ETV Bharat / state

पुश्तैनी ऊन उद्योग का संरक्षण कर रहे वीरपुर के दो भाई, जापान भेज रहे कपड़ा - वीरपुर के ऊनी उद्ययमी

उत्तरकाशी के वीरपुर गांव के दो भाई पुश्तैनी ऊन उद्योग का संरक्षण कर रहे हैं. दोनों भाई अपने ऊन, कंडाली (बिच्छू घास) एवं लिनेन से बने कपड़ों को जापान एक्सपोर्ट करते हैं.

uttarkashi
पुश्तैनी ऊन उद्योग का संरक्षण कर रहे वीरपुर के दो भाई
author img

By

Published : Jul 7, 2021, 5:03 AM IST

Updated : Jul 7, 2021, 6:46 AM IST

उत्तरकाशीः एक समय था, जब पहाड़ों में भेड़ पालन से ऊन का व्यापार और उद्योग करने वाले लोगों का समाज में विशेष स्थान होता था. वहीं, अब नीति निर्धारकों की उदासीनता के कारण ऊन उद्योग अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. इसके अलावा ये अब बस मात्र बुजुर्ग पीढ़ी तक सीमित रह गया है. बाजार के आभाव में युवा पीढ़ी अपने इस पुश्तैनी और समृद्ध विरासत से दूर हो रहे हैं.

लेकिन वहीं, इस सब के बीच वीरपुर (डुंडा) गांव में किन्नौरी समुदाय के दो भाई अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग के सरक्षंण में जुटे हैं. वीरपुर गांव के युवक ने ग्राफिक डिजाइनर का काम छोड़ अपने छोटे भाई के साथ मिलकर 2019 में हथकरघा मशीन एवं चरखे की मदद से ऊन सहित कंडाली (बिच्छू घास) और लिनेन के कपड़े बनाना शुरू किया है. इसे स्थानीय भाषा में थान कहा जाता है.

पुश्तैनी ऊन उद्योग का संरक्षण कर रहे वीरपुर के दो भाई

जापान भेजा जाता है कपड़ा

कहा जाता है कि उत्तरकाशी जिले की जाड़ सहित भोटिया और किन्नौरी समुदाय का भेड़-बकरी पालन के साथ ऊन उद्योग प्रमुख व्यवसाय था. लेकिन अब धीरे-धीरे बाजार के आभाव में युवा पीढ़ी अपने इस पुश्तैनी धरोहर से दूर होते जा रहे हैं. इन सब के बीच वीरपुर (डुंडा) के किन्नौरी समुदाय के दो भाई मनोज कुमार नेगी और विनोद कुमार नेगी अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग को पारंपरिक हथकरघा और चरखे के साथ आगे बढ़ाते हुए कपड़ा तैयार कर जापान भेज रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः मद्महेश्वर घाटी प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज, पर्यटन को बढ़ावा देने की पहल

मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ी

वीरपुर में ऊन उद्योग चला रहे मनोज कुमार नेगी का कहना है कि साल 2017 में एक मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ कर उन्होंने अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग को ही रोजगार बनाने की ठानी. उसके बाद मनोज ने अपने छोटे भाई विनोद को भी इस कार्य के लिए प्रेरित किया. इसके लिए सबसे पहले बाजार तैयार करना का काम किया.

गांव की महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ा

मनोज और उनके छोटे भाई विनोद ने पहले छोटे स्तर पर कार्य शुरू किया. विभिन्न वेबसाइटों पर ऊन के कपड़ों के लिए ग्राहक ढूंढे. दो साल की मेहनत के बाद 2019 में उनका संपर्क एक जापान के शख्स से हुआ. उसके बाद मनोज और विनोद ने गांव की महिलाओं को कच्चे धागे और ऊन की आपूर्ति पूरी करने के लिए अपने साथ जोड़ा.

