देहरादून (नवीन उनियाल): उत्तराखंड में पलायन आयोग का गठन कर त्रिवेंद्र सरकार ने पलायन पर भले ही वाहवाही लूटी हो, लेकिन अब इसी पलायन आयोग पर बीजेपी के विधायक ही सवाल खड़े करने लगे हैं. पार्टी के सीनियर विधायक बिशन सिंह चुफाल ने राज्य में पलायन को लेकर बिगड़ते हालातों पर चिंता जाहिर की है, साथ ही जंगली जानवरों से खेती को हो रहे नुकसान की रोकथाम पर भी सरकार को प्रयास करने की नसीहत दी है. चुफाल ने हाल ही में संपन्न हुए विधानसभा बजट सत्र के दौरान भी वन्यजीवों का मुद्दा सदन में उठाया था.
उत्तराखंड की धामी सरकार रोजगार के बढ़ते अवसरों को लेकर आंकड़े पेश करती रही है, साथ ही खेती के लिए बेहतर माहौल देने से जुड़ी योजनाओं का भी प्रचार प्रसार करती रही है. लेकिन अब भाजपा के ही वरिष्ठ विधायक ने कुछ ऐसे बयान दिए हैं जिसने सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं. बल्कि इस तरह के बयान पलायन को लेकर अबतक हुए प्रयासों को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं.
पार्टी से छह बार के विधायक और सरकार में मंत्री रह चुके बिशन सिंह चुफाल ने सरकार से पहाड़ी जिलों में जंगली जानवरों की समस्याओं पर काम करने के लिए कहा है. विधायक बिशन सिंह ने कहा कि पहाड़ों पर खेती ही लोगों की आजीविका के लिए एकमात्र साधन है और ऐसे में जब जंगली जानवर इस खेती को बिगाड़ रहे हैं तब लोगों के पास एकमात्र रास्ता पलायन ही बचता है.
- बिशन सिंह चुफाल, डीडीहाट से विधायक हैं और पूर्व कैबिनेट मंत्री भी हैं.
- चुफाल ने अपनी ही सरकार पर पलायन को लेकर सवाल उठाए हैं.
- उन्होंने पलायन रोकने के लिए जरूरी कदम उठाने पर जोर दिया है.
विधायक बिशन सिंह चुफाल ने राज्य में त्रिवेंद्र सरकार के दौरान गठित किए गए पलायन आयोग पर भी सवाल खड़े किए. विधायक ने कहा कि भले ही राज्य में पलायन आयोग गठित किया गया है लेकिन इससे पहाड़ों से पलायन खत्म नहीं हो पाया. विधायक ने कहा कि, उन्होंने सवाल किया है कि आखिरकार पलायन आयोग ने अबतक क्या काम किया है. आयोग इस पर बैठक तो कर रहा है लेकिन गांव में पलायन की समस्या खत्म नहीं हो पा रही है. उन्होंने कहा कि जब तक हर जिले में बंदरों के बंध्याकरण का काम नहीं होगा, तब तक ना तो समस्या का हल हो पाएगा और ना ही पलायन रुक पायेगा.
- बता दें उत्तराखंड सरकार ने बजट 2025 के दौरान पलायन रोकथाम योजना के लिए ₹10.00 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.
क्या कहते हैं वन मंत्री: वहीं, इस मुद्दे पर वन मंत्री सुबोध उनियाल ने ईटीवी भारत संवाददाता से फोन पर बातचीत की. उन्होंने पार्टी के सीनियर विधायक द्वारा उठाए गए मुद्दे को गंभीर बताया और वन विभाग के कार्यों की भी जानकारी दी.
जंगली जानवरों से बचाव के लिए वन विभाग लगातार काम कर रहा है, इसके लिए विभाग में तमाम योजनाएं भी चल रही हैं. वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट के तहत कुछ बाध्यताएं भी हैं. प्रयास किया जा रहा है कि जंगली जानवरों से किसानों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके.
जहां तक बंदरों के बंध्याकरण का सवाल है तो भाजपा विधायक ने जो मुद्दा उठाया है वह गंभीर है, लेकिन वन विभाग पहले से ही इस पर काम कर रहा है. साल 2024 में अबतक रिकॉर्ड बंदरों का बंध्याकरण किया गया है. बंदरों की गिनती के दौरान जो आंकड़े आए हैं उससे भी यह स्पष्ट हुआ है कि राज्य में वन विभाग के इस प्रयास के बाद बंदरों की संख्या कम हुई है.
