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उत्तरकाशी: वैज्ञानिकों को चुनौती दे रहे कोटि बनाल शैली से बने भवन, भूकंप का भी नहीं पड़ा असर - पंचपुरा भवन उत्तरकाशी समाचार

उत्तरकाशी के पंचपुरा भवन और कोटि बनाल शैली से बने भवन वैज्ञानिकों को भी चुनौती दे रहे हैं. ये भवन भूकम्प से निपटने के लिए रामबाण का कार्य करते थे.

earthquake proof buildings uttarkashi , उत्तरकाशी के भूकंप रोधी भवन समाचार
भूकम्प को मात देते भवन .
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Published : Dec 11, 2019, 3:27 PM IST

Updated : Dec 11, 2019, 6:07 PM IST

उत्तरकाशी : जहां एक ओर आज के समय मे विज्ञान भूकम्प के समय जान माल के नुकसान के लिए कई प्रकार के भवनों के निर्माण की बात कर रही है, तो वहीं उत्तरकाशी के पंचपुरा भवन और कोटि बनाल शैली से बने भवन वैज्ञानिकों को भी चुनौती दे रहे हैं. उत्तरकाशी के मोरी सहित बड़कोट, पुरोला और उपला टकनौर क्षेत्र में कोटि बनाल शैली के भवन देखने को मिलते हैं.

भूकम्प को मात देते भवन .

पंचपुरा भवन पहाड़ों में आर्थिक समृद्धि का प्रतीक माने जाते थे. यही नहीं ये भवन भूकम्प से निपटने के लिए रामबाण का कार्य करते थे. साथ ही कोटि बनाल शैली के भवन आज भी जिले के कई सुदूरवर्ती गांव सहित जौनसार बावर क्षेत्र में देखने को मिलते हैं , जो कि इको फ्रेंडली होते हैं. साथ ही आज भी जनपद के तिलोथ में वीर भड़ो नरु बिजोला सहित रैथल में राणा गजे सिंह और झाला गांव में वीर सिंह रौतेला के कई वर्षों पूर्व के पंचपुरा भवन अपनी सशक्त भवन निर्माण शैली को जीवित रखे हुए है. इन भवनों ने कई भूकम्प झेले, लेकिन ये जस के तस खड़े हैं.

यह भी पढ़ें-पिथौरागढ़: बर्फबारी के बीच सक्रिय हुए शिकारी, निशाने पर दुर्लभ वन्यजीव

जनपद के वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद सूरत सिंह रावत का कहना है ये दुर्भाग्य है कि जनपद में इस शैली के भवन बनना अब बहुत कम हो गए . रावत ने बताया कि इस भवन शैली के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण इनके ज्वॉइन्टस होते हैं. जो कि भवन को किसी भी भूकंप से रोकने के लिए अहम होते है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस प्रकार के भवन शैली के निर्माण दोबारा शुरू करे, तो भूकम्प से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है .

उत्तरकाशी : जहां एक ओर आज के समय मे विज्ञान भूकम्प के समय जान माल के नुकसान के लिए कई प्रकार के भवनों के निर्माण की बात कर रही है, तो वहीं उत्तरकाशी के पंचपुरा भवन और कोटि बनाल शैली से बने भवन वैज्ञानिकों को भी चुनौती दे रहे हैं. उत्तरकाशी के मोरी सहित बड़कोट, पुरोला और उपला टकनौर क्षेत्र में कोटि बनाल शैली के भवन देखने को मिलते हैं.

भूकम्प को मात देते भवन .

पंचपुरा भवन पहाड़ों में आर्थिक समृद्धि का प्रतीक माने जाते थे. यही नहीं ये भवन भूकम्प से निपटने के लिए रामबाण का कार्य करते थे. साथ ही कोटि बनाल शैली के भवन आज भी जिले के कई सुदूरवर्ती गांव सहित जौनसार बावर क्षेत्र में देखने को मिलते हैं , जो कि इको फ्रेंडली होते हैं. साथ ही आज भी जनपद के तिलोथ में वीर भड़ो नरु बिजोला सहित रैथल में राणा गजे सिंह और झाला गांव में वीर सिंह रौतेला के कई वर्षों पूर्व के पंचपुरा भवन अपनी सशक्त भवन निर्माण शैली को जीवित रखे हुए है. इन भवनों ने कई भूकम्प झेले, लेकिन ये जस के तस खड़े हैं.

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जनपद के वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद सूरत सिंह रावत का कहना है ये दुर्भाग्य है कि जनपद में इस शैली के भवन बनना अब बहुत कम हो गए . रावत ने बताया कि इस भवन शैली के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण इनके ज्वॉइन्टस होते हैं. जो कि भवन को किसी भी भूकंप से रोकने के लिए अहम होते है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस प्रकार के भवन शैली के निर्माण दोबारा शुरू करे, तो भूकम्प से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है .

Intro:उत्तरकाशी। आज भी पहाड़ की कोटि बनाल वास्तुकला से बने भवन और पँचपुरा भवन वैज्ञानिक तकनीकों को मात दे रहे हैं। पंचपुरा भवन पहाड़ में जहां आर्थिक समृद्धि का प्रतीक भी माने जाते थे। तो वहीं भूकम्प से निपटने के लिए यह भवन रामबाण का कार्य करते थे। साथ ही कोटि बनाल शैली के भवन आज भी जिले के कई सुदूरवर्ती गांव सहित जौनसार बावर क्षेत्र में देखने को मिलते हैं। जो कि इको फ्रेंडली होते हैं।Body:वीओ-1, जहां एक और आज के समय मे विज्ञान भूकम्प के समय जान माल के नुकसान के लिए कई प्रकार के भवनों के निर्माण की बात कर रही है। तो वहीं उत्तरकाशी के पंचपुरा भवन और कोटि बनाल शैली से बने भवन वैज्ञानिकों को भी चुनोती दे रहे हैं। उत्तरकाशी के मोरी सहित बड़कोट पुरोला और उपला टकनौर क्षेत्र में कोटि बनाल शैली के भवन देखने को मिलते हैं। साथ ही आज भी जनपद के तिलोथ में वीर भड़ो नरु बिजोला सहित रैथल में राणा गजे सिंह और झाला गांव में वीर सिंह रौतेला के कई वर्षों पूर्व के पंचपुरा भवन अपनी शसक्त भवन निर्माण शैली को जीवित रखे हुए है। इन भवनों ने कई भूकम्प झेले। लेकिन ये जस के तस खड़े हैं। Conclusion:वीओ-2, जनपद के वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद सूरत सिंह रावत का कहना है कि कोटि बनाल शैली से बने भवन और पंचपुरा भवन शैली विज्ञान को भी मात देते हैं। आज दुर्भाग्य है कि जनपद में इस शैली के भवन बनना अब बहुत कम होता है। रावत ने बताया कि इस भवन शैली निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण इनके जॉइन्ट होते हैं । जो कि भवन को किसी भी भूकम्प से रोकने के लिए अहम होते हैं। कहा कि अगर सरकार इस प्रकार के भवन शैली निर्माण दोबारा शुरू करे। तो भूकम्प से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है।
Last Updated : Dec 11, 2019, 6:07 PM IST
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