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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस: बसंती नेगी की पर्यावरण संरक्षण की वो 'मशाल', जो बन गई मिसाल - बसंती नेगी हिंदी न्यूज

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आपको बताएंगे एक ऐसी महिला की कहानी, जिनकी बहादुरी के सामने प्रशासन ने अपने घुटने टेक दिए थे. हर्षिल घाटी की बसंती नेगी ने पर्यावरण संरक्षण की वो मशाल जलाई जो मिसाल बन गई. जानिए बसंती नेगी की कहानी, उन्हीं की जुबानी.

women day special story
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Published : Mar 3, 2020, 10:19 AM IST

Updated : Mar 8, 2020, 10:56 AM IST

उत्तरकाशी: नारी को शक्ति का प्रतीक यूं ही नहीं कहा जाता है. अगर वो कुछ ठान ले तो करके ही दिखाती है, ऐसी ही कुछ कहानी है 76 वर्षीय बसंती नेगी की. जिन्होंने 90 के दशक में हर्षिल घाटी में ऐसी क्रांति का ऐसा बिगुल फूंका. जिसका लोहा प्रदेश ही नहीं अपितु देश ने भी माना. दो बार ग्राम प्रधान रह चुकी बंसती नेगी को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.

8 मार्च को हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. महिलाओं के प्रति सम्मान, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस. अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर साल 1909 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको एक शख्सियत के रूबरू कराने जा रहा है, जिन्होंने पर्यावरण सरक्षंण की क्रांति के रूप में खुद को स्थापित किया.

पहाड़ में 90 के दशक में एक आम ग्रहणी ने हर्षिल घाटी में एक ऐसी क्रांति ने जन्म लिया, जिसका लोहा पूरे देश ने माना. दो बार पर्यटन ग्राम हर्षिल की प्रधान बन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हुईं.

जी हां, हम बात कर रहे हैं 76 वर्षीय हर्षिल की पूर्व प्रधान बसंती नेगी की, जिन्होंने 1995 में वन विभाग और सरकार के खिलाफ अवैध हरे देवदार के पेड़ों की कटान के खिलाफ महिलाओ के साथ मिलकर आंदोलन किया और 6 महीने तक जेल भी गईं. उनके द्वारा लगाई गई सच्चाई की आग जनपद में इस कदर फैली कि हर्षिल घाटी से लेकर मोरी ब्लॉक तक कई वन विभाग के अधिकारियों अवैध कटान के आरोप में निलंबित होना पड़ा. बसंती नेगी पेड़ों को बचाने के लिए अंधेरे में महिलाओं के साथ कमर में बांधने वाले पागड़े के सहारे खड़ी पहाड़ी पर चढ़ गई थीं.

पर्यावरण सरक्षंण की क्रांति के रूप में जानी जाने वाली बसंती नेगी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि साल 1995 में हर्षिल में हरे देवदार के पेड़ों के टुकड़े पहुंचे, उस समय वो महिला मंगल दल की अध्यक्ष थी. उस समय वन निगम कटान के नाम पर हरे देवदारों की अवैध कटान कर रहा था. बसंती नेगी कुछ महिलाओं के साथ मुखबा से 11 किमी दूर जांगला के जंगलों में पहुंची. खड़ी पहाड़ी पर वह एक दो महिलाओं के साथ पहाड़ में महिलाएं कमर पर बांधने वाले पागड़े के सहारे खड़ी चोटी पर अवैध कटान करने वाले लोगों के पास पहुंची. उसके बाद धराली में अवैध कटान को रुकवाया. नेगी बताती हैं कि वन विभाग ने स्थानीय लोगों के घर छापा मरवाकर आर्मी को बुलाया, इस दौरान उनके साथ झड़प भी हुई. साथ ही बसंती नेगी पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया और वो जेल चली गईं.

6 महीने की सजा काटने के करीब पांच साल बाद बसंती नेगी की जीत हुई. यह क्रांति अवैध कटान के खिलाफ पूरे जनपद में फैल गई. यही कारण रहा कि पूरे जनपद में उस समय करीब 130 वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी निलम्बित हुए थे.

शराब के खिलाफ आंदोलन

बसंती नेगी ने हर्षिल घाटी में शराब के खिलाफ भी युद्धस्तर पर लड़ाई लड़ी. बसंती नेगी ने अकेले ही कच्ची शराब के कई खोके तोड़े थे. बसंती नेगी बताती है कि सामाजिक कार्यों में उनके पति ने उनका साथ दिया. जब मुकदमे के डर से स्थानीय महिलाओ ने उनका साथ छोड़ दिया था. उसके बाद भी उन्होंने अकेले समाज के लिए लड़ाई लड़ी. आज भी 76 वर्ष की उम्र में अपनी लड़ाई जारी रखी है.

