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बिहार के इस गांव में खेलकूद कर बड़े हुए हैं कर्पूरी ठाकुर, पत्नी चराती थीं बकरी - KARPURI THAKUR BIRTH ANNIVERSARRY

कर्पूरी ठाकुर की 101वीं जयंती पर उनकी समाजवादी विचारधारा, संघर्ष, शिक्षा और गरीबों के उत्थान के लिए समर्पित जीवन को श्रद्धांजलि दी जा रही है-

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कर्पूरी ठाकुर की जन्म जयंती (Etv Bharat)

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Jan 24, 2025, 8:14 AM IST

समस्तीपुर: भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर का जन्म तत्कालीन दरभंगा जिले के पितौझिया गांव में हुआ था. इनके पिता गोकुल ठाकुर गांव के सीमांत किसान थे और अपने पारंपरिक पेशा, नाई का काम भी करते थे. 1972 में समस्तीपुर को अलग जिला बना दिया गया है और कालांतर में पितौझिया गांव का नाम भी बदल कर 'कर्पूरी ग्राम' कर दिया गया. इस अवसर पर जिला प्रशासन द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों की तैयारी जोरों से की जा रही है.

जननायक की जन्म जयंती: स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को ‘जननायक’ के नाम से जाना जाता है. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और 26 महीने तक जेल में रहे. स्वतंत्रता के बाद वह अपने गांव में मिडिल स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्यरत हुए और बाद में बिहार विधानसभा के सदस्य बने. कर्पूरी ठाकुर ने बिहार के उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया.

कर्पूरी ठाकुर का गांव (ETV Bharat)

कर्पूरी ठाकुर की समाजवादी विचारधारा: स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर को गरीबों का मसीहा और समाजवादी विचारधारा का प्रबल समर्थक माना जाता था. उन्होंने हमेशा समाज के दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए काम किया और उनके हक की आवाज उठाई. उनका सपना था कि कमजोर वर्ग को मुख्यधारा में लाया जाए. उनके राजनीतिक जीवन का आरंभ बिहार के ताजपुर विधानसभा से हुआ, जहां उन्होंने 1952 में पहली बार बिहार विधानसभा में प्रवेश किया. वह समाज के हर वर्ग के लिए काम करने में विश्वास रखते थे.

''कर्पूरी जी पितोजिया गांव के रहने वाले थे. और उसी गांव में मिडिल स्कूल में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत थे. 'गुदड़ी का लाल' इसलिए कहा जाता है कि वह गरीबों को सच्चा मार्गदर्शन देने का काम करते थे. पढ़ाई की ओर ज्यादा झुकाव रखते थे. गरीबों का कोई शोषण न करें इसके लिए वह अग्रसर रहते थे. 36 साल के बाद भारत रत्न की उपाधि देकर इन्हें आज भी जीवित कर दिया है.''- उमाकांत राय, जिला उपाध्यक्ष, जेडीयू

कर्पूरी ठाकुर (ETV Bharat)

कर्पूरी ठाकुर की शिक्षा और संघर्ष की कहानी : कर्पूरी जी का जीवन एक संघर्षों की दास्तान है. उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी शिक्षा और संघर्ष ने उन्हें बिहार के एक प्रमुख नेता बना दिया. वह खुद एक शिक्षक थे और उनके शिक्षा के प्रति समर्पण ने उन्हें गांव-गांव में एक प्रेरणास्त्रोत बना दिया. उनके माता-पिता ने कठिनाईयों के बावजूद उन्हें शिक्षा की ओर प्रेरित किया.

हाथों से पीसा जाता था गेहूं (ETV Bharat)

राजनीतिक जीवन और कर्पूरी ठाकुर की सादगी : कर्पूरी ठाकुर का जीवन राजनीति में सादगी और आत्मविश्वास का प्रतीक था. उन्होंने अपनी सुरक्षा को लेकर कभी कोई विशेष चिंता नहीं की और हमेशा आम लोगों के बीच रहने की कोशिश की. उनका मानना था कि एक नेता को जनता के बीच रहकर ही उनकी समस्याओं का समाधान करना चाहिए. यही कारण था कि जब वह मुख्यमंत्री थे, तो अपने सुरक्षा गार्ड्स को निर्देश देते थे कि वह आम लोगों से मिलने के दौरान उनके बीच न आएं.

