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अंबिकापुर छात्रा सुसाइड केस में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का आदेश, स्कूल में बच्चे को शारीरिक हिंसा का शिकार बनाना क्रूरता - Chhattisgarh HC Bilaspur

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए बड़ा फैसला सुनाया है. अदालत ने कहा कि बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता. पढ़िए पूरी खबर

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट बिलासपुर (ETV BHARAT)

By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Aug 4, 2024, 4:29 PM IST

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक छात्र को आत्महत्या के उकसाने के आरोप से जुड़ी एक महिला शिक्षिका की याचिका पर सुनवाई की है. 29 जुलाई को हुई सुनवाई में कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे को शारीरिक हिंसा का शिकार बनाना क्रूरता है.

कब हुई सुनवाई: 29 जुलाई 2024 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में यह सुनवाई हुई. महिला शिक्षिका की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आदेश में कहा कि बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता. इसमें कहा गया कि "बच्चे को शारीरिक दंड देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत उसके जीवन के अधिकार के अनुरूप नहीं है." कोर्ट ने कहा कि छोटा होना किसी बच्चे को वयस्क से कमतर नहीं बनाता.

अंबिकापुर की शिक्षिका से जुड़ा है मामला: फरवरी 2024 में अंबिकापुर के एक निजी स्कूल में शिक्षिका सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ जोस के खिलाफ छठी क्लास की एक छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था. इस केस में एफआईआर दर्ज हुई थी उसके बाद शिक्षिका को गिरफ्तार कर लिया गया. छात्रा के छोड़े सुसाइड नोट में शिक्षिका का नाम था उसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. इसी केस में महिला टीचर ने हाईकोर्ट का रुख किया था.

हाईकोर्ट ने शिक्षिका की याचिका की खारिज: हाईकोर्ट ने महिला टीचर की याचिका को खारिज कर दिया. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि, "बड़े पैमाने पर जीवन के अधिकार में वह सब कुछ शामिल है जो जीवन को अर्थ देता है और इसे स्वस्थ और जीने लायक बनाता है. इसका मतलब जीवित रहने या पशुवत अस्तित्व से कहीं बढ़कर है. अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार में जीवन का कोई भी पहलू शामिल है जो इसे सम्मानजनक बनाता है.छोटा होना किसी बच्चे को वयस्क से कमतर नहीं बनाता"

"अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे को शारीरिक हिंसा के अधीन करना क्रूरता है. बच्चा एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन है, जिसका पालन-पोषण और देखभाल कोमलता और देखभाल के साथ किया जाना चाहिए, न कि क्रूरता के साथ. बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता": छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

महिला टीचर के वकील ने क्या कहा ?: सुनवाई के दौरान दलील देते हुए महिला टीचर के वकील ने शिक्षिका का बचाव किया. उन्होंने दलील दी कि," घटना के दिन जोस ने स्कूल में अपनाई जाने वाली सामान्य अनुशासनात्मक प्रक्रिया के अनुसार छात्रा को केवल डांटा और उसका आईडी कार्ड ले लिया.याचिकाकर्ता का कभी भी छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई इरादा नहीं था. पुलिस ने बिना कोई प्रारंभिक जांच किए, केवल सुसाइड नोट के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली."

सरकारी वकील ने क्या दलील दी: इस केस में सरकारी वकील ने याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत मृत छात्रा के सहपाठियों ने भी साक्ष्य प्रस्तुत करवाएं हैं. उससे यह पता चलता है कि महिला टीचर का आचरण इतना कठोर था कि छात्रा मानसिक आघात में थी. इसलिए महिला शिक्षिका की याचिका को खारिज किया जाना चाहिए.

कोर्ट ने क्या आदेश दिया: महिला टीचर की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि वह आरोपी के बचाव में गहराई से नहीं जा सकता. इसके साथ ही फिर पेश किए गए सबूतों को तौलकर मामले की योग्यता के आधार पर जांच नहीं कर सकता.

"इस मामले में तथ्यों के विवादित सवालों पर बीएनएसएस (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता) की धारा 528 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए इस स्तर पर फैसला नहीं सुनाया जा सकता है. केवल प्रथम दृष्टया अभियोजन मामले पर ही गौर किया जाना चाहिए. आरोपी के बचाव को पुख्ता करने के लिए सबूत पेश किए जाने चाहिए. याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपपत्र और एफआईआर को रद्द करने का कोई आधार नहीं मिला": छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

सरगुजा के मणिपुर इलाके कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल की शिक्षिका सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ जोस के खिलाफ एक छात्रा को सुसाइड के लिए उकसाने का आरोप लगा है. वह इस केस में कार्रवाई से गुजर रही है. इसी केस के सिलसिले में महिला शिक्षिका ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. जिसकी सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अपना आदेश दिया है.

सोर्स: पीटीआई

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