कौन थे एमएस स्वामीनाथन, जिन्हें भारत रत्न देने की हुई घोषणा
Bharat Ratna to MS Swaminathan : भारत के मशहूर कृषि वैज्ञानिक और हरित क्रांति के जनक एमएस स्वामीनाथन को मोदी सरकार ने भारत रत्न देने का ऐलान किया. उनके अनुंसधानों के नतीजों ने भारतीय कृषि मेथड में व्यापक बदलाव लाए. किसानों को एमएसपी देने के मामले में भी उनके द्वारा सुझाए गए फॉर्मूले का ही उपयोग किया जाता है.
नई दिल्ली : मोदी सरकार ने शुक्रवार को तीन बड़ी शख्सियतों को भारत रत्न देने का ऐलान किया. इन तीन नामों में एक नाम एमएस स्वामीनाथन का है. वह महान कृषि वैज्ञानिक थे. उन्होंने भारतीय कृषि को आधुनिक बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी. किसानों की फसलों को किस कीमत पर सरकार खरीदेगी, इसको लेकर स्वामीनाथन ने एक फॉर्मूला दिया था. उसके आधार पर ही किसानों की मदद की जा रही है.
एमएस स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु में हुआ था. वह एक प्रसिद्ध भारतीय कृषि वैज्ञानिक थे. उन्होंने हरित क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए जाना जाता है. उच्च उपज देने वाली गेहूं की किस्मों पर उनके रिसर्च ने 1960 और 1970 के दशक के दौरान भारत में कृषि उत्पादकता को बदल दिया था. इसकी वजह से भारत खाद्य संकट से उबर पाया था.
सस्टेनेबल फार्मिंग प्रैक्टिस के कारण स्वामीनाथन ने वैश्विक प्रशंसा अर्जित की, जिसमें वर्ल्ड फूड प्राइज और पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित पुरस्कार शामिल हैं. उनका काम दुनिया भर के वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को खाद्य सुरक्षा और सस्टेनेबल फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करता है.
भारत की हरित क्रांति के जनक के रूप में जाने जाने वाले प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डॉ. एम. एस स्वामीनाथन का निधन साल 2023 में 98 साल की उम्र में चेन्नई हुआ था.
एमएस स्वामीनाथन के मन में कैसे आया कृषि रिसर्च का आइडिया
भारत रत्न से सम्मानित एमएस स्वामीनाथन
भारत रत्न से सम्मानित एमएस स्वामीनाथन
कृषि और जेनेटिक्स के क्षेत्र में स्वामीनाथन की यात्रा 1943 के बंगाल अकाल के दौरान एक निर्णायक क्षण से शुरू हुई थी. चावल की भारी कमी और इसके परिणामस्वरूप लाखों लोगों की जान जाने से युवा स्वामीनाथन बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने कृषि अनुसंधान का कार्यभार संभालने को लेकर शुरुआत की. उनकी व्यक्तिगत प्रेरणा ने उन्हें मद्रास कृषि महाविद्यालय और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान सहित प्रसिद्ध संस्थानों में अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया. स्वामीनाथन ने खुद को गेहूं और चावल की उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने के लिए समर्पित कर दिया जो भारत की विविध कृषि स्थितियों का सामना कर सकें. उनके अभूतपूर्व कार्य ने हरित क्रांति का मार्ग प्रशस्त किया. उनके इस कार्य ने कृषि मेथड का चेहरा हमेशा के लिए बदल दिया. उनके नेतृत्व और समर्पण के माध्यम से, भारत गेहूं और चावल उत्पादन में आत्मनिर्भर बन गया, जिससे लाखों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित हुई.
भारत रत्न से सम्मानित एमएस स्वामीनाथन
जानें कब क्या रहे एमएस स्वामीनाथन ने जूलॉजी और कृषि विज्ञान दोनों में विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी. एमएस स्वामीनाथन के पास 50 से अधिक मानद डॉक्टरेट डिग्रियां थी. स्वामीनाथन ने इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (1972-1979 तक) और इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट (1982-88) के महानिदेशक के रूप में कार्य किया. वह 1979 में वे कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव रहे. 1988 में एमएस स्वामीनाथन प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के अंतर्राष्ट्रीय संघ के अध्यक्ष बने. 2004 में स्वामीनाथन को किसानों पर नेशनल कमिशन के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था, जो आत्महत्या के मामलों के बीच किसानों के संकट को देखने के लिए गठित एक आयोग था.
भारत रत्न से सम्मानित एमएस स्वामीनाथन
प्रोफेसर स्वामीनाथन को मिले प्रमुख पुरस्कार
1967 में भारत सरकार की ओर से पद्मश्री
1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
1972 भारत सरकार की ओर से पद्म भूषण
1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार
1987 में पहला विश्व खाद्य पुरस्कार
1987 में वोल्वो, टायलर पुरस्कार
1987 में यूएनईपी सासाकावा पुरस्कार
1989 में भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण
2013 में इंदिरा गांधी शांति पुरस्कार
2000 में निरस्त्रीकरण और विकास और फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट फोर फ्रीडम मेडल