उत्तरकाशी: पहाड़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत मंगसीर की बग्वाल कार्तिक माह की दीपावली के एक माह बाद मनाई जाती है. इस वर्ष कई गांवों में विलुप्त होती मंगसीर की बग्वाल का आयोजन कई वर्षों बाद किया गया.
वरुणावत पर्वत के शीर्ष पर बसे ज्ञानजा गांव में करीब 30 वर्षों बाद मंगसीर की बग्वाल का भैलों, पांडव नृत्य और भद्रराज का आयोजन किया गया. अनघा माउंटेन एसोसिएशन की ओर से प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों से पर्यटक ज्ञानजा गांव में मंगसीर बग्वाल देखने पहुंचे.
पढ़ें- हरिद्वार: प्लास्टिक वेस्ट मैंनेजमेंट को लेकर डीएम ने की बैठक
पहाड़ में मंगसीर की बग्वाल का दो दिन का आयोजन किया जाता है. इसमें पहले दिन ग्रामीण पंचायती चौक में एकत्रित होकर थात पूजन करते हैं. इसके बाद ग्रामीण भैलों का आयोजन करते हैं. भैलों के बाद पांडव नृत्य का आयोजन किया गया, जिसका ग्रामीणों ने जमकर लुफ्त उठाया. ग्रामीण द्वारा संयुक्त रूप से रासो तांदी का आयोजन किया गया. मंगसीर बग्वाल के बाद भद्रराज का आयोजन किया जाता है. इसमें बत्तातोड़ू खेल के आयोजन के साथ मंगसीर की बग्वाल का समापन किया जाता है.
ये है मान्यता
मान्यता है कि भगवान राम के अयोध्या लौटने की सूचना क्षेत्र वासियों को एक महीने बाद आज ही के दिन मिली थी. साथ ही लोगों का यह भी कहना है कि आज ही के दिन वीर भड़ माधो सिंह भंडारी तिब्बत से युद्ध जीतकर अपने गांव पहुंचे थे. उनकी जीत की खुशी में बग्वाल का आयोजन किया जाता है.