उत्तरकाशी: गरतांग गली को बदरंग करने के मामले में ईटीवी भारत की खबर का बड़ा असर हुआ है. पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज के निर्देश के बाद गंगोत्री नेशनल पार्क प्रशासन ने अज्ञात लोगों के खिलाफ हर्षिल थाने में मुकदमा दर्ज कराया है. हर्षिल पुलिस उत्तराखंड लोक संपत्ति अधिनियम की धारा 3 और 4 और आईपीसी की धारा 427 के तहत मुकदमा दर्ज कर मामले की जांच में जुट गई है. हर्षिल थानाध्यक्ष समीप पांडे ने बताया कि गंगोत्री नेशनल पार्क के रेंज अधिकारी प्रताप सिंह पंवार की तहरीर पर अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है.
वहीं पूरे मामले में डीआईजी गढ़वाल नीरू गर्ग का कहना है कि ऐतिहासिल गरतांग गली में कुछ शरारती तत्वों ने बदरंग करने का काम किया है. पुलिस मामले की जांच कर रही है और जल्द ही दोषियों पर कड़ी कार्रवाई होगी.
क्या है मामला: बीते मंगलवार को गरतांग गली की सीढ़ियों की रेलिंग पर कुछ लोगों ने नुकीली वस्तुओं से कुरेद कर अपने नाम उकेर दिए थे. साथ ही कोयले आदि से नाम आदि लिखकर सीढ़ियों को बदरंग कर दिया था. इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. इस पर उत्तरकाशी के पर्यटन व्यवसायियों ने भी कड़ी आपत्ति जताते हुए निंदा की थी. व्यवसायियों ने इस ऐतिहासिक धरोहर के साथ छेड़छाड़ व खिलवाड़ करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी.
सतपाल महाराज ने दिए थे ये निर्देशः पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने मामले को गंभीरता से लेते हुए डीएम मयूर दीक्षित को गरतांग गली को बदरंग करने वाले लोगों को चिह्नित करते हुए एफआईआर (FIR) दर्ज करने के निर्देश दिए थे. साथ ही गरतांग गली की निगरानी के लिए दो फॉरेस्ट गार्ड तैनात करने के निर्देश भी विभाग को दिए थे.
गरतांग गली देखने पहुंच रहे पर्यटक: गंगोत्री नेशनल पार्क के अधिकारियों की मानें तो गरतांग गली खुलने के बाद दो हफ्ते में करीब 350 से ज्यादा पर्यटक गरतांग गली का दीदार कर चुके हैं और पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. हालांकि कुछ बिगड़ैल पर्यटक ऐतिहासिक सीढ़ियों को बदरंग करने में तुले हैं. जिससे गरतांग गली की खूबसूरती खराब हो रही है.
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भारत-चीन युद्ध के बाद से गरतांग गली थी बंद: बता दें कि करीब 59 वर्ष बाद गरतांग गली एक बार फिर आबाद हो गई है. भारत-तिब्बत व्यापार की गवाह खड़ी चट्टानों को काटकर बनाई गई करीब 150 मीटर लम्बी सीढ़ीनुमा रास्ते वाली गरतांग गली का निर्माण 17वीं शताब्दी में जाडुंग गांव के सेठ धनी राम ने कामगारों से तैयार कराया था. चट्टान को काटकर उस पर लोहे की रॉड गाड़कर व लकड़ी के पट्टे बिछाकर बनाई गई थी. फिर चलन से बाहर होने पर यह खस्ताहाल हो गई थी. भारत-तिब्बत के बीच व्यापारिक रिश्तों की गवाह रही गली को 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद सुरक्षा कारणों के चलते बंद कर दिया गया था.
उत्तराखंड सरकार ने कराया पुनर्निर्माण: हाल ही में लोक निर्माण विभाग ने करीब 65 लाख की लागत से इस गली का जीर्णोद्धार कराया है. देवदार की लकड़ी से दोबारा सीढ़ीदार रास्ता तैयार किया गया है. गरतांग गली का फिर से खुलना उत्तरकाशी जनपद के पर्यटन के लिए एक मील का पत्थर साबित हो रहा है. साथ ही स्थानीय लोगों ने इस प्रयास के लिए दिवंगत विधायक गोपाल रावत की भूमिका को याद कर धन्यवाद किया.
क्या है गरतांग गलीः 17वीं शताब्दी (लगभग 300 साल पहले) पेशावर के पठानों ने समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी में हिमालय की खड़ी चट्टानों को काटकर दुनिया का सबसे खतरनाक रास्ता तैयार किया था. कहा जाता है कि नेलांग-जाडुंग के जाड़ समुदाय के एक सेठ ने व्यापारियों की मांग पर पेशावर के पठानों की मदद से गरतांग गली से एक सुगम मार्ग बनवाया था.
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करीब 150 मीटर लंबी लकड़ी से तैयार यह सीढ़ीनुमा गरतांग गली भारत-तिब्बत व्यापार की साक्षी रही है. ये आज भी इंजीनियरिंग के लिए एक मिसाल है और आज के तकनीकी इंजीनियरिंग को भी चैलेंज करती है. गरतांग गली की सीढ़ियों को खड़ी चट्टान वाले हिस्से में लोहे की रॉड गाड़कर और उसके ऊपर लकड़ी बिछाकर रास्ता तैयार किया था.
बेहद संकरा और जोखिम भरा यह रास्ता गरतांग गली के नाम से प्रसिद्ध हुआ. ये अपने आप में कारीगरी का एक नया नमूना था क्योंकि, गरतांग गली के ठीक नीचे 300 मीटर गहरी खाई है. जबकि, नीचे जाड़ गंगा नदी भी बहती है. इस सीढ़ियों से भारत-तिब्बत व्यापार किया जाता था, जो कि भारत-चीन युद्ध के बाद बंद हो गया.
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साल 1962 से पूर्व भारत-तिब्बत के व्यापारी याक, घोड़ा-खच्चर एवं भेड़-बकरियों पर सामान लादकर इसी रास्ते से आते-जाते थे. गरतांग गली सबसे पुरानी व्यापारिक मार्ग हुआ करती थी. यहां से ऊन, गुड़ और मसाले वगैरह भेजे जाते थे. 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान गरतांग गली ने सेना को अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी.