उत्तरकाशी : जहां एक ओर आज के समय मे विज्ञान भूकम्प के समय जान माल के नुकसान के लिए कई प्रकार के भवनों के निर्माण की बात कर रही है, तो वहीं उत्तरकाशी के पंचपुरा भवन और कोटि बनाल शैली से बने भवन वैज्ञानिकों को भी चुनौती दे रहे हैं. उत्तरकाशी के मोरी सहित बड़कोट, पुरोला और उपला टकनौर क्षेत्र में कोटि बनाल शैली के भवन देखने को मिलते हैं.
पंचपुरा भवन पहाड़ों में आर्थिक समृद्धि का प्रतीक माने जाते थे. यही नहीं ये भवन भूकम्प से निपटने के लिए रामबाण का कार्य करते थे. साथ ही कोटि बनाल शैली के भवन आज भी जिले के कई सुदूरवर्ती गांव सहित जौनसार बावर क्षेत्र में देखने को मिलते हैं , जो कि इको फ्रेंडली होते हैं. साथ ही आज भी जनपद के तिलोथ में वीर भड़ो नरु बिजोला सहित रैथल में राणा गजे सिंह और झाला गांव में वीर सिंह रौतेला के कई वर्षों पूर्व के पंचपुरा भवन अपनी सशक्त भवन निर्माण शैली को जीवित रखे हुए है. इन भवनों ने कई भूकम्प झेले, लेकिन ये जस के तस खड़े हैं.
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जनपद के वरिष्ठ पत्रकार और पर्यावरणविद सूरत सिंह रावत का कहना है ये दुर्भाग्य है कि जनपद में इस शैली के भवन बनना अब बहुत कम हो गए . रावत ने बताया कि इस भवन शैली के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण इनके ज्वॉइन्टस होते हैं. जो कि भवन को किसी भी भूकंप से रोकने के लिए अहम होते है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस प्रकार के भवन शैली के निर्माण दोबारा शुरू करे, तो भूकम्प से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है .