उत्तरकाशी: बीते रविवार को जनपद में आई आपदा के जख्म ताजे हैं. भटवाड़ी ब्लॉक के बाड़ागड्डी क्षेत्र के मस्ताड़ी गांव के ग्रामीणों को अपने घरों को छोड़कर रात खेतों में लगे टेंटों में गुजारने को मजबूर हैं. ग्रामीणों का कहना है कि प्रशासन की और से तीन टेंट देने के बाद अपना पल्ला झाड़ दिया है. जबकि, लगातार हो रही बारिश के बीच न ही गांव में लाइट है व टेंट भी टपक रहे हैं. खेतों में अंधेरे में सांप और जंगली जानवरों का खतरा बना हुआ है. शासन-प्रशासन की अनदेखी के चलते ग्रामीणों में भारी रोष है.
ग्राम सभा मस्ताड़ी के ग्राम प्रधान सत्यानारायण सेमवाल ने ईटीवी भारत संवाददाता को बताया कि 1991 के भूकंप के बाद से गांव में भूधसाव और दरारें पड़ गई थी. उसके बाद भूवैज्ञानिक सर्वे हुए, लेकिन गांव की सुरक्षा के लिए कोई कार्रवाई नहीं हुई.
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बीते 18 जुलाई को आई आपदा ने मस्ताड़ी गांव में पड़ी दरारों ने बड़ा रूप लेते हुए कई भवनों को अपनी जद में ले लिया. वहीं, धीरे-धीरे घरों के अंदर पानी निकलने लगा है और कई बार घरों की जमीन के नीचे पानी के रिसाव की तेज आवाजें ग्रामीणों को डराने लगीं. हालांकि प्रशासनिक अधिकारियों ने निरीक्षण किया, लेकिन वह खानापूर्ति तक सिमट कर रह गया.
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ग्राम प्रधान ने बताया कि जब स्थिति और भी गंभीर होने लगी, तो ग्रामीणों दो दिनों से भय से अपने घरों को छोड़कर टेंट लगाकर खेतों में रात काटने को मजबूर होने लगे. शनिवार को प्रशासन ने तीन टेंट गांव में पहुंचाए और उसके बाद ग्रामीणों को उनके हाल पर छोड़ दिया. वहीं, अंधेरे में बरसात के डर के बीच एक टेंट में दर्जनों लोग बच्चे,बूढ़े, महिलाएं रात काटने को मजबूर हैं, तो ग्रामीण भय से टेंटों में भी रतजगा कर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि शासन-प्रशासन उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रहा है, जिसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है.