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बिलकीस बानो मामले के दो दोषियों ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया - Bilkis Bano Convicts SC

Bilkis Bano Case Convicts: बिलकिस बानो मामले के दो दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अदालत की दो पीठों की अलग-अलग टिप्पणियों का हवाला देते हुए मामले को बड़ी पीठ में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया है.

Bilkis Bano Case Convicts
प्रतीकात्मक तस्वीर

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Mar 3, 2024, 8:37 AM IST

नई दिल्ली:बिलकीस बानो मामले में 11 दोषियों में से दो ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर दलील दी है कि उनकी सजा में छूट देने को रद्द करने संबंधी आठ जनवरी का फैसला 2002 की एक संविधान पीठ के आदेश के 'खिलाफ' था और उन्होंने इस मुद्दे को 'अंतिम' निर्णय के लिए एक वृहद पीठ के पास भेजने का अनुरोध किया.

उच्चतम न्यायालय के फैसले के बाद गोधरा उप-जेल में बंद राधेश्याम भगवानदास शाह और राजूभाई बाबूलाल सोनी ने कहा कि 'विसंगतिपूर्ण' स्थिति पैदा हो गई है जिसमें दो अलग-अलग समन्वय पीठों ने समयपूर्व रिहाई के एक ही मुद्दे पर और साथ ही छूट के लिए याचिकाकर्ताओं पर राज्य सरकार की कौन सी नीति लागू होगी, इस पर बिल्कुल विपरीत दृष्टिकोण अपनाया है.

वकील ऋषि मल्होत्रा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि एक पीठ ने 13 मई, 2022 को गुजरात सरकार को स्पष्ट रूप से आदेश दिया था कि वह राज्य सरकार की नौ जुलाई, 1992 की छूट नीति के तहत समय पूर्व रिहाई के लिए राधेश्याम शाह के आवेदन पर विचार करे जबकि आठ जनवरी, 2024 को फैसला सुनाने वाली पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि वह महाराष्ट्र सरकार है, न कि गुजरात सरकार जो छूट देने में सक्षम है.

उच्चतम न्यायालय ने गुजरात सरकार पर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने का आरोप लगाते हुए 2002 के दंगों के दौरान बिलकीस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सात सदस्यों की हत्या के मामले में 11 दोषियों को सजा में छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को आठ जनवरी को रद्द कर दिया था.

शाह ने जमानत के लिए अर्जी भी दाखिल की है. याचिका में केंद्र को समय पूर्व रिहाई के लिए याचिकाकर्ताओं के मामले पर विचार करने और यह स्पष्ट करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि उसकी समन्वय पीठ का 13 मई, 2022 या आठ जनवरी, 2024 का कौन सा फैसला उन पर लागू होगा.

घटना के वक्त बिलकीस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं. बानो से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद 2002 में भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था. दंगों में मारे गए उनके परिवार के सात सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी. गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था.

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