार के कुत्ते खुंखार हो गये हैं.
बिहार में कुत्ते के काटने के मामले बढ़े : एनिमल एक्टिविस्ट की मानें तो बिहार में कम्युनिटी डॉग्स (स्ट्रीट डॉग) की संख्या लगभग 10 करोड़ है. वहीं बिहार के आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 में कुत्तों के काटने की सर्वाधिक की राजधानी पटना में 22,599 घटनाएं दर्ज की गईं हैं. इसके बाद नालंदा 17,074. गोपालगंज 15,253. वैशाली 13,110. पश्चिमी चंपारण 11,291. पूर्वी चंपारण 9,975. मधुबनी 8,401. अररिया 6,710. नवादा 6,234. सीतामढ़ी 6,198. जमुई 5,851. जहानाबाद 5,683. भोजपुर 5,323. मधेपुरा 5,169. दरभंगा 5,023 आदि जिले शामिल हैं.
इन जिलों कम हुई घटना: इन जिलों में 2022-23 में 2,000 से कम कुत्ते काटने की घटनाएं हुईं. उनमें कैमूर 33, औरंगाबाद 435, बक्सर 686, मुजफ्फरपुर 1,258 और खगड़िया 1,916 शामिल हैं.
निगम दे रहा नसबंदी पर जोर: पटना के नगर आयुक्त अनिमेष कुमार पाराशर ने बताया कि, ''हम इस तथ्य से अवगत हैं. जल्द ही इस तरह के खतरे को रोकने के लिए अपना अभियान तेज करेंगे. मौजूदा मानदंडों के अनुसार पीएमसी इस उद्देश्य के लिए गैर-सरकारी संगठनों को भी शामिल करने जा रही है. फिलहाल कुत्तों की संख्या शहर में कम हो इसको लेकर निगम के तरफ से लगातार नसबंदी कार्यक्रम चल रहा है.''
नियमों को ताक पर रखकर बंध्याकरण:पीपुल्स फॉर एनिमल बिहार डायरेक्टर वसुधा गुप्ता ने बताया कि यह कुत्ते आवारा कुत्ते नहीं है बल्कि कम्युनिटी डॉग्स है. यह हमारे सोसायटी में रहते हैं और हमारे बीच ही रहते हैं.पटना में कुत्तों के एग्रेसिव होने के पीछे प्रमुख वजह है. नियमों को ताक पर रखकर बंध्याकरण करना. कुत्तों की जनसंख्या को रोकने के लिए जरूरी है कि उनका बंध्याकरण किया जाए, लेकिन इसमें भी नियमों का पालन करना होता है. बंध्याकरण के बाद उसी जगह छोड़ना होता है.
कुत्ते काटने के मामले काफी बढ़े हैं:पशु चिकित्सक और पटना के खुसरूपुर में भ्रमणशील चिकित्सा पदाधिकारी के पद पर तैनात डॉ शशि रंजन प्रभात ने बताया कि, ''कुत्तों के एग्रेसिव होने के पीछे कई कारण है. हम लोगों के भी संज्ञान में यह है कि हाल के दिनों में कुत्ते काटने के मामले काफी बढ़ गए हैं. इसके पीछे कई कारण है.''
जलवायु परिवर्तन:पहले कुत्तों का ब्रीडिंग टाइम सितंबर अक्टूबर का महीना होता था लेकिन पर्यावरण में हो रहे बदलाव के कारण अब देखने को मिल रहा है कि साल भर कुत्ते ब्रीडिंग कर रहे हैं. जो मादा कुत्ते हैं, ब्रीडिंग के समय हार्मोनल चेंजेज आते हैं और इस समय उनके द्वारा लोगों को या जानवरों को काटने के मामले बढ़ जाते हैं.
भोजन की कमी : पहले मरे हुए जानवर को लोग इधर-उधर फेंक देते थे, ग्रामीण क्षेत्रों में अक्सर मरे हुए जानवर खेत में मिल जाते थे जिसे कुत्ते खाकर भूख मिटाते थे. ग्रामीण क्षेत्रों में अब जागरूकता आई है और लोग मिट्टी खोदकर मवेशी गाड़ दे रहे हैं, ऐसे में कुत्तों को भोजन की कमी हो जा रही है. यह कुत्ते झुंड बनाकर भोजन की तलाश में निकलते हैं लेकिन जब भोजन नहीं मिलता तो बच्चे बुजुर्ग को अपना टारगेट बनाते हैं.
पशु प्रेमियों का बढ़ना: शहरी क्षेत्र में कुत्ता पालने का चलन बढ़ा है. ऐसे में अक्सर अपने सोसाइटी में व्यक्ति कुत्ता को लेकर टहलने के लिए निकल रहा होता है तो कुत्ता अपने मालिक से तो अवगत होता है लेकिन उसका कोई पड़ोसी दिख जाता है या कोई अन्य दिख जाता है तो उस पर हमला कर देता है.