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विलुप्ति की कगार पर 'कुठार', पहाड़ों में इस तरह आता था काम

कुठार पहाड़ की जीवनशैली और परंपरा का मुख्य द्योतक रहा है. लेकिन अब ये कुठार  विलुप्ति की कगार पर हैं. जिन गांवों में कुठार  बचे हैं वहां भी ये बस शो-पीस बनकर रह गए हैं.

विलुप्ति की कगार पर 'कुठार'
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Published : Mar 6, 2019, 5:12 AM IST

उत्तरकाशी: कुठार पहाड़ की जीवनशैली और परंपरा का मुख्य द्योतक रहा है. पहाड़ो में ऐसी मान्यता है कि जिसका जितना बड़ा कुठार होता है उसको उतना ही समृद्ध माना जाता है. कुठार अनाज संग्रहण के काम आता है. लेकिन अब ये कुठार विलुप्ति की कगार पर हैं. जिन गांवों में कुठार बचे हैं वहां भी ये बस शो-पीस बनकर रह गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि इसका मुख्य कारण पहाड़ों से हो रहा पलायन है. पलायन के कारण खेत खलिहान वीरान पड़े हुए हैं. जिसके चलते कुठार का अब कोई काम नहीं है.

विलुप्ति की कगार पर 'कुठार'

बता दें कि कुठार के निर्माण में मोटी-मोटी लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है. पहले कुठार के निर्माण के लिए देवदार की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता था और छत पर पटाल का लगाया जाता था. पटाल पहाड़ में मिलने वाला एक विशेष प्रकार का पत्थर है. कुठार एक से चार कमरों का बनाया जाता था. जिसमें इसमें अनाज रखने के लिए लकड़ी के बक्से बनाए जाते थे. सब कुछ लकड़ी का बने होने के कारण कुठारों में रखा गया अनाज सालों तर सुरक्षित रहता था.

पढ़ें:उत्तराखंड में बन रहे शौर्य स्थल का जल्द हो सकेगा दीदार

वहीं ग्रामीणों ने बताया किपहाड़ो में बर्फबारी के दौरान कुठार सबसे कारगर साधन साबित होता था. पहले अधिक बर्फबारी होने के कारण ग्रामीण कई महीनों तक घरों से बाहर नहीं निकल पाते थे. ऐसे में कुटारों में रखा गया अनाज ग्रामीणों के काम आता था. कुठारों को इस शैली के साथ बनाया जाता था कि कोई भी जंगली जानवर उसमें प्रवेश न कर सके. साथ ही कुठार के दरवाजों पर एक घंटी टंगी होती थी. जिसकी रस्सी घरों के अंदर तक लगी रहती थी. जिससे कि अगर कोई चोरी करने की कोशिश करे तो घर में बैठे लोगों को पता चल जाता था.

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उत्तरकाशी: कुठार पहाड़ की जीवनशैली और परंपरा का मुख्य द्योतक रहा है. पहाड़ो में ऐसी मान्यता है कि जिसका जितना बड़ा कुठार होता है उसको उतना ही समृद्ध माना जाता है. कुठार अनाज संग्रहण के काम आता है. लेकिन अब ये कुठार विलुप्ति की कगार पर हैं. जिन गांवों में कुठार बचे हैं वहां भी ये बस शो-पीस बनकर रह गए हैं. ग्रामीणों का कहना है कि इसका मुख्य कारण पहाड़ों से हो रहा पलायन है. पलायन के कारण खेत खलिहान वीरान पड़े हुए हैं. जिसके चलते कुठार का अब कोई काम नहीं है.

विलुप्ति की कगार पर 'कुठार'

बता दें कि कुठार के निर्माण में मोटी-मोटी लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है. पहले कुठार के निर्माण के लिए देवदार की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता था और छत पर पटाल का लगाया जाता था. पटाल पहाड़ में मिलने वाला एक विशेष प्रकार का पत्थर है. कुठार एक से चार कमरों का बनाया जाता था. जिसमें इसमें अनाज रखने के लिए लकड़ी के बक्से बनाए जाते थे. सब कुछ लकड़ी का बने होने के कारण कुठारों में रखा गया अनाज सालों तर सुरक्षित रहता था.

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वहीं ग्रामीणों ने बताया किपहाड़ो में बर्फबारी के दौरान कुठार सबसे कारगर साधन साबित होता था. पहले अधिक बर्फबारी होने के कारण ग्रामीण कई महीनों तक घरों से बाहर नहीं निकल पाते थे. ऐसे में कुटारों में रखा गया अनाज ग्रामीणों के काम आता था. कुठारों को इस शैली के साथ बनाया जाता था कि कोई भी जंगली जानवर उसमें प्रवेश न कर सके. साथ ही कुठार के दरवाजों पर एक घंटी टंगी होती थी. जिसकी रस्सी घरों के अंदर तक लगी रहती थी. जिससे कि अगर कोई चोरी करने की कोशिश करे तो घर में बैठे लोगों को पता चल जाता था.

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Intro:Uttarkashi_vipin negi_kuthar in hilly area_05 march 2019. उत्तरकाशी। "कुठार" पहाड़ की जीवनशैली और परंपरा का मुख्य द्दोतक रहा है। पहाड़ो में जिसका जितना बड़ा कुठार होता था। उसको उतना ही समृद्ध व्यक्ति या परिवार माना जा रहा है। लेकिन आज यह कुठार विलुप्ति की कगार पर हैं। जिन गांव में सीमित कुठार रह भी गए हैं। वहाँ पर भी शोपीस बनकर रह गए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि इसका मुख्य कारण पहाड़ के गांव से हो रहा पलायन। पलायन के कारण खेत खलिहान वीरान पड़े हुए हैं। जब खेतों में अनाज ही नहीं होगा। तो कुठार का क्या करना। कुठार पहाड़ में अनाज सग्रहन के काम आता है। वहीं कुठार इको फ्रेंडली है। जहां पर अनाज वर्षों वर्षों तक सुरक्षित रहता है।



Body:वीओ-1, कुठार जहां पहाड़ में समृद्धि का प्रतीक था। वहीं दूसरी और यह पहाड़ की काष्ठकला का खूबसूरत नमूना है। कुठार निर्माण में मोटी मोटी लकड़ियों का प्रयोग किया जाता है। प्रायः कुठार के निर्माण में देवदार की लकड़ियों का प्रयोग किया जाता था। साथ ही इसकी छत पर पटाल का प्रयोग किया था। पटाल पहाड़ में विशेष प्रकार का पत्थर मिलता है। वहीं कुठार पर बनने वाली काष्ठकला भी पहाड़ की संस्कृति का अनूठा कोना है। आज पहाड़ में इस प्रकार की कला में परांगत लोग बहुत कम बच गए हैं। कुठार प्रायः एक से चार कमरों का होता है। इसमें अनाज रखने के लिए लकड़ी के बॉक्स बनाये जाते हैं। जो अनाज को वर्षों तक सुरक्षित रखता है।


Conclusion:वीओ- 2, कुठार पहाड़ो में बर्फबारी के दौरान सबसे कारगर साधन साबित होता था। पहले अधिक बर्फबारी होने के कारण ग्रामीण कई महीनों तक घरों से बाहर नहीं निकल पाते थे।उस समय कुटारो मे रखा अनाज का ग्रामीण प्रयोग करते थे। साथ ही कुठारों को इस शैली के साथ बनवाये जाते थे कि कोई जानवर भी उसमें प्रवेश नहीं कर सके। साथ ही कुठार के दरवाजों पर एक घण्टी टंगी होती थी।जिसकी रस्सी घरों के अंदर तक लगी होती थी। ऐसी सूरत में अगर कोई चोरी करने की कोशिश करे। तो घर मे बैठे लोगों को पता चल जाता था कि कुठार में किसी प्रकार की हलचल हुई है। बाईट- वासुदेव रावत,ग्रामीण। पीटीसी- विपिन नेगी।
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