बिहार

bihar

ETV Bharat / bharat

बिहार विधानसभा उपचुनाव के प्रचार का शोर थमा, क्या 2025 विधानसभा चुनाव की दिशा बदलेंगे नतीजे?

बिहार विधानसभा उपचुनाव का प्रचार अभियान समाप्त हो गया. 13 नवंबर को मतदान है. इस चुनाव का आनेवाले विधानसभा चुनाव पर क्या असर पड़ेगा, पढ़िये.

bihar-assembly-by-election
बिहार में उपचुनाव. (ETV Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Nov 11, 2024, 7:35 PM IST

Updated : Nov 11, 2024, 8:32 PM IST

बिहारः बिहार विधानसभा की चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव को विधानसभा चुनाव 2025 से पहले राज्य की राजनीति का 'लिटमस टेस्ट' माना जा रहा है. चुनावी समीकरणों की नई तस्वीर उभर सकती है. जिन चार सीटों पर 13 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, उनमें से तीन सीटों पर महागठबंधन का कब्जा था, जबकि एक सीट एनडीए के हिस्से में थी. इन उपचुनावों में महागठबंधन और एनडीए के साथ-साथ हाल ही में गठित जन सुराज पार्टी की साख भी दांव पर लगी है.

मैराथन प्रचार अभियान: राजनीति के जानकार इस उपचुनाव को विधानसभा चुनाव 2025 का सेमीफाइनल बता रहे हैं. इसलिए उपचुनाव में नीतीश कुमार और एनडीए के वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव प्रचार में ताकत लगाई है. तेजस्वी यादव, मुकेश सहनी और महागठबंधन के वरिष्ठ नेताओं ने भी ताकत झोंकी है. नीतीश कुमार ने 10 और 11 नवंबर को प्रचार किया. अंतिम दिन लालू प्रसाद यादव ने भी बेलागंज से प्रचार कर माहौल गरमा दिया. प्रशांत किशोर ने भी प्रचार प्रसार में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी.

बिहार विधानसभा उपचुनाव का विश्लेषण. (ETV Bharat)

रामगढ़ का क्या है समीकरणःरामगढ़ विधानसभा उपचुनाव की लड़ाई दिलचस्प हो गई है. कहा जा रहा है कि यहां जातीय समीकरण छिन्न भिन्न होने वाला है. 2015 में बीजेपी के अशोक कुमार सिंह ने जीत दर्ज की थी. लेकिन 2020 में सुधाकर सिंह ने राजद के टिकट पर चुनाव जीता. इस बार जगदानंद सिंह के बेटे और सुधाकर सिंह के छोटे भाई अजीत कुमार सिंह चुनाव मैदान में हैं. वहीं भाजपा ने अशोक कुमार सिंह पर फिर भरोसा जताया है.

बसपा और जन सुराज ने टेंशन बढ़ायाः जन सुराज से सुशील कुमार कुशवाहा चुनाव मैदान में हैं. वहीं बसपा से सतीश कुमार सिंह यादव चुनाव मैदान में हैं. सतीश कुमार अंबिका सिंह के भतीजे हैं. अंबिका सिंह 2009 और 2010 में राजद के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2020 में राजद ने टिकट नहीं दिया. चुनाव लड़े, राजद उम्मीदवार से केवल 182 वोट से ही पिछड़ गए. जन सुराज के उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह 2019 के लोकसभा चुनाव में बक्सर से उम्मीदवार थे. 80 हजार वोट आया था. रामगढ़, बक्सर लोकसभा क्षेत्र में ही आता है.

ETV GFX (ETV Bharat)

तरारी में भाकपा माले का दबदबाःबीजेपी ने इस बार सुनील पांडे के बेटे विशाल प्रशांत को तरारी से टिकट दिया है. यह सीट माले की सीटिंग सीट है. माले की तरफ से राजू यादव चुनाव लड़ रहे हैं. 2008 में परिसीमन के बाद तरारी सीट अस्तित्व में आया है. तरारी के अस्तित्व में आने से पहले विधानसभा क्षेत्र से सुनील पांडे या फिर उनके परिवार का सदस्य तीन चुनाव लड़ चुके हैं. 2010 में पहले चुनाव में सुनील पांडे ने जदयू के टिकट पर जीत हासिल की थी. 2015 और 2020 में यहां माले के सुदामा प्रसाद लगातार जीत दर्ज की.

माले के गढ़ को बचाने की चुनौतीः सुनील पांडे ने 2015 में अपनी पत्नी गीता पांडे को चुनाव लड़ाया था. 2020 में सुनील पांडे खुद चुनाव लड़े. 2015 में सुदामा प्रसाद केवल 272 वोट से चुनाव जीते थे. 2020 में महागठबंधन के समर्थन के कारण करीब 76 हजार वोट से चुनाव जीते थे. राजू यादव पर माले के गढ़ को बचाने की चुनौती है. यहां से जन सुराज की किरण सिंह और बसपा के सिकंदर कुमार लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है. राजू यादव नाम से एक निर्दलीय उम्मीदवार भी है. लालू प्रसाद यादव के नाम से भी निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में है.

ETV GFX (ETV Bharat)

राजद का गढ़ है बेलागंजः बेलागंज में सुरेंद्र यादव का 1990 से दबदबा रहा है. सात बार सुरेंद्र यादव यहां से विधायक रहे हैं. जहानाबाद से सांसद चुने जाने के कारण अब यह सीट खाली हुई है. राजद ने सुरेंद्र यादव के बेटे विश्वनाथ सिंह पर दांव लगाया है. राजद के लिए यह सीट बचाना है एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि नीतीश कुमार ने मनोरमा देवी को यहां से उम्मीदवार बनाया है. मनोरमा देवी, बिंदी यादव की पत्नी है. दो बार लगातार एमएलसी रही हैं. 2020 में अतरी से चुनाव लड़ी थी, जीत नहीं पाई थी.

