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उत्तरकाशी आपदाः प्रशासन का ये सच आया सामने, ग्रामीण बोले- सुन ली होती गुहार तो बच जाती जिंदगियां - उत्तरकाशी न्यूज

उत्तरकाशी के मोरी तहसील के आराकोट बंगाण क्षेत्र में आई आपदा में कई लोग काल-कलवित हो गए थे. आराकोट में भी चार लोग सैलाब के आगोश में समा गए थे. वहीं, आराकोट में आए सैलाब को लेकर ग्रामीणों ने बड़ा खुलासा किया है. ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि समय रहते ही नकोट गदेरे में सुरक्षा दीवार लगा दी गई होती तो इस हादसे को कम किया जा सकता था.

uttarkashi disaster
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Published : Aug 25, 2019, 5:39 PM IST

उत्तरकाशीः आराकोट बंगाण क्षेत्र में आई जलप्रलय के बाद अभी भी हालात सामान्य नहीं हो पाया है. अभी हालात सामान्य होने में वक्त लगेगा. आराकोट में आई सैलाब ने यहां पर चार जिंदगियां लील ली थी. सैलाब में हुई मौतों को लेकर ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं.

uttarkashi disaster
आराकोट गांव में आया मलबा.

बता दें कि, बीते 18 अगस्त को मोरी तहसील के आराकोट बंगाण क्षेत्र के माकुड़ी, टिकोची, आराकोट, चिंवा, गोकुल, डगोली, किराणु, मौंड़ा, गोकुल, दूचाणू समेत कई गावों में बादल फटने की घटना हुई थी. जिससे भारी तबाही मची थी. माकुड़ी में कई मकान जमींदोज गए. जिसमें कुछ लोग जिंदा दफन हो गए थे. माकुड़ी नदी के उफान पर आने से टिकोची कस्बे में सैलाब आ गया. इस आपदा में 14 लोग काल कलवित हो गए थे. अभी भी कई लोग लापता हैं. आराकोट में भी चार लोग इस जलप्रलय में समा गए थे.

ग्रामीण सदर सिंह ने बताई हकीकत.

ये भी पढ़ेंः जान हथेली पर रखकर स्कूल जाने को मजबूर बेटियां, तीन माह से बंद है पैदल मार्ग

वहीं, आराकोट में आए सैलाब को लेकर ग्रामीणों ने बड़ा खुलासा किया है. ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि समय रहते ही नकोट गदेरे में सुरक्षा दीवार लगा दी गई होती तो इस हादसे को कम किया जा सकता था. आपदा प्रभावित आराकोट गांव के सदर सिंह ने बताया कि नकोटखाल गदेरे से बोल्डर हटाने और सुरक्षा कार्यों के लिए हर स्तर से स्वीकृति मिली हुई थी, लेकिन सिस्टम की हीलाहवाली और लापरवाही के चलते गदेरे पर सुरक्षा को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई.

उन्होंने बताया कि मामले को लेकर ग्रामीण शासन-प्रशासन से बीते पांच सालों से सुरक्षा कार्यों की मांग कर रहे थे. हालांकि, ग्रामीणों की मांग पर विभागीय अधिकारियों ने निरीक्षण किया और रिपोर्ट तैयार की. इतना ही नहीं एसडीएम ने भी जांच कर माना कि गदेरे से आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा है. जिस पर शासन-प्रशासन की ओर से सुरक्षा कार्यों के लिए धनराशी भी स्वीकृत हुई, लेकिन धरातल पर कार्रवाई को अमलीजामा नहीं पहनाया गया. जिसका खामियाजा चार जिंदगियों को चुकाना पड़ा है.

ये भी पढ़ेंः चीन से घट रही कीड़ा जड़ी की मांग, गहराया रोजी रोटी का संकट

आपदा पीड़ित सदर सिंह का कहना है कि पहले ही सुरक्षा कार्य हो गए होते तो आज यह नौबत ना आती. साथ ही कहा कि अभी भी बरसात में खतरा बना हुआ है. जलप्रलय के बाद गदेरे में मलबा पड़ा होने से कभी भी बस्ती में अनहोनी होने की आशंका है. ऐसे में लोग डर के साये में जी रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासन-शासन के नुमाइंदे पहले ही कुम्भकर्णी नींद जाग गए होते तो आज चार लोग जिंदा होते. वहीं, उन्होंने मामले पर कार्रवाई करने की मांग की है.

उत्तरकाशीः आराकोट बंगाण क्षेत्र में आई जलप्रलय के बाद अभी भी हालात सामान्य नहीं हो पाया है. अभी हालात सामान्य होने में वक्त लगेगा. आराकोट में आई सैलाब ने यहां पर चार जिंदगियां लील ली थी. सैलाब में हुई मौतों को लेकर ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाए हैं.

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आराकोट गांव में आया मलबा.

बता दें कि, बीते 18 अगस्त को मोरी तहसील के आराकोट बंगाण क्षेत्र के माकुड़ी, टिकोची, आराकोट, चिंवा, गोकुल, डगोली, किराणु, मौंड़ा, गोकुल, दूचाणू समेत कई गावों में बादल फटने की घटना हुई थी. जिससे भारी तबाही मची थी. माकुड़ी में कई मकान जमींदोज गए. जिसमें कुछ लोग जिंदा दफन हो गए थे. माकुड़ी नदी के उफान पर आने से टिकोची कस्बे में सैलाब आ गया. इस आपदा में 14 लोग काल कलवित हो गए थे. अभी भी कई लोग लापता हैं. आराकोट में भी चार लोग इस जलप्रलय में समा गए थे.

