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पेशावर के पठानों के लिए बनाई गई गड़तांग गली की सीढ़ियां बदहाल, ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षण की दरकार

आज की तकनीक को चुनौती देती ऐतिहासिक धरोहर गड़तांग गली की सीढ़ियां आज दम तोड़ती नजर आ रही हैं. गंगोत्री नेशनल पार्क की और गड़तांग गली की सीढ़ियों के विकास के लिए लाखों की धनराशि खर्च की गई.

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एतिहासिक गड़तांग गली.
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Published : Feb 26, 2020, 7:40 AM IST

उत्तरकाशी: आज की तकनीक को चुनौती देती एतिहासिक धरोहर गड़तांग गली की सीढ़ियां आज दम तोड़ती नजर आ रही है. जाड़ गंगा के ऊपर पथरीली चट्टानों पर बनी ये सीढ़ियां एक नायाब इंजीनियरिंग का नमूना है, लेकिन शासन-प्रशासन और वन विभाग की अनदेखी के कारण आज ये सीढ़ियां जीर्णशीर्ण स्थिति में हैं. जबकि, पर्यटन के दृष्टिकोण से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है.

एतिहासिक गड़तांग गली.

वहीं, गंगोत्री नेशनल पार्क की और गड़तांग गली की सीढ़ियों के विकास के लिए लाखों की धनराशि खर्च की गई. लेकिन उसका प्रयोग मात्र खानापूर्ति के लिए किया गया. अगर यही स्थिति रही तो जनपद की ये ऐतिहासिक धरोहर संरक्षण के आभाव में समाप्त हो जाएगी.

पढ़ें- बदरीनाथ हाईवे खुला, विद्युत और पेयजल आपूर्ति बहाल करने के निर्देश

स्थानीय लोगों ने बताया कि गड़तांग गली भारत तिब्बत व्यापार का जीता जागता उदाहरण है. भारत और तिब्बत के बीच इसी गली (सीढ़ियों) से व्यापार होता था. इन्हीं सीढ़ियों से याक और घोड़ों पर व्यापार का सामान लाया और ले जाया करता था. इसके साथ ही भारत-चीन युद्ध के समय सेना ने इसी मार्ग का प्रयोग किया था. स्थानीय लोगों की माने तो गड़तांग गली की सीढ़ियों का निर्माण पेशावर के पठानों ने किया था. उनका कहना है कि आज इन सीढ़ियों की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है.

उत्तरकाशी: आज की तकनीक को चुनौती देती एतिहासिक धरोहर गड़तांग गली की सीढ़ियां आज दम तोड़ती नजर आ रही है. जाड़ गंगा के ऊपर पथरीली चट्टानों पर बनी ये सीढ़ियां एक नायाब इंजीनियरिंग का नमूना है, लेकिन शासन-प्रशासन और वन विभाग की अनदेखी के कारण आज ये सीढ़ियां जीर्णशीर्ण स्थिति में हैं. जबकि, पर्यटन के दृष्टिकोण से यह बहुत ही महत्वपूर्ण है.

एतिहासिक गड़तांग गली.

वहीं, गंगोत्री नेशनल पार्क की और गड़तांग गली की सीढ़ियों के विकास के लिए लाखों की धनराशि खर्च की गई. लेकिन उसका प्रयोग मात्र खानापूर्ति के लिए किया गया. अगर यही स्थिति रही तो जनपद की ये ऐतिहासिक धरोहर संरक्षण के आभाव में समाप्त हो जाएगी.

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स्थानीय लोगों ने बताया कि गड़तांग गली भारत तिब्बत व्यापार का जीता जागता उदाहरण है. भारत और तिब्बत के बीच इसी गली (सीढ़ियों) से व्यापार होता था. इन्हीं सीढ़ियों से याक और घोड़ों पर व्यापार का सामान लाया और ले जाया करता था. इसके साथ ही भारत-चीन युद्ध के समय सेना ने इसी मार्ग का प्रयोग किया था. स्थानीय लोगों की माने तो गड़तांग गली की सीढ़ियों का निर्माण पेशावर के पठानों ने किया था. उनका कहना है कि आज इन सीढ़ियों की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है.

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