मुस्लिम वोट में विखराव की आशंकाः मनोरमा देवी के आवास पर कुछ दिन पहले NIA ने छापेमारी की थी. उनके आवास से 4 करोड़ से अधिक की राशि और हथियार बरामद हुआ था. तब यह मामला काफी चर्चा में रहा था. इसके बावजूद नीतीश कुमार ने मनोरमा देवी पर भरोसा जताया है. यहां से जन सुराज के टिकट पर मोहम्मद अमजद चुनाव लड़ रहे हैं. इसके कारण महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ी हुई है. एआईएमआईएम ने भी यहां से उम्मीदवार दिया है. मुस्लिम वोट बंटने से महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ सकती हैं.

नीतीश कुमार की सभा (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

लालू की प्रतिष्ठा दांव परः जनसुराज के उम्मीदवार 2010 में जदयू के टिकट पर बेलागंज से चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें 48,441 वोट मिला था. बेलागंज में करीब 2 लाख 88 हजार से अधिक मतदाता हैं. 72 हजार से अधिक यादव वोटर हैं. 60 हजार के करीब मुस्लिम वोट है, जो निर्णायक होगा. यदि मुस्लिम वोट बंटता है तब राजद के लिए जीत आसान नहीं होगा. बेलागंज में सबसे अधिक 14 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है. 6 निर्दलीय उम्मीदवार हैं. लालू यादव ने इस सीट पर चुनाव प्रचार किया, इसलिए उनकी भी प्रतिष्ठता दांव पर लग गई है.

एनडीए की सीटिंग सीट है इमामगंजः बिहार विधानसभा के चार सीटों पर हो रहे उपचुनाव में इमामगंज सुरक्षित सीट है. इमामगंज से केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी की बहू और हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार सरकार के मंत्री संतोष सुमन की पत्नी दीपा मांझी चुनाव लड़ रही हैं. जनसुराज की ओर से जितेंद्र पासवान को उतारा गया है. एआईएमआईएम के कंचन पासवान भी चुनौती दे रहे हैं. जीतन मांझी के गया से सांसद बनने के कारण यह सीट खाली हुई. एनडीए के लिए इस सीट को बचाए रखने की चुनौती है.

बेलागंज में लालू यादव की सभा. (ETV Bharat)

इमामगंज में कुल नौ उम्मीदवारः राजद ने रोशन मांझी को चुनाव मैदान में उतारा है. 2005 और 2010 में चुनाव लड़ चुके हैं. दोनों बार जदयू की तरफ से उदय नारायण चौधरी ने इन्हें हराया था. प्रशांत किशोर ने जितेंद्र पासवान पर विश्वास जताया है, जो ग्रामीण चिकित्सक के रूप में फेमस हैं. जातीय समीकरण की बात करें कि इमामगंज में 70 हजार के करीब मांझी की आबादी है. 40 हजार दांगी जाति के लोग हैं. 28 हजार मुस्लिम और 24 हजार के करीब यादव मतदाता हैं. इमामगंज में कुल 9 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं.

महागठबंधन में एकजुटता का अभावः राजनीतिक विश्लेषक भोलानाथ का कहना है कि रामगढ़ सीट उत्तर प्रदेश से सटा हुआ है और बसपा का वहां दबदबा रहता है. बेलागंज और इमामगंज सीट पर मुकाबला आसान नहीं है. जहां तक रणनीति की बात है एनडीए ने एकजुटता के साथ चुनाव प्रचार किया है लेकिन महागठबंधन में वह एकजुटता नहीं दिखाई है. राजद अपने सीटों पर जरूर ताकत लगाई है कांग्रेस और अन्य दल नहीं दिखे हैं. इसी तरह माले ने अपनी ताकत तरारी सीट पर लगाई है, वहां राजद और अन्य घटक दल नहीं दिखे हैं.

"2025 से पहले यह उपचुनाव हो रहा है. प्रशांत किशोर और बसपा ने मुकाबला को त्रिकोणीय और चतुष्कोणीय बना दिया है. एनडीए चारों सीट पर एकजुट नजर आया है तो वहीं महागठबंधन की ओर से जिस दल का उम्मीदवार है उसी ने ताकत दिखाई है. इससे नुकसान हो सकता है."- भोलानाथ, राजनीतिक विश्लेषक

प्रशांत किशोर. (फाइल फोटो) (ETV Bharat)

नेताओं के बयान से गरमाया राजनीति: चुनाव प्रचार में नेताओं के बयान भी खूब चर्चा में रहा. सुधाकर सिंह ने लाठी से पीटने का बयान दिया. ओसामा की सभा में एक युवक की पिटाई के कारण मामला तूल पकड़ा. नीतीश कुमार का बयान, राजद को वोट देंगे तो फिर बिहार में गड़बड़ हो जाएगा चर्चा में रहा. अंतिम दिन लालू प्रसाद यादव ने भी बीजेपी को उखाड़ फेंकने की बात कही. साथ ही पीएम मोदी को समुद्र में फेंकने तक का बयान दिया. दोनों तरफ से दिए गए बयान से राजनीतिक माहौल गरमाया रहा.

इसे भी पढ़ेंः

Last Updated : Nov 11, 2024, 8:32 PM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details