- सुबोध उनियाल, वन मंत्री -
वहीं, इस पर बीजेपी प्रवक्ता खजान दास कहते हैं कि, पार्टी के सीनियर विधायक ने जो बात रखी है वो उनकी भावनाएं हैं. जिस तरह से पहाड़ में अब भी पलायन जारी है, उसके लिए सरकार प्रयास कर रही है. हालांकि, बड़ी तादाद में पलायन हो चुका है और इसके लिए सरकार के स्तर से पलायन आयोग का गठन किया गया था और इसी आधार पर काम भी किया जा रहा है.
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने कहा: भारतीय जनता पार्टी के विधायक ने ही पलायन आयोग पर सवाल खड़े किए तो कांग्रेस भी इस मामले में एक्टिव हो गई है. कांग्रेस की मानें तो AC कमरों में बैठकर पलायन को रोकने के प्रयास कभी सफल नहीं हो सकते. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा कि, पलायन आयोग जैसे कदम से पलायन नहीं रुकेगा बल्कि इसके लिए पहाड़ों पर आम लोगों के लिए सुख सुविधा जुटानी होगी.
पलायन पर धामी सरकार के प्रयास: साल 2022 में सीएम धामी ने गांवों से पलायन रोकने के उद्देश्य से बने पलायन आयोग का नाम 'पलायन निवारण आयोग' में बदल दिया था. इसके अलावा उन्होंने अपर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने के निर्देश भी दिए थे.
- मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि गांवों विकास के लिए एक ग्राम-एक सेवक के कॉन्सेप्ट पर काम करना होगा.
- पलायन आयोग की रिपोर्ट के जरिए जो सुझाव दिए जा रहे हैं, उन सुझावों को धरातल पर उतारने के लिए संबंधित डिपार्टमेंट्स को ठोस कार्य योजना बनानी होगी.
- जनकल्याणकारी योजनाओं का गांव की आबादी को ज्यादा से ज्यादा फायदा मिले, इसके लिए प्रोसेस को आसान करने पर विशेष ध्यान देना होगा.
- सीएम धामी ने कहा था कि ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए गांवों पर फोकस करने वाली प्लानिंग बनानी होगी.
- ये सुनिश्चित करना होगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के संसाधन बढ़ाए जाएं और अवस्थापना विकास से संबंधित केंद्र एवं राज्य सरकार की योजनाओं का आम लोगों को पूरा फायदा मिले.
2017 में पलायन आयोग का गठन: साल 2017 में गांवों से पलायन को रोकने के लिए तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने 17 सितंबर 2017 को पलायन आयोग का गठन किया था. इसका हेडक्वार्टर पौड़ी जिले में बनाया गया. सरकार का मकसद ग्रामीण इलाकों से लगातार हो रहे पलायन को रोकना था. इसके लिए पलायन आयोग की वेबसाइट भी बनाई गई.
उत्तराखंड में पलायन में आई कमी: हालांकि, बीते साल मई 2024 में उत्तराखंड पलायन आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. शरद नेगी ने बताया था कि एक समय था, जब उत्तराखंड में 30 पर्सेंट लोग आजीविका यानि रोजी रोटी की तलाश में सूबे से बाहर पलायन करते थे, लेकिन अब इस तरह के पलायन में करीब 10 से 12 पर्सेंट की कमी देखी गई है. उन्होंने ये भी कहा था कि श्रीनगर, उत्तरकाशी जैसे बड़े शहरों में ही नहीं, बल्कि पहाड़ों से लेकर मैदानों तक छोटे-छोटे टाउन में आसपास के गांव से लोग अपने काम धंधों के लिए निकल रहे हैं.
उत्तराखंड सरकार ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग की वेबसाइट के मुताबिक साल 2001 और 2011 के बीच अल्मोड़ा और पौड़ी गढ़वाल जनपदों की आबादी में गिरावट देखी जा रही है जो राज्य के कई पहाड़ी क्षेत्रों से लोगों के बड़े पैमाने पर पलायन की ओर इशारा करती है. वेबसाइट पर दी गई जानकारी की मानें तो पलायन की गति ऐसी है कि कई गांवों की आबादी दो अंकों में रह गयी है. आंकड़े दर्शाते हैं कि पौड़ी, अल्मोड़ा, टिहरी, बागेश्वर, चमोली, रुद्रप्रयाग और पिथौरागढ़ में असामान्य रूप से जनसंख्या वृद्धि दर काफी कम है.
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