उत्तरकाशी: जिले के कई गांवों में आज भी पौराणिक कुठार परंपरा जीवित है. अन्न भंडारण के लिए गोदाम के तौर पर कुठार का इस्तेमाल होता है. यमुनाघाटी के नगाणगांव में आज भी कुठार और पंचपुरे भवन देखने को मिलेंगे, जो मौजूदा समय में पहाड़ी इलाकों से लगभग पूरी तरह से विलुप्ति की कगार पर हैं. उत्तरकाशी जिले की गंगाघाटी में उपला टकनौर के मुखबा, धराली, पाटा संग्राली और यमुनाघाटी के पुरोला, मोरी, बड़कोट के कई गांवों में निर्मित कुठार और पंचपुरे भवन मौजूद हैं, जो अब बदलते वक्त के साथ दुर्लभ होकर रह गए हैं. अब आवश्यकता है इस पौराणिक धरोहर के संवर्धन और संरक्षण की.
कोठारों को चाहिए संवर्धन: दरअसल, उत्तरकाशी जनपद पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. यहां पर बड़ी संख्या में पर्यटक और चारधाम यात्री आते हैं और आज जिस प्रकार से सरकार भी होमस्टे के माध्यम से लोगों को स्वरोजगार दे रही है, वहीं अगर ग्रामीण क्षेत्रों में बचे हुए कोठारों का संवर्धन और संरक्षण होगा तो कहीं ना कहीं जो पर्यटक और चारधाम यात्री हैं वो यहां पर आएंगे. इन कोठारों का दीदार कर सकेंगे और इनके बारे में जानेंगे की कोशिश करेंगे कि इनका उपयोग किस रूप में होता था. इसलिए ग्राम पंचायतों को इनके संरक्षण और संवर्धन के लिए आगे आना चाहिए.
उत्तरकाशी में दिखते हैं कुठार: लकड़ी से निर्मित कुठार और पंचपुरे भवन पहाड़ की मजबूत संस्कृति की एक अनूठी मिसाल हैं. बड़कोट के नगाणगांव में इस संस्कृति की झलक दिखती है. यहां लोग सदियों अन्न भंडारण के लिए गोदाम के रूप में भी इनका प्रयोग करते आए हैं. कुठार में लोग सदियों से धान, गेंहू, कोदा, झंगोरा, मंडुवा, चैलाई, दालें, घी, तेल, चीनी व रोजमर्रा की जरूरत की हर वस्तु रखते आए हैं.
पहाड़ी कोल्ड स्टोरेज हैं कुठार: सुरक्षा की दृष्टि से सोने चांदी के बेशकीमती गहनों को लोग कुठार में रखते आए हैं. जिले के ज्यादातर गांवों में हालांकि आज भी बहुसंख्यक में कुठार मौजूद हैं, लेकिन बदलते वक्त के साथ अन्न भंडारण में इनका अब कम ही उपयोग हो रहा है. इससे पौराणिक संस्कृति के संवाहक रहे कुठार विलुप्ति की कगार पर हैं. कुठारों के निर्माण में पूरी तरह से सौ फीसदी देवदार की लकड़ियों का ही इस्तेमाल होता है. जिससे कुठार में भंडारण किये अनाज कभी भी खराब नहीं होता है. ये कुठार कोल्ड स्टोरेज का भी काम करते हैं.
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कुठारों की बनावट देख इंजीनियर हो जाएं चकित: गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक लोकेंद्र सिंह बिष्ट बताते हैं कि नगाणगांव में आज भी एक से बढ़कर एक कुठार सही सलामत हैं. दुनियाभर के उम्दा इंजीनियरिंग कॉलेजों से पढ़ाई कर निकले बड़े से बड़े इंजीनियर (आर्किटेक्ट) पहाड़ों में बने इस तरह के कुठार व पंचपुरे भवनों के निर्माण की कल्पना नहीं कर सकते, जो आज से सदियों पूर्व बुजुर्गों, कारीगरों, मिस्त्रियों ने बिना शिक्षा दीक्षा व बिना स्कूली ज्ञान के निर्मित किए हैं.