चेन्नई: तमिलनाडु के एरवाडी तिरुनेलवेली जिले के कालाकाडु में हर साल मोहर्रम के मौके पर चंदन फेस्टिवल मनाया जाता है. हालांकि, 800 साल पुराना यह उत्सव पिछले 10 सालों से नहीं मनाया गया था, लेकिन कोर्ट के आदेश पर बुधवार को फिर से चंदन उत्सव मनाया गया. इससे पहले इस पारंपरिक त्यौहार को फिर मनाने के लिए हसन हुसैन मुहर्रम कमेटी के अध्यक्ष तमीम सिंदमदार ने हाई कोर्ट की मदुरै ब्रांच में मामला दायर किया था.
इस मौके पर तमीम ने कहा कि इस क्षेत्र में मुहर्रम की परंपरा 800 साल पुरानी है. यहां 'हसन' नाम की एक दरगाह और 'हुसैन' नाम की एक अलग दरगाह है. चंदन फेस्टिवल के दौरान मोहर्रम की शाम को दोनों दरगाहों से चंदन की लकड़ी को लेकर जुलूस निकाला जाता है और अंत में दोनों चंदन की लकड़ियां एक चौराहे पर मिलती हैं. बाद में उन्हें शहर के बाहर नहर के पानी में बहा दिया जाता है.
मुस्लिम समुदाय के लोग जाति-धर्म से ऊपर उठकर भाईचारे के साथ इस उत्सव को मनाते हैं. हालांकि, 2013 में कुछ संगठनों ने यह कहते हुए इसका विरोध किया था कि यह इस्लामी संस्कृति पर आधारित त्यौहार नहीं है और यह पूरी तरह से हिंदू संस्कृति का हिस्सा है.
तमीम ने कहा ,"उस साल आयोजित होने वाले त्यौहार की रस्मों के दौरान हिंसा हुई थी और उन्होंने इसे कानून और व्यवस्था के मुद्दे में बदल दिया और इस पर प्रतिबंध लग गया. आमतौर पर इस त्यौहार में 5 हजार से अधिक लोग शामिल होते थे. यह बिना किसी को परेशान किए या किसी समस्या के चल रहा था. अब अदालत के आदेश के बाद इसे 10 साल बाद फिर से आयोजित किया जा रहा है."
800 साल पुरानी परंपरा कैसे टूटी?
आमतौर पर चंदन उत्सव के दौरान एरवाडी क्षेत्र का एक मैदान लोगों से खचाखच भरे होता है. इसमें एक तरफ चंदन जुलूस होता है और दूसरी तरफ सड़कों पर कई दुकानें सजी होती हैं. 2013 में पुलिस ने कानून और व्यवस्था की समस्या का हवाला देते हुए एरवाडी चंदन उत्सव पर प्रतिबंध लगा दिया था.