प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल पूछा है कि जब जिले का वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी संवैधानिक अदालत के आदेश का पालन नहीं करता है, तो ऐसी स्थिति में सरकार के पास क्या विकल्प मौजूद हैं. एसएसपी अलीगढ़ के हलफनामे से असंतुष्ट कोर्ट ने इस मामले में प्रदेश सरकार से जवाब मांगा था. इस पर सचिव गृह ने हलफनामा दाखिल किया.
मगर अदालत गृह विभाग के जवाब से संतुष्ट नहीं थी, इसलिए उसे लौटाते हुए बेहतर हलफनामा दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है. कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि न तो एसएचओ सिविल लाइंस अलीगढ़ और न ही एसएसपी अलीगढ़ ने अदालत द्वारा मांगी गई जानकारी का सही तरीके से उत्तर दिया और न ही कोर्ट के आदेश का सही भावना से पालन किया गया.
सुभाष चंद्र और छह अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने मंगलवार को दिया. याची और उसके परिवार के 6 अन्य लोगों के खिलाफ उसके बड़े भाई सुभाष चंद्र ने अलीगढ़ के सिविल लाइंस थाने में धोखाधड़ी और फर्जी प्रपत्र तैयार कर फर्जी पावर ऑफ अटॉर्नी बनाने का मुकदमा दर्ज कराया है. इस मामले में सीजेएम कोर्ट ने याची को सम्मन जारी किया, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.
याचिका पर सुनवाई के दौरान शिकायतकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि विवेचक ने इस मामले से संबंधित तमाम महत्वपूर्ण साक्ष्य को नजरअंदाज करते हुए फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. इसके खिलाफ उसने प्रोटेस्ट पिटिशन दाखिल की तथा प्रोटेस्ट पिटिशन पर कोर्ट ने फाइनल रिपोर्ट रद्द कर यांची को सम्मन जारी किया है. विपक्षी अधिवक्ता का कहना था कि विवेचक ने बड़े ही सतही तरीके से मात्र 18 दिनों में विवेचना पूरी की. उन्होंने न तो दस्तावेजों को फोरेंसिक जांच के लिए भेजा और न ही किसी वैज्ञानिक तकनीक का सहारा लिया.
यांची से मिली भगत कर जल्दबाजी में फाइनल रिपोर्ट लगा दी थी. कोर्ट ने इस प्रकरण में सिविल लाइंस थाने के एसएचओ को हलफनामा दाखिल कर यह बताने का निर्देश दिया था कि इस मामले के विवेचक राजेश कुमार के पास जांच के लिए कितने मुकदमे हैं. सिविल लाइंस थाने में कुल कितने मुकदमे लंबित है. उनको किन मुकदमों की कब-कब जांच दी गई. इसकी पूरी सूची प्रस्तुत करने के लिए अदालत ने आदेश दिया था.