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यहां डंडे के सहारे नदी पार करते हैं ग्रामीण, विकास के नाम पर मिला सिर्फ 'दर्द'

जानिए उत्तरकाशी के पुरोला के एक ऐसे गांव के बारे में जहां लोगों आजतक नहीं देखी सड़क. नदी भी डंडे के सहारे करते हैं पार.

डंडे के सहारे नदी पार करते ग्रामीण.
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Published : Apr 19, 2019, 1:50 PM IST

पुरोला: उत्तरकाशी के पुरोला विकासखंड के सरबडियाड क्षेत्र के आठ गांवों के लोग आजादी के 72 साल बाद भी विकास से कोसो दूर हैं. यहां ग्रामीणों को आज भी पैदल रास्ते, पुल जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिली हैं. लोगों को डंडे के सहारे उफनती नदी को पार कर एक गांव से दूसरे गांव जाना पड़ता है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि जनप्रतिनिधि उन्हें मात्र वोट बैंक समझते हैं, चुनाव के बाद न तो वो लोगों को याद रखते हैं और न ही उनसे किये गए वादों को. विकास की किरण से 21वीं सदी में गांव महरूम है.

परेशानी से भरा ग्रामीणों का जीवन

ग्रामीणों का कहना है कि सरबडियाड क्षेत्र के डिगांडी, कसलैं, गौल, छानिका, सर, लेवटाडी जैसे कई गांवों तक पहुंचने के लिए बडियाड गाड पार करना पड़ता है, जिसमें घंटों लग जाते हैं. हर समय उफान में रहने वाली नदी को डंडे के सहारे लोग पार करते हैं. सड़क तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. डिजिटल इंडिया बन रहे भारत में अभी भी पहाड़ के लोगों के सामने 'पहाड़' जैसी समस्याएं हैं.

ग्रामीणों ने बताया कि वो सालों से गांव के सड़क से जुड़ने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन जनप्रतिनिधियों द्वारा अबतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. सड़क न होने की वजह से लोगों को पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता है. गांव के बूढ़े-बुजर्गों का कहना है कि उनकी आंखे क्षेत्र का विकास होते हुए देखने के इंतजार में पथरा गई हैं. वो टकटकी लगाये अभी भी उस दिन का इंतजार कर रहे जब विकास बयार उनके गांव में बहेगी.

पुरोला: उत्तरकाशी के पुरोला विकासखंड के सरबडियाड क्षेत्र के आठ गांवों के लोग आजादी के 72 साल बाद भी विकास से कोसो दूर हैं. यहां ग्रामीणों को आज भी पैदल रास्ते, पुल जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिली हैं. लोगों को डंडे के सहारे उफनती नदी को पार कर एक गांव से दूसरे गांव जाना पड़ता है. स्थानीय निवासियों का कहना है कि जनप्रतिनिधि उन्हें मात्र वोट बैंक समझते हैं, चुनाव के बाद न तो वो लोगों को याद रखते हैं और न ही उनसे किये गए वादों को. विकास की किरण से 21वीं सदी में गांव महरूम है.

परेशानी से भरा ग्रामीणों का जीवन

ग्रामीणों का कहना है कि सरबडियाड क्षेत्र के डिगांडी, कसलैं, गौल, छानिका, सर, लेवटाडी जैसे कई गांवों तक पहुंचने के लिए बडियाड गाड पार करना पड़ता है, जिसमें घंटों लग जाते हैं. हर समय उफान में रहने वाली नदी को डंडे के सहारे लोग पार करते हैं. सड़क तक पहुंचने के लिए ग्रामीणों को कई किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है. डिजिटल इंडिया बन रहे भारत में अभी भी पहाड़ के लोगों के सामने 'पहाड़' जैसी समस्याएं हैं.

ग्रामीणों ने बताया कि वो सालों से गांव के सड़क से जुड़ने का इंतजार कर रहे हैं. लेकिन जनप्रतिनिधियों द्वारा अबतक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. सड़क न होने की वजह से लोगों को पगडंडियों से होकर गुजरना पड़ता है. गांव के बूढ़े-बुजर्गों का कहना है कि उनकी आंखे क्षेत्र का विकास होते हुए देखने के इंतजार में पथरा गई हैं. वो टकटकी लगाये अभी भी उस दिन का इंतजार कर रहे जब विकास बयार उनके गांव में बहेगी.

Intro:एंकर:पुरोला विकासखंड के सरबडियाड छेत्र के आठ गावों के लोगों को आजादी के ७२ साल बाद भी
आदिवासी जैसी जिन्दगी जिने को मजबुर हैं ग्रामिणों को पैदल रास्ते,पुलिया जैसी मुलभुत सुविधाओं से वंचित रहना पड रहा है वहीं जनप्रतिनिधि मात्र यहां के लोगों को वोट बैंक समझकर भुल जाते हैं Body:वीओ १:सरबडियाड छेत्र के आठ गावों के लगभग चार हजार ग्रामिणों को आजादी के ७२ साल बाद भी पैदल रास्ते ,पुलिया जैसी मुलभुत सुविधा तक सरकार नहीं दे पाई सर बडियाड छेत्र के डिगांडी,कसलैं,गौल,छानिका,सर,लेवटाडी,आदि गांवों तक पहुंचनें के लिये बडियाड गाड पार करनें को घंटों लोगों का इन्जार करना पडता है डंडी के सहारे आज डिजिटल जमानें में नदि पार करनें को लोग मजबुर हैं
बाईट:१-कैलाश,( स्थानिय ग्रामिण)
बाईट:२-स्थानिय ग्रामिण)
वीओ२: सरकारें जहां लोगों को चांद पर बसानें की बात भले करे लेकिन जमिनी हकिकत अभी भी बहुत कुछ एकदम उल्ट बंया कर रही है लोग सडकें तो दुर पैदल रास्तों की बाट जोह रहे हैं Conclusion:वीओ ३: सरकारें विकास की गंगा बहानें की बात चाहे लाख करे पर जमिनी हकिकत कुछ और ही है लोग आज भी सुरछित पैदल आवाजाही के लिये सरकारों के नुमाईन्दों की ओर टकटकी लगाये बैठे हैं तो,सडके अभी भी गांवों में पहुंचाना सपने से कम नहीं लगता
अनिल असवाल,पुरोला उत्तरकाशी
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