कर्पूरी की झोपड़ी में चूल्हा (ETV Bharat)

''कर्पूरी ठाकुर गरीब के मसीहा थे समाजवादी विचारधारा के लोग थे. हमेशा समाज में दबे कुचले लोगों के आवाज उठाने को लेकर काम करते थे. वह हमेशा चाहते थे कि कमजोर वर्ग के लोगों का उत्थान कैसे हो इस इस संबंध में हमेशा सोचते रहते थे. राजनीतिक सफर में सत्यनारायण बाबू पूर्व राज्यपाल एवं सांसद के साथ रहने की वजह से वह राजनीति में आए और धीरे-धीरे आगे बढ़ते रहे. समाज के सभी वर्गों के लोगों के उत्थान को लेकर यह कार्य करते रहे.''- रामदयालु सिंह

कर्पूरी ठाकुर का परिवार और यादें : भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के परिवार से जुड़े कई व्यक्तिगत अनुभव भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. उनके पोते-पोतियों और परिजनों के अनुसार, कर्पूरी जी ने हमेशा परिवार के साथ समय बिताया और उन्हें प्रेरित किया. उनकी पोती, डॉक्टर स्नेहा कुमारी ने बताया कि वह अपने दादा के साथ एंबेसडर कार में सफर करती थीं और बचपन में उनकी सादगी को महसूस किया. उनके दादा की यादें उनके लिए हमेशा विशेष रहेंगी.

कर्पूरी की पहली कार (ETV Bharat)

''मेरे पिताजी कर्पूरी ठाकुर ने मुझे बताया कि हमारी स्थिति अच्छी नहीं थी, हम भटक गए. लेकिन तुम अफसर बनो और मेरे मां-बाप को भी देखना और अपनी मां को भी देखना. अगर मैं अपने पिता की बात मान लेता तो आज मैं भी अफसर रहता. पॉलिटिकल लाइन में आ गया हूं. तब ये बातें उन्हें हमेशा खटकती रहती है. हर एक पुत्र को अपने माता-पिता की बात माननी चाहिए. राजनीतिक लाइन में स्वेच्छा से लोग आते रहते हैं. सामाजिक सेवा ध्यान में रखते हुए मैं राजनीति में आया हूं.''-रामनाथ ठाकुर, केंद्रीय मंत्री और कर्पूरी ठाकुर के बेटे

कर्पूरी की झोपड़ी में 'संघर्षों' की झांकी (ETV Bharat)

गुदड़ी के लाल की संघर्ष गाथा : कर्पूरी ठाकुर के जीवन की संघर्षपूर्ण गाथा को एक झोपड़ी में दर्शाया गया है, जो उनके बचपन और कठिन जीवन का प्रतीक है. इस झोपड़ी में सिलौटी चक्की और मिट्टी के चूल्हे को दर्शाया गया है, जो उनकी कठिनाइयों और परिश्रम की कहानी बयां करते हैं. इसी झोपड़ी में उनकी मां उन्हें पढ़ाई के लिए प्रेरित करती थीं. एक बार, जब देवीलाल जी ने इस झोपड़ी को देखा, तो वह कर्पूरी जी की जीवनगाथा से इतने प्रभावित हुए कि उनकी आंखों में आंसू आ गए थे.

विलासिता से दूर गरीबी में जी रहे थे कर्पूरी ठाकुर (ETV Bharat)

दूसरों के लिए समर्पित था जीवन : स्वर्गीय कर्पूरी ठाकुर का जीवन संघर्ष, समर्पण और समाज सेवा का प्रतीक था. उन्होंने हमेशा शिक्षा और समाज के उत्थान के लिए काम किया और गरीबों के हक की आवाज उठाई. उनका जीवन आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है और उनकी 101वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि दी जा रही है.

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