ग्रामीण सदर सिंह ने बताई हकीकत.

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वहीं, आराकोट में आए सैलाब को लेकर ग्रामीणों ने बड़ा खुलासा किया है. ग्रामीणों ने आरोप लगाते हुए कहा कि समय रहते ही नकोट गदेरे में सुरक्षा दीवार लगा दी गई होती तो इस हादसे को कम किया जा सकता था. आपदा प्रभावित आराकोट गांव के सदर सिंह ने बताया कि नकोटखाल गदेरे से बोल्डर हटाने और सुरक्षा कार्यों के लिए हर स्तर से स्वीकृति मिली हुई थी, लेकिन सिस्टम की हीलाहवाली और लापरवाही के चलते गदेरे पर सुरक्षा को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई.

उन्होंने बताया कि मामले को लेकर ग्रामीण शासन-प्रशासन से बीते पांच सालों से सुरक्षा कार्यों की मांग कर रहे थे. हालांकि, ग्रामीणों की मांग पर विभागीय अधिकारियों ने निरीक्षण किया और रिपोर्ट तैयार की. इतना ही नहीं एसडीएम ने भी जांच कर माना कि गदेरे से आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा है. जिस पर शासन-प्रशासन की ओर से सुरक्षा कार्यों के लिए धनराशी भी स्वीकृत हुई, लेकिन धरातल पर कार्रवाई को अमलीजामा नहीं पहनाया गया. जिसका खामियाजा चार जिंदगियों को चुकाना पड़ा है.

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आपदा पीड़ित सदर सिंह का कहना है कि पहले ही सुरक्षा कार्य हो गए होते तो आज यह नौबत ना आती. साथ ही कहा कि अभी भी बरसात में खतरा बना हुआ है. जलप्रलय के बाद गदेरे में मलबा पड़ा होने से कभी भी बस्ती में अनहोनी होने की आशंका है. ऐसे में लोग डर के साये में जी रहे हैं. उन्होंने कहा कि प्रशासन-शासन के नुमाइंदे पहले ही कुम्भकर्णी नींद जाग गए होते तो आज चार लोग जिंदा होते. वहीं, उन्होंने मामले पर कार्रवाई करने की मांग की है.

Intro:शायद समय रहते मुख्य आराकोट बाजार में नकोट गड्ढेरे में समय रहते सुरक्षा के कार्य हो जाते। तो शायद जलप्रलय में गई चार जिंदगियां बच जाती। किसी का आशियाना नहीं बहता। उत्तरकाशी। अगर समय रहते नकोट गड्ढेरे में सुरक्षा के कार्य हो जाते। तो शायद यह नौबत नहीं आती। यह कहना है आपदा प्रभावित आराकोट गांव के सदर सिंह का। जो कि सिस्टम पर और शासन प्रशासन की लचर व्यवस्था पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह लगा रही है। आराकोट के 65 वर्षीय सदर सिंह ने बताया कि नकोटखाल गड्ढेरे से बोल्डर हटाने और सुरक्षा कार्यों के लिए हर स्तर से स्वीकृति मिली हुई थी। लोग विगत 5 वर्षों से सुरक्षा कार्यों की मांग कर रहे थे। लेकिन सिस्टम की लापरवाही के चलते यह गड्ढेरा चार जाने लील गया। etv bharat पर सिस्टम की बड़ी लापरवाही की exclusive सदर सिंह की जुबानी। Body:वीओ- 1, आपदा प्रभावित आराकोट के आपदा प्रभावित 65 वर्षीय सदर सिंह ने बताया कि स्थानीय ग्रामीण विगत पांच वर्षों से नकोटखाल गड्ढेरे में सुरक्षा कार्यों की मांग कर रहे थे। वहीं गड्ढेरे में पड़े बोल्डरों की हटाने की मांग भी कर रहे थे। ग्रामीणों की मांग पर विभागीय अधिकारियों ने निरीक्षण किया और उसके बाद एसडीएम ने भी जांच कर माना कि यह गड्ढेरा कभी भी आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा बन सकता है। उसके बाद शासन प्रशासन की और से सुरक्षा कार्यों के लिए धनराशी भी स्वीकृत हुई। लेकिन सुरक्षा कार्य नहीं हो पाए। वहीं इसका खामियाजा जलप्रलय में आराकोट की चार जिंदगियों को चुकाना पड़ा। तो चार घर जमीदोंज हो गए। Conclusion:वीओ-2, सदर सिंह का कहना है कि सुरक्षा कार्य हो गए होते। तो आज यह नौबत न आती साहब। कहा कि अभी भी बरसात में खतरा बना हुआ है। जलप्रलय के बाद जो मलबा गड्ढेरे में पड़ा हुआ है वह कभी भी बस्ती की और आ सकता है। शायद हमारा प्रशासन और शासन के नुमाइंदे उस समय कुम्भकर्णी नींद न सोया हुआ होता। तो आज तीन चार परिवार के लोग अपनों की बीच होते। और अभी न कितने परिवार और जाने ऐसी हैं। जो कि सिस्टम की मार के कारण इस प्रकार का जीवन खौफ के साए में जी रहे होंगे। बाइट- सदर सिंह,स्थानीय निवासी आराकोट।
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