देश में सीएए लागू होने के बाद बिहार के मुजफ्फरपुर में होली मुजफ्फरपुरः देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू होने पर गन्नीपुर स्थित रिफ्यूजी कॉलोनी में जश्न मनाया गया. लोगों ने एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर खुशी जताई. ये वही लोग हैं जो 1956 में बांग्लादेश से आए थे. बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को रिफ्यूजी कॉलोनी में बसाया गया था. सीएए लागू होने के बाद यहां रह रहे लोगों ने कहा कि नागरिकता के लिए संघर्ष कर रहे विदेश से भारत में आए हजारों परिवार को इससे लाभ मिलेगा.
नागरिकता के लिए काफी जद्दोजहदः स्थानीय लोगों ने बताया कि 1956 में आने के बाद उन लोगों के पूर्वजों को यहां जमीन देकर प्रशासन ने बसाया. सामान्य नागरिकों की तरह तमाम सुविधाएं दी गई. वोट का अधिकार तक मिला. कहा कि हमलोगों ने शुरुआत के संघर्ष की कहानी सुनी है. नागरिकता के लिए काफी जद्दोजहद हुई थी लेकिन शहर के जनप्रतिनिधियों का भरपूर सहयोग मिला. आज हमलोगों का परिवार है.
मुजफ्फरपुर के रिफ्यूजी कॉलोनी का घर 1956 में आए थे 32 परिवारः रिफ्यूजी कॉलोनी के रहने वाले अधिवक्ता संजय सिन्हा ने बताया कि यह कानून पहले से पारित था लेकिन कुछ नेताओं ने मुस्लिम वर्ग को बहकावे में लाकर कहा कि यह कानून उनके खिलाफ है. यही कारण है कि यह कानून लागू नहीं किया सका था. 1956 की बात करें तो यहां लगभग 32 परिवार बांग्लादेश से आए थे. भारत सरकार ने रेलवे की जमीन पर बसाने का काम किया था. आज 32 परिवार से सैकड़ों परिवार हो गए हैं.
मुजफ्फरपुर के रिफ्यूजी कॉलोनी का घर "1956 में यहां 32 परिवार बांग्लादेश से आए थे. सरकार ने रेलवे की जमीन पर इनलोगों को बसाने का काम किया. आज ये लोग सैंकड़ों परिवार है. सीएए लागू होने से इनलोगों को मजबूती मिलेगी. "-संजय सिन्हा, अधिवक्ता
'हमलोगों को काफी फायदा मिलेगा': रिफ्यूजी कॉलोनी में किराना दुकान चलाने वाले संजय साह ने बताया कि उनके भी परिवार बांग्लादेश से आए थे. 1956 में मेरा परिवार यहां आया था. मेरे नाना-नानी और मां आई थी. मां की उम्र उस समय 8 साल की थी. मेरा जन्म तो यहीं हुआ है. संजय साह ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में यह कानून लागू हुआ है, जिससे हमलोगों को काफी फायदा मिलेगा.
'घरवार छोड़कर नाना-नानी आए थे भारत': संजय साह ने बताया कि उनके परिवार ने विस्थापन का दंश झेला है. बंगलादेश के ढाका में भरा-पूरा खानदान था. अपना कारोबार, घर- बार और जमीन जायदाद था लेकिन दादा के साथ पिता स्वर्गीय माखनलाल सिकदर समेत पूरा परिवार जायदाद छोड़कर दो बक्सा लेकर भारत में शरण लेने आए. कई शहरों से भटकते हुए मुजफ्फरपुर पहुंचे.
"हमलोग मोदी जी को दिल से धन्यवाद देते हैं कि उन्होंने इस कानून को लाने का काम किया. इससे हमलोगों को काफी सुविधा मिलेगी. यहां के लोगों ने भी काफी स्पोर्ट किया. आज हमलोग काफी खुश हैं."-संजय साह, बांग्लादेश से आने वाले शरणार्थी
मुजफ्फरपुर के रिफ्यूजी कॉलोनी के रहने वाले लोग. वर्षा सिंह रह चुकी हैं मेयरः बता दें कि ये ऐसे लोग हैं जिन्हें भारत की नागरिकता मिल चुकी है. इन्हें वोट करने का भी अधिकारी है. इस कानून से बाद में आए शरणार्थी को सीएए से लाभ मिलेगा. इन लोगों को भी काफी सुविधा मिलेगी. बता दें कि इसी कॉलोनी की बेटी वर्षा सिंह मेयर रह चुकी हैं. इनके दादा भी बांग्लादेश से आए थे. इनके दादा को नागरिकता के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा था.
वर्षा सिंह के दादा थे बांग्लादेशीः पूर्व मेयर वर्ष सिंह ने बताया कि 1956 में उनका परिवार भी बंगलादेश से विस्थापित होकर शहर में पहुंचा था. उस समय बड़ी संख्या में मुस्लिम परिवार भी बंगलादेश से आए थे. तब और अब की स्थिति में काफी अंतर है. हालांकि उन्होंने कहा कि सीएए में गैर मुस्लिम को नागरिकता देने का प्रावधन है लेकिन उस समय कुछ मुस्लिम परिवार भी भारत आए थे. उनके साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए.
मुजफ्फरपुर के रिफ्यूजी कॉलोनी के रहने वाले लोग. "केंद्र सरकार ने सीएए में एक धर्म के लोगों को नागरिकता के अधिकार वंचित कर दिया है लेकिन सभी विस्थापितों का दर्द एक समान होता है. हर कोई अपनी जमीन-जायदाद छोड़कर आया था. अब उनके साथ धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं होना चाहिए था. सीएए में सभी धर्म के लोगों को नागरिकता का अधिकार मिलता तो ज्यादा खुशी मिलती."-वर्षा सिंह, पूर्व मेयर
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