अब मनोज और विनोद हथकरघा और चरखे के माध्यम से ऊन के साथ ही कंडाली (बिच्छू घास) और लिनेन के कपड़े तैयार कर रहे हैं. मनोज ने बताया कि यह कच्चा कपड़ा 2020 में जापान जाना था. लेकिन लॉकडाउन के कारण नहीं जा पाया है. लेकिन अब जापानी कंपनी ऊन और कंडाली से बने कपड़ों को जापान ले जा रही है.

उत्तरकाशीः एक समय था, जब पहाड़ों में भेड़ पालन से ऊन का व्यापार और उद्योग करने वाले लोगों का समाज में विशेष स्थान होता था. वहीं, अब नीति निर्धारकों की उदासीनता के कारण ऊन उद्योग अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है. इसके अलावा ये अब बस मात्र बुजुर्ग पीढ़ी तक सीमित रह गया है. बाजार के आभाव में युवा पीढ़ी अपने इस पुश्तैनी और समृद्ध विरासत से दूर हो रहे हैं.

लेकिन वहीं, इस सब के बीच वीरपुर (डुंडा) गांव में किन्नौरी समुदाय के दो भाई अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग के सरक्षंण में जुटे हैं. वीरपुर गांव के युवक ने ग्राफिक डिजाइनर का काम छोड़ अपने छोटे भाई के साथ मिलकर 2019 में हथकरघा मशीन एवं चरखे की मदद से ऊन सहित कंडाली (बिच्छू घास) और लिनेन के कपड़े बनाना शुरू किया है. इसे स्थानीय भाषा में थान कहा जाता है.

पुश्तैनी ऊन उद्योग का संरक्षण कर रहे वीरपुर के दो भाई

जापान भेजा जाता है कपड़ा

कहा जाता है कि उत्तरकाशी जिले की जाड़ सहित भोटिया और किन्नौरी समुदाय का भेड़-बकरी पालन के साथ ऊन उद्योग प्रमुख व्यवसाय था. लेकिन अब धीरे-धीरे बाजार के आभाव में युवा पीढ़ी अपने इस पुश्तैनी धरोहर से दूर होते जा रहे हैं. इन सब के बीच वीरपुर (डुंडा) के किन्नौरी समुदाय के दो भाई मनोज कुमार नेगी और विनोद कुमार नेगी अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग को पारंपरिक हथकरघा और चरखे के साथ आगे बढ़ाते हुए कपड़ा तैयार कर जापान भेज रहे हैं.

ये भी पढ़ेंः मद्महेश्वर घाटी प्राकृतिक सौंदर्य से लबरेज, पर्यटन को बढ़ावा देने की पहल

मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ी

वीरपुर में ऊन उद्योग चला रहे मनोज कुमार नेगी का कहना है कि साल 2017 में एक मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ कर उन्होंने अपने पुश्तैनी ऊन उद्योग को ही रोजगार बनाने की ठानी. उसके बाद मनोज ने अपने छोटे भाई विनोद को भी इस कार्य के लिए प्रेरित किया. इसके लिए सबसे पहले बाजार तैयार करना का काम किया.

गांव की महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ा

मनोज और उनके छोटे भाई विनोद ने पहले छोटे स्तर पर कार्य शुरू किया. विभिन्न वेबसाइटों पर ऊन के कपड़ों के लिए ग्राहक ढूंढे. दो साल की मेहनत के बाद 2019 में उनका संपर्क एक जापान के शख्स से हुआ. उसके बाद मनोज और विनोद ने गांव की महिलाओं को कच्चे धागे और ऊन की आपूर्ति पूरी करने के लिए अपने साथ जोड़ा.

अब मनोज और विनोद हथकरघा और चरखे के माध्यम से ऊन के साथ ही कंडाली (बिच्छू घास) और लिनेन के कपड़े तैयार कर रहे हैं. मनोज ने बताया कि यह कच्चा कपड़ा 2020 में जापान जाना था. लेकिन लॉकडाउन के कारण नहीं जा पाया है. लेकिन अब जापानी कंपनी ऊन और कंडाली से बने कपड़ों को जापान ले जा रही है.

Last Updated : Jul 7, 2021, 6:46 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.