पटनाःआज अगर नेता की बात करते हैं तो एक ही छवि दिखाई देती है घर, गाड़ी, बंगला और बैलेंस बैलैंस. जब नेता चलते हैं तो उनके पीछे महंगी-महंगी गाड़ियों का काफिला चलता है. चुनाव के समय तो रुपए ऐसे खर्च करते हैं जैसे पानी हो. लोकसभा चुनाव 2024 में भी ऐसा ही देखने को मिल रहा है. प्रत्याशी अपने नामांकन से लेकर प्रचार-प्रसार तक करोड़ों रुपए खर्च करते हैं.
क्या सभी नेता अमीर होते हैं?: इन सब को देखकर यही ख्याल आता है कि क्या सभी नेता ऐसी ही होते हैं जिनके पास करोड़ों-अरबों की संपत्ति रहती है? क्या सभी नेता चुनाव में करोड़ों रुपए खर्च करते हैं? इसका जवाब होगा नहीं, लेकिन इस जवाब सो सच्चाई में बदलने के लिए कई साल पीछे जाना पड़ेगा. जी हां, हमारे देश में ऐसे भी नेता हुए जो एक रुपए चंदा लेकर चुनाव लड़ते थे और प्रचार-प्रसार के नाम पर खुद से पोस्टकार्ड लिखते थे.
ऐसे नेता थे बाबू जगजीवन: हम बात कर रहे हैं भारत के पूर्व उप प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम की. बिहार के भोजपुर में जन्मे बाबू जगजीवन सासाराम से 8 बार सांसद का चुनाव जीते. देश के कई मंत्रालयों में मंत्री रहने के बाद देश के प्रथम दलित उप प्रधानमंत्री बने थे. एक स्वच्छ छवि के नेता के रूप में पहचान बनाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद उनकी तारीफ करते हैं और उनका उदाहरण देते रहते हैं.
8 बार सांसद रहते हुए रिकॉर्ड बनायाः बाबू जगजीवन राम ने आठ बार सासाराम लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. एक ही लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहकर रिकॉर्ड कायम किए. हालांकि रामविलास पासवान 9 बार सांसद चुने गए हैं लेकिन वे अलग-अलग क्षेत्र से चुनाव जीते थे. जॉर्ज फर्नांडिस भी आठ बार सांसद चुने गए लेकिन उनका भी लोकसभा क्षेत्र अलग-लग रहा.
पत्र के जरीए करते थे प्रचारः बाबू जगजीवन राम लोकसभा चुनाव बेहद अलग अंदाज में लड़ते थे. हर गांव में कुछ गिने-चुने लोगों से उनका व्यक्तिगत संबंध हुआ करता था. चुनाव करीब आता था तो बाबू जगजीवन राम की हस्तलिखित चिट्ठी सबके घर पहुंच जाती थी. पोस्टकार्ड में बाबू जगजीवन राम लिखते थे कि 'आपका जगजीवन इस बार फिर चुनाव लड़ रहा है. आपका आशीर्वाद चाहिए'
जगजीवन राम का राजनीतिक करियरः राजनीतिक करियर की बात करें तो 1952 से लेकर 1984 तक सांसद रहे. 1952 से 1971 तक कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा पहुंचे. आपातकाल के दौरान 1977 में कांग्रेस छोड़ा और 1980 में जनता पार्टी से जुनाव जीते. 1984 के चुनाव में जगजीवन राम अपनी पार्टी 'इंडियन कांग्रेस जगजीवन' बना ली और अपनी पार्टी के टिकट पर जीत हासिल की. 1986 में निधन हो गया इसके बाद सासाराम में दूसरे प्रत्याशी को मौका मिला. बाबू जगजीवन राम के निधन के बाद उनकी पुत्री मीरा कुमार चुनाव लड़ी लेकिन छेदी पासवान ने उन्हें चुनाव में हरा दिया.