उत्तरकाशी: कुठार पहाड़ की जीवनशैली और परंपरा का मुख्य द्योतक रहा है. पहाड़ो में ऐसी मान्यता है कि जिसका जितना बड़ा कुठार होता है उसको उतना ही समृद्ध माना जाता है. कुठार अनाज संग्रहण के काम आता है. लेकिन अब ये कुठार विलुप्ति की कगार पर हैं. जिन गांवों में कुठार बचे हैं वहां भी ये बस शो-पीस बनकर रह गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि इसका मुख्य कारण पहाड़ों से हो रहा पलायन है. पलायन के कारण खेत खलिहान वीरान पड़े हुए हैं. जिसके चलते कुठार का अब कोई काम नहीं है.
बता दें कि कुठार के निर्माण में मोटी-मोटी लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है. पहले कुठार के निर्माण के लिए देवदार की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता था और छत पर पटाल का लगाया जाता था. पटाल पहाड़ में मिलने वाला एक विशेष प्रकार का पत्थर है. कुठार एक से चार कमरों का बनाया जाता था. जिसमें इसमें अनाज रखने के लिए लकड़ी के बक्से बनाए जाते थे. सब कुछ लकड़ी का बने होने के कारण कुठारों में रखा गया अनाज सालों तर सुरक्षित रहता था.
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वहीं ग्रामीणों ने बताया किपहाड़ो में बर्फबारी के दौरान कुठार सबसे कारगर साधन साबित होता था. पहले अधिक बर्फबारी होने के कारण ग्रामीण कई महीनों तक घरों से बाहर नहीं निकल पाते थे. ऐसे में कुटारों में रखा गया अनाज ग्रामीणों के काम आता था. कुठारों को इस शैली के साथ बनाया जाता था कि कोई भी जंगली जानवर उसमें प्रवेश न कर सके. साथ ही कुठार के दरवाजों पर एक घंटी टंगी होती थी. जिसकी रस्सी घरों के अंदर तक लगी रहती थी. जिससे कि अगर कोई चोरी करने की कोशिश करे तो घर में बैठे लोगों को पता चल जाता था.