उत्तरकाशी: नारी को शक्ति का प्रतीक यूं ही नहीं कहा जाता है. अगर वो कुछ ठान ले तो करके ही दिखाती है, ऐसी ही कुछ कहानी है 76 वर्षीय बसंती नेगी की. जिन्होंने 90 के दशक में हर्षिल घाटी में ऐसी क्रांति का ऐसा बिगुल फूंका. जिसका लोहा प्रदेश ही नहीं अपितु देश ने भी माना. दो बार ग्राम प्रधान रह चुकी बंसती नेगी को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.

8 मार्च को हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. महिलाओं के प्रति सम्मान, आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस. अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर साल 1909 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया था. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर ईटीवी भारत आपको एक शख्सियत के रूबरू कराने जा रहा है, जिन्होंने पर्यावरण सरक्षंण की क्रांति के रूप में खुद को स्थापित किया.

पहाड़ में 90 के दशक में एक आम ग्रहणी ने हर्षिल घाटी में एक ऐसी क्रांति ने जन्म लिया, जिसका लोहा पूरे देश ने माना. दो बार पर्यटन ग्राम हर्षिल की प्रधान बन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित हुईं.

जी हां, हम बात कर रहे हैं 76 वर्षीय हर्षिल की पूर्व प्रधान बसंती नेगी की, जिन्होंने 1995 में वन विभाग और सरकार के खिलाफ अवैध हरे देवदार के पेड़ों की कटान के खिलाफ महिलाओ के साथ मिलकर आंदोलन किया और 6 महीने तक जेल भी गईं. उनके द्वारा लगाई गई सच्चाई की आग जनपद में इस कदर फैली कि हर्षिल घाटी से लेकर मोरी ब्लॉक तक कई वन विभाग के अधिकारियों अवैध कटान के आरोप में निलंबित होना पड़ा. बसंती नेगी पेड़ों को बचाने के लिए अंधेरे में महिलाओं के साथ कमर में बांधने वाले पागड़े के सहारे खड़ी पहाड़ी पर चढ़ गई थीं.

पर्यावरण सरक्षंण की क्रांति के रूप में जानी जाने वाली बसंती नेगी ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. उन्होंने बताया कि साल 1995 में हर्षिल में हरे देवदार के पेड़ों के टुकड़े पहुंचे, उस समय वो महिला मंगल दल की अध्यक्ष थी. उस समय वन निगम कटान के नाम पर हरे देवदारों की अवैध कटान कर रहा था. बसंती नेगी कुछ महिलाओं के साथ मुखबा से 11 किमी दूर जांगला के जंगलों में पहुंची. खड़ी पहाड़ी पर वह एक दो महिलाओं के साथ पहाड़ में महिलाएं कमर पर बांधने वाले पागड़े के सहारे खड़ी चोटी पर अवैध कटान करने वाले लोगों के पास पहुंची. उसके बाद धराली में अवैध कटान को रुकवाया. नेगी बताती हैं कि वन विभाग ने स्थानीय लोगों के घर छापा मरवाकर आर्मी को बुलाया, इस दौरान उनके साथ झड़प भी हुई. साथ ही बसंती नेगी पर मुकदमा दर्ज कर दिया गया और वो जेल चली गईं.

6 महीने की सजा काटने के करीब पांच साल बाद बसंती नेगी की जीत हुई. यह क्रांति अवैध कटान के खिलाफ पूरे जनपद में फैल गई. यही कारण रहा कि पूरे जनपद में उस समय करीब 130 वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी निलम्बित हुए थे.

शराब के खिलाफ आंदोलन

बसंती नेगी ने हर्षिल घाटी में शराब के खिलाफ भी युद्धस्तर पर लड़ाई लड़ी. बसंती नेगी ने अकेले ही कच्ची शराब के कई खोके तोड़े थे. बसंती नेगी बताती है कि सामाजिक कार्यों में उनके पति ने उनका साथ दिया. जब मुकदमे के डर से स्थानीय महिलाओ ने उनका साथ छोड़ दिया था. उसके बाद भी उन्होंने अकेले समाज के लिए लड़ाई लड़ी. आज भी 76 वर्ष की उम्र में अपनी लड़ाई जारी रखी है.

Last Updated : Mar 8, 2020, 10:56 AM IST
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