वाराणसी: काशी के विशिष्ट साधक और काशी वासियों के लिए भगवान विश्वनाथ का साक्षात स्वरूप माने जाने वाले 106 वर्ष के स्वामी शिवानंद भारती का रविवार को तिरोधान हो गया. वह ऐसे साधक थे जो लगभग सौ वर्षों से अनवरत भगवान विश्वनाथ की उपासना, साधना कर रहे थे. बात यह है कि आज जब संत महात्मा और हर कोई सोशल मीडिया के युग में पब्लिक फ्रेंडली हो चुका है तो वही भारती जी महाराज किसी से भी नहीं मिलते थे. किसी से कोई दक्षिणा आदि ग्रहण नहीं करते थे. इतना ही नहीं अपने इस पंचतत्व शरीर को भी उन्होंने समाज से विरक्त होकर 20 वर्ष की उम्र में संन्यास धर्म स्वीकार कर लिया था.
उन्होंने पत्नी का त्याग कर दिया और घोर कठिन तपस्या भगवान विश्वनाथ के सानिध्य में प्रात: ढाई बजे से सायंकाल छह बजे तक अनवरत गर्भगृह में बैठ कर अभिषेक करते थे. यह क्रम उनका लगभग आठ दशकों तक चला. ऐसे संत की तपस्या को देखकर उनके छोटे भाई प्रो.सुधांशु शेखर शास्त्री, जो बीएचयू में संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में डीन आदि के पद पर रहते हुए. वे अपना जीवन अपने बड़े भाई की सेवा में लगा दिया. उन्होंने भी विवाह नहीं किया. उन्होंने कहा कि हमारा बड़ा भाई इतनी तपस्या कर रहा है.
इनकी सेवा से ही हमारा जीवन सफल होगा. इस संकल्प के साथ उनकी सेवा करते थे. ऐसे साधक उपासक उत्तर भारत में वर्तमान समय में देखने को नहीं मिलता. जहां देवरहवा बाबा, मां आनंदमयी एवं स्वामी करपात्री जी जैसे सिद्ध साधक इस देश में हुए उसी परंपरा में पूज्य स्वामी शिवानंद भारती जी राजस्थान में पैदा हुए और अपना साधना स्थली काशी में भगवान विश्वेश्वर के सानिध्य में ललिता घाट स्थित राजराजेश्वरी मंदिर के तृतीय तल पर एकाकी जीवन बिताते हुए अखंड तपस्या की. सबसे बड़ी बात यह है कि वह नियमित बाबा विश्वनाथ के दर्शन करने के लिए पहुंचते थे और मंगला आरती में भी शामिल होते थे.