कोलकाता: जब रसिक मंडल पश्चिम बंगाल के मालदा में जिला सुधार गृह के विशाल हरे रंग के गेट के भीतर बने छोटे से छेद से बाहर निकले, तो उन्हें यकीन ही नहीं हुआ कि वह आजाद हो गए हैं. सच्चाई और शाम के समय की ठंडी हवा ने उन्हें कुछ समय के लिए स्तब्ध कर दिया, क्योंकि यह क्षण 36 साल बाद आया था और तब वे 104 साल के होने वाले थे.
इस मौके पर रसिक के सबसे छोटे बेटे उत्तम ने ईटीवी भारत को बताया, "मेरे पिता को ठीक से याद नहीं है कि उनका जन्म किस दिन हुआ था. इसलिए हमारे पास ग्रेगोरियन कैलेंडर रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन जिस दिन के बारे में उन्होंने हमें बताया, बंगाली कैलेंडर और पंचांग के अनुसार हमने अनुमान लगाया कि वह 26 दिसंबर होगा. वह जब सूती लुंगी और सफेद कुर्ता पहने हुए सुधार गृह से बाहर निकले और अपनी छड़ी पकड़ी, तो यह सचमुच हमारे लिए एक भावुक क्षण था"
1920 में हुआ था जन्म
रसिक का जन्म 1920 में मालदा जिले के मानिकचक ब्लॉक की सीमा के भीतर दक्षिण चांदीपुर पंचायत के पश्चिम नारायणपुर गांव में हुआ था और 1988 में भूमि विवाद में अपने भाई सुरेश की हत्या के आरोप में हिरासत में लिए जाने से पहले वह कभी अपने गांव से बाहर नहीं गए थे.
68 साल की उम्र में गए थे जेल
सुरेश की पत्नी आरती ने रसिक सहित 18 लोगों के खिलाफ मानिकचक पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी. 1994 में जब मामले की सुनवाई शुरू हुई, तब तक रसिक 68 साल के हो चुके थे. उन्हें और एक अन्य ग्रामीण जितेन तांती को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. तब से रसिक मालदा जिले के सुधार गृह में रह रहे थे, लेकिन कुछ समय के लिए उन्हें दक्षिण दिनाजपुर जिले के बालुरघाट केंद्रीय सुधार गृह में ट्रांसफर कर दिया गया.
30 नवंबर को मिली जमानत
30 नवंबर को भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 104 वर्षीय रसिक चंद्र मंडल को अंतरिम जमानत दे दी. उत्तम ने कहा, हालांकि उनके पिता को पिछले सोमवार को रिहा किया जाना था, लेकिन आधिकारिक प्रक्रियाओं और कागजी कार्रवाई ने इसे मंगलवार देर दोपहर तक के लिए टाल दिया. जब रसिक मंडल सुधार गृह से बाहर आए, तो उत्तम और उनके दो बेटे, अपूरबो और प्रबीर उनका स्वागत करने के लिए इंतजार कर रहे थे.