बिलासपुर: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक छात्र को आत्महत्या के उकसाने के आरोप से जुड़ी एक महिला शिक्षिका की याचिका पर सुनवाई की है. 29 जुलाई को हुई सुनवाई में कोर्ट ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे को शारीरिक हिंसा का शिकार बनाना क्रूरता है.
कब हुई सुनवाई: 29 जुलाई 2024 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में यह सुनवाई हुई. महिला शिक्षिका की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने आदेश में कहा कि बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता. इसमें कहा गया कि "बच्चे को शारीरिक दंड देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा गारंटीकृत उसके जीवन के अधिकार के अनुरूप नहीं है." कोर्ट ने कहा कि छोटा होना किसी बच्चे को वयस्क से कमतर नहीं बनाता.
अंबिकापुर की शिक्षिका से जुड़ा है मामला: फरवरी 2024 में अंबिकापुर के एक निजी स्कूल में शिक्षिका सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ जोस के खिलाफ छठी क्लास की एक छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था. इस केस में एफआईआर दर्ज हुई थी उसके बाद शिक्षिका को गिरफ्तार कर लिया गया. छात्रा के छोड़े सुसाइड नोट में शिक्षिका का नाम था उसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. इसी केस में महिला टीचर ने हाईकोर्ट का रुख किया था.
हाईकोर्ट ने शिक्षिका की याचिका की खारिज: हाईकोर्ट ने महिला टीचर की याचिका को खारिज कर दिया. सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा कि, "बड़े पैमाने पर जीवन के अधिकार में वह सब कुछ शामिल है जो जीवन को अर्थ देता है और इसे स्वस्थ और जीने लायक बनाता है. इसका मतलब जीवित रहने या पशुवत अस्तित्व से कहीं बढ़कर है. अनुच्छेद 21 में निहित जीवन के अधिकार में जीवन का कोई भी पहलू शामिल है जो इसे सम्मानजनक बनाता है.छोटा होना किसी बच्चे को वयस्क से कमतर नहीं बनाता"
"अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में बच्चे को शारीरिक हिंसा के अधीन करना क्रूरता है. बच्चा एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन है, जिसका पालन-पोषण और देखभाल कोमलता और देखभाल के साथ किया जाना चाहिए, न कि क्रूरता के साथ. बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता": छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट