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ବିଶ୍ବାସ ନାଁରେ ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ, ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶର ନିଆରା ପର୍ବ ‘ଗୌରୀ ପୂଜା’ - ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶର ଗୌରୀ ପୂଜା

ବର୍ଷ ବର୍ଷ ଧରି ଦେଶର ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନରେ ଚାଲିଆସିଛି ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ । ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶର ଉଜ୍ଜୈନ ଜିଲ୍ଲାରେ ଥିବା ଭିଡାୱାଡରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଛି ଏକ ଭିନ୍ନ ପରମ୍ପରା। ଯାହା ଭଗବାନଙ୍କ ଆଶୀର୍ବାଦ ପାଇବା ନାମରେ ଲୋକଙ୍କୁ କଷ୍ଟ ଦେବା ଛଡା ଆଉ କିଛି ନୁହେଁ ।

ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ
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Published : Oct 29, 2019, 3:18 PM IST

ଭୋପାଳ: ବର୍ଷ ବର୍ଷ ଧରି ଦେଶର ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନରେ ଚାଲିଆସିଛି ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ । ଆଇ ସବୁଠାରୁ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟର କଥା କି ଏତେ ଶିକ୍ଷିତ ହୋଇ ବି ଅନେକ ଲୋକ ଏହାକୁ ବିରୋଧ କରିବା ବଦଳରେ ବେଶ ଉତ୍ସାହର ସହ ପାଳନ କରୁଛନ୍ତି । ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶର ଉଜ୍ଜୈନ ଜିଲ୍ଲାରେ ଥିବା ଭିଡାୱାଡରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଛି ଏକ ଭିନ୍ନ ପରମ୍ପରା। ଯାହା ଭଗବାନଙ୍କ ଆଶୀର୍ବାଦ ପାଇବା ନାମରେ ଲୋକଙ୍କୁ କଷ୍ଟ ଦେବା ଛଡା ଆଉ କିଛି ନୁହେଁ ।

ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ

ଦୀପାବଳିରେ ଦୁଇ ଦିନ ପରେ ଭିଡାୱାଡରେ ପାଳନ ହୁଏ ‘ଗୌରୀ ପୂଜା’ । ଏଥି ପାଇଁ ମାନସିକଧାରୀମାନେ 5ଦିନ ପୂର୍ବରୁ ଉପବାସ କରନ୍ତି । ଦୀପାବଳି ପର ଦିନ ଗ୍ରାମଦେବୀଙ୍କ ମନ୍ଦିରରେ ପୂଜାର୍ଚ୍ଚନା ସାରି ସେଠାରେ ରାତ୍ରିଯାପନ କରନ୍ତି । ଏହାର ଠିକ୍‌ ପର ଦିନ ନାଚ ଗୀତରେ ସଭିଏଁ ମସଗୁଲ ଥିବା ବେଳେ ମାନସିକଧାରୀମାନେ ମୁହଁ ପୋତି ଭୂଇଁରେ ଶୋଇ ରୁହନ୍ତି । ଆଉ ତାଙ୍କ ଉପରକୁ ଛଡା ଯାଏ ଶହ ଶହ ଗାଈ ।

ଗୋମାତାଙ୍କ ଦେହରେ କୋଟି କୋଟି ଦେବତାର ଆଶ୍ରୟ ଥିବାରୁ ସେ ଶରୀର ଉପରେ ଚଢିଲେ ଆଶୀର୍ବାଦ ମିଳେ ଏଠାକାର ଲୋକଙ୍କର ବିଶ୍ବାସ । ତେଣେ ଏପରି ମଧ୍ୟ ବିଶ୍ବାସ ରହିଛି କି ଗାଈ ଏପରି ଶରୀର ଉପରେ ଚଢିଯିବା ଦ୍ବାରା ସମସ୍ତ ମନସ୍କାମନା ପୂରଣ ହୋଇଥାଏ । ଏନେଇ ଶହ ଶହ ଲୋକେ ଏହି ପରମ୍ପରାରେ ସାମିଲ ହୋଇଥାଆନ୍ତି । କେବଳ ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶ ନୁହେଁ ଦେଶର ଅନେକ ସ୍ଥାନରେ ଏହି ପରମ୍ପରାକୁ ଲୋକେ ଅନେକ ବର୍ଷ ହେବ ମାନି ଆସୁଛନ୍ତି ।

ତେବେ ଦେଶ ଡିଜିଟାଲ ଯୁଗରେ ପାଦ ଥାପିବାକୁ ବସିଥିବା ବେଳେ ଲୋକଙ୍କ ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଏପରି ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ କେତେ ଦୂର ଯଥାର୍ଥ ତାହା ସମୟ କହିବ ।

ବ୍ୟୁରୋ ରିପୋର୍ଟ, ଇଟିଭି ଭାରତ

ଭୋପାଳ: ବର୍ଷ ବର୍ଷ ଧରି ଦେଶର ବିଭିନ୍ନ ସ୍ଥାନରେ ଚାଲିଆସିଛି ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ । ଆଇ ସବୁଠାରୁ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟର କଥା କି ଏତେ ଶିକ୍ଷିତ ହୋଇ ବି ଅନେକ ଲୋକ ଏହାକୁ ବିରୋଧ କରିବା ବଦଳରେ ବେଶ ଉତ୍ସାହର ସହ ପାଳନ କରୁଛନ୍ତି । ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶର ଉଜ୍ଜୈନ ଜିଲ୍ଲାରେ ଥିବା ଭିଡାୱାଡରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଛି ଏକ ଭିନ୍ନ ପରମ୍ପରା। ଯାହା ଭଗବାନଙ୍କ ଆଶୀର୍ବାଦ ପାଇବା ନାମରେ ଲୋକଙ୍କୁ କଷ୍ଟ ଦେବା ଛଡା ଆଉ କିଛି ନୁହେଁ ।

ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ

ଦୀପାବଳିରେ ଦୁଇ ଦିନ ପରେ ଭିଡାୱାଡରେ ପାଳନ ହୁଏ ‘ଗୌରୀ ପୂଜା’ । ଏଥି ପାଇଁ ମାନସିକଧାରୀମାନେ 5ଦିନ ପୂର୍ବରୁ ଉପବାସ କରନ୍ତି । ଦୀପାବଳି ପର ଦିନ ଗ୍ରାମଦେବୀଙ୍କ ମନ୍ଦିରରେ ପୂଜାର୍ଚ୍ଚନା ସାରି ସେଠାରେ ରାତ୍ରିଯାପନ କରନ୍ତି । ଏହାର ଠିକ୍‌ ପର ଦିନ ନାଚ ଗୀତରେ ସଭିଏଁ ମସଗୁଲ ଥିବା ବେଳେ ମାନସିକଧାରୀମାନେ ମୁହଁ ପୋତି ଭୂଇଁରେ ଶୋଇ ରୁହନ୍ତି । ଆଉ ତାଙ୍କ ଉପରକୁ ଛଡା ଯାଏ ଶହ ଶହ ଗାଈ ।

ଗୋମାତାଙ୍କ ଦେହରେ କୋଟି କୋଟି ଦେବତାର ଆଶ୍ରୟ ଥିବାରୁ ସେ ଶରୀର ଉପରେ ଚଢିଲେ ଆଶୀର୍ବାଦ ମିଳେ ଏଠାକାର ଲୋକଙ୍କର ବିଶ୍ବାସ । ତେଣେ ଏପରି ମଧ୍ୟ ବିଶ୍ବାସ ରହିଛି କି ଗାଈ ଏପରି ଶରୀର ଉପରେ ଚଢିଯିବା ଦ୍ବାରା ସମସ୍ତ ମନସ୍କାମନା ପୂରଣ ହୋଇଥାଏ । ଏନେଇ ଶହ ଶହ ଲୋକେ ଏହି ପରମ୍ପରାରେ ସାମିଲ ହୋଇଥାଆନ୍ତି । କେବଳ ମଧ୍ୟପ୍ରଦେଶ ନୁହେଁ ଦେଶର ଅନେକ ସ୍ଥାନରେ ଏହି ପରମ୍ପରାକୁ ଲୋକେ ଅନେକ ବର୍ଷ ହେବ ମାନି ଆସୁଛନ୍ତି ।

ତେବେ ଦେଶ ଡିଜିଟାଲ ଯୁଗରେ ପାଦ ଥାପିବାକୁ ବସିଥିବା ବେଳେ ଲୋକଙ୍କ ବିଶ୍ବାସ ନାମରେ ଏପରି ଅନ୍ଧବିଶ୍ବାସ କେତେ ଦୂର ଯଥାର୍ଥ ତାହା ସମୟ କହିବ ।

ବ୍ୟୁରୋ ରିପୋର୍ଟ, ଇଟିଭି ଭାରତ

Intro:उज्जैन बड़नगर आस्था के नाम पर अंधविश्वास , मौत का खेल ... मन्नत पूरी करने के लिए और गाँव की खुशहाली के लिए गाँव की सेकड़ो गाय इंसान के ऊपर से निकलती है .. रोगंटे खड़े कर देने वाला द्रष्य




Body:उज्जैन हिंदुस्तान ने आज वैज्ञानिक तरक्की के जरिये भले ही दुनिया भर में अपनी मजबूत पहचान बना ली हे लेकिन इक्कीसवी सदी में जी रहे भारत देश में आज भी परंपरा और आस्था का बोलबाला हे. आस्था और परंपरा की हदे पार हो जाये तो आस्था और अंध विश्वास में फर्क करना मुश्किल हो जाता हे। उज्जैन के एक गाव में सदियों से चली आ रही एक परंपरा लोगो के न सिर्फ रोंगटे खड़े कर देती हे बल्कि देखने वालो के दिल भी दहल जाते हे चार हज़ार की आबादी वाले भीडावद गाव में दीपावली के दुसरे दिन दर्जनों लोग मन्नते लेकर सेकड़ो गायों के पेरो तले रुधने के लिए लेट जाते हे कुछ ही पलो में सेकड़ो गाये जमीं पर लेटे लोगो के ऊपर से गुजर जाती हे. इस मंज़र को देखने के लिए हर साल इस गाव में हजारो लोग जमा होते हे



Conclusion:उज्जैन पडवा यानि दीवाली के दुसरे दिन जब सारा देश दीपावली की थकान मिटाने के लिए नीद की आगोश में सोया रहता हे तब उज्जैन से ७५ की.मी.दूर भीडावद गाव के लोग सूरज निकलने के पहले ही उठ जाते हे सूरज निकलने से पहले ही लोग सदियों से चली आ रही गोरी पूजन की परंपरा की तैयारियों में जुट जाते हे सूरज निकलते ही मंदिरों में घंटिया बजने लगती हे .सुबह होते ही लोग अपनी गायो को तैयार करते हे. माता का रूप माने जाने वाली सेकड़ो गायो को नहलाया जाता हे इनको आकर्षक रंग और मेहँदी से सजाया जाता हे .इसके बाद गाव के लोग चौक में जमा हो जाते हे.जहाँ से मन्नत माँगने वाले लोगो का एक जुलुस पूरे गाँव में निकाला जाता हे.जुलुस ख़तम होने के बाद गाँव के मुख्य मार्ग पर इन मन्नत मांगने वाले लोगो को मुह के बल जमीन पर लिटाया जाता हे.उसके बाद गाँव की सैकड़ो गायो को छोड़ दिया जाता हे.ये गाये दौड़ते हुए जमीन पर लेटे हुए मन्नातियो के ऊपर से गजर जाती हे.जो भी इस नज़ारे को देखता है उसका दिल दहल जाता हे गाँव के लोग बताते हे की ये परम्परा सैकड़ो सालों से चली आ रही है गाव के लोग अपनी-अपनी मन्नत मांगते हे

गाँव में प्राचीन मान्यता है की माँ गौरी का रूप यानि की गो माता सुख समृध्धि और शांति का प्रतिक है शास्त्रों में भी गो माता के शारीर में ३३ करोड़ देवताओ वास बताया गया है गाँव के लोग मन्नातियो को साथ लेकर गाँव के चौक में जमा होते है यहाँ पर माँ गौरी ( गो माता ) का पूजन किया जाता है ढोल धमाको के बीच चौक में माँ गौरी की पूजा के लिए मन्नती पूजा की थाली सजा कर लाते है

गाँव में ये परम्परा बरसो पहले शुरू हुई जो आज भी बदस्तूर जारी हे इस गाँव के जो लोग माता भवानी के मंदिर में मन्नत मांगते हे उनको दीपावली से पांच दिन पहले ग्यारस की दिन से ही अपने घर छोड़ कर मंदिर में ही रहना पड़ता है इस साल भी गाँव के सात लोगो ने मन्नते मांगी है जिनको पांच दिन तक पूरे समय म,अन्दिर में ही रहना पड़ा दीपावली के दुसरे दिन पडवा को इन सातो लोगो को मंदिर में पूजा के बाद जूलूस के रूप में गाँव में घोमाया गया मन्नत मांगने वाले लोगो को पूरा भरोसा रहता है की पुरखो से चली आ रही इस परंपरा को निभाने से उनकी मुराद पूरी होती है

सुबह होते ही मन्नात्धारी लोगो के ऊपर से सेकड़ो गांए दोड़ते हुए गुज़र जाती है डेड से दो क्विंटल वजनी सेकड़ो गांए इन लोगो के शारीर को रोंदाती हुई निकल जाती है .लेकिन एतिहासिक परंपरा में लोगो की अटूट आस्था के चलते मन्नत धारिओ को मामूली नुक्सान से ज्यादा कुछ नहीं होता सेकड़ो सालो से चली आ रही इस परंपरा में आज तक कोई हादसा नहीं होना इन लोगो की आस्था को और मजबूत करता है हर साल दिल को दहला देने वाले इस नज़ारे को देखने के लिए आस पास के गाँवो से हजारो लोग जुटते है गाँव की महिलाए भी इस परंपरा को सुख शांति और समृध्धि का प्रतीक मानती है







बाइट---महेश ग्